पेंशनर्स आंदोलन : ज्ञापन लेने ही नहीं आना क्या दर्शाता है ?
डॉ. चन्दर सोनाने
हाल ही में 24 नवम्बर को भोपाल के नीलम पार्क में मध्यप्रदेश के समस्त पेंशनरों के एसोसिएशनों ने मिलकर जंगी धरना प्रदर्शन किया। किन्तु आश्चर्य और दुःखद यह है कि धरना प्रदर्शन के बाद शासन अथवा जिला प्रशासन का कोई भी अधिकारी ज्ञापन लेने ही नहीं आया। मजबूरी में वहाँ तैनात एक पुलिस अधिकारी को ज्ञापन सौपंना पड़ा।
अब यहाँ यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि शासन और जिला प्रशासन के अधिकारी पेंशनरों के प्रति इतने गैर जिम्मेदार, लापरवाह और असंवेदनशील कैसे हो गए हैं ? जब प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ही पेंशनरों के प्रति असंवेदनशील हो चुके हों तो शासन और जिला प्रशासन के अधिकारियों को क्या गरज कि वे इन पेंशनरों का ज्ञापन लेने के लिए चिंता करें !
मध्यप्रदेश पेंशनर एसोसिएशन के प्रांताध्यक्ष श्री श्याम जोशी और वरिष्ठ प्रांतीय उपाध्यक्ष श्री गणेशदत्त जोशी के नेतृत्व में 24 नवम्बर को भोपाल के नीलम पार्क में करीब एक सप्ताह पूर्व ही जंगी प्रदर्शन की घोषणा की गई थी। यदि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान पेंशनरों की माँगों के प्रति संवेदनशील होते तो जरूर किसी मंत्री या वरिष्ठ अधिकारी या कम से कम जिला प्रशासन के किसी अधिकारी को विशाल जंगी प्रदर्शन के बाद ज्ञापन लेने जरूर पहुँचाते। पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं हुआ ! कारण स्पष्ट है। अब पेंशनरों को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि पेंशनर बार-बार मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रदेश के वित्त विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के सामने अपनी माँगों को मंजूर करने के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं और उनके कानों में जूँ नहीं रेंग रही है तो यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि अब इस तरह के धरना प्रदर्शन से पेंशनरों को कुछ भला नहीं होने वाला है।
तो अब पेंशनर करे तो करे क्या ? अब समय आ गया है कि मध्यप्रदेश पेंशनर एसोसिएशन को प्रदेश, संभाग, जिला और तहसील मुख्यालयों पर अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन का कार्यक्रम बनाना चाहिए। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में सचिवालय के सामने अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन का आयोजन करना चाहिए। इसमें प्रतिदिन अलग-अलग पेंशनरां का समूह धरना प्रदर्शन के लिए बैठे। शांतिपूर्वक आयोजित इस धरना प्रदर्शन में पेंशनर अपनी समस्त माँगे बिंदुवार लिखवाकर लगाएँ। इसके साथ ही प्रमुख माँगों के बैनर भी लगाएँ। यह अनिश्चितकालीन आंदोलन तब तक चले, जब तक कि पेंशनर की समस्त माँगे मंजूर नहीं हो जाए।
प्रादेशिक मुख्यालय पर धरने की तिथि से ही प्रदेश के समस्त संभागीय मुख्यालयों पर संभागायुक्त के कार्यालय के सामने और जिला मुख्यालयों पर कलेक्टर कार्यालय के सामने पेंशनर धरना दें। इसी प्रकार प्रत्येक जिले की प्रत्येक तहसील में तहसील मुख्यालय पर तहसील कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन आयोजित किए जाएं।
प्रतिदिन एक निश्चित समय पर प्रादेशिक मुख्यालय, संभागीय और जिला मुख्यालय तथा तहसील मुख्यालय पर एक ज्ञापन रोज मुख्यमंत्री और राज्यपाल के नाम उपस्थित संबंधित को दिया जाए। यह ज्ञापन पेंशनर एसोसिएशन मध्यप्रदेश के द्वारा तैयार किया जाए। ज्ञापन एक जैसा रखा जाए और उसकी रोजाना सिर्फ तारीख बदली जाए। इससे निश्चित रूप से अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। पेंशनर एसोसिएशन भोपाल के प्रान्ताध्यक्ष और वरिष्ठ प्रांतीय उपाध्यक्ष मिलकर अपने अनुभव के आधार पर इसमें और भी बहुत कुछ जोड़ सकते हैं और अनिश्चितकालीन आंदोलन को और अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं।
यहाँ पेंशनरों की वे प्रमुख माँगे सहज संदर्भ हेतु उल्लेखित की जा रही है, जो पूर्व में भी अनेक बार मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव वित्त आदि को अनेक ज्ञापनों के माध्यमों से दी जा चुकी है, जिसकी निरन्तर अनदेखी और उपेक्षा की जा रही है। प्रमुख माँग इस प्रकार है- राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 (6) को निरस्त किया जाए। यह 1 नवम्बर 2000 से पूर्व के पेंशनरों के वित्तीय दायित्वों पर प्रभावशील है, जबकि इसे 1 नवंबर 2000 के बाद सेवानिवृत्त कर्मचारियों पर भी जबरन थोपते हुए पिछले 22 सालों से पेंशनरों के वित्तीय स्वत्वों को भुगतान नहीं करते हुए उन्हें मानसिक एवं आर्थिक यातनाएं दी जा रही है।
15 मई 2018 को प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भोपाल में प्रदेश के पेंशनरों की पंचायत बुलाई थी। उस पंचायत में मुख्यमंत्री ने सभी पेंशनरों को सातवें वेतनमान का लाभ 1 जनवरी 2016 से ही दिए जाने का आश्वासन दिया था, जिसे आज तक पूरा नहीं किया गया है। जबकि प्रदेश के समस्त कर्मचारियों को सातवें वेतनमान का लाभ 1 जनवरी 2016 से ही दिया गया है। और उन्हें उनका पूरा एरियर भी दिया गया है। जबकि छठवें वेतनमान और सातवें वेतनमान का पूरा एरियर पेंशनरों को अभी तक नहीं दिया गया है। उन्हें उनका यह अधिकार दिया जाए।
प्रदेश के अखिल भारतीय संवर्ग के अधिकारियों को मँहगाई राहत का नियमित भुगतान किया जा रहा है। किन्तु प्रदेश के पेंशनरों को मनमर्जी माह का निर्धारण ( कट ऑफ डेट ) निर्धारण कर महँगाई राहत के भेदभाव पूर्ण आदेश जारी किए जा रहे हैं। इसलिए महँगाई राहत का भुगतान भी केन्द्रीय तिथि से सभी पेंशनरों को किया जाए। यह भेदभाव तुरंत समाप्त किया जाए। पेंशन नियम 1976 में आज तक संशोधन नहीं करने के कारण पेंशनरों की अविवाहित/ विधवा/तलाकशुदा पुत्री को केन्द्र के समान परिवार पेंशन नहीं मिल पा रही है। पेंशन नियम में केन्द्र के समान संशोधन हो जाने के बाद इन्हें भी लाभ मिल सकेगा।
हिमाचल प्रदेश की सरकार ने पिछले दिनों पेंशनरों के हित में अत्यन्त महत्वपूर्ण निर्णय लिए है। इसके अनुसार मध्यप्रदेश के पेंशनरों को भी 65,70,75 वर्ष की आयु में प्रवेश करते ही 5-5 प्रतिशत की मूल पेंशन में वृद्धि की जाए। हिमाचल सरकार के इस निर्णय का उस प्रदेश के पेंशनरों ने खुले दिल से स्वागत किया है। इसी प्रकार का निर्णय मध्यप्रदेश में भी किया जाना चाहिए।
हिमाचल प्रदेश में हो रहे इस वर्ष 2022 में विधानसभा चुनावों को देखते हुए एवं पेंशनरों की शक्ति को स्वीकारते हुए उस प्रदेश सरकार द्वारा पेंशनरों के हित में निर्णय लिया गया। अब अगले वर्ष 2023 में मध्यप्रदेश के आसन्न विधानसभा चुनावों के पूर्व भी मध्यप्रदेश सरकार को संभवतः पेंशनरों की शक्ति का भान ही नहीं हो रहा है !
अब तो मध्यप्रदेश के पेंशनर्स को जाग जाना चाहिए। 24 नवम्बर को भोपाल के नीलम पार्क में दोपहर 12 से 3 बजे तक विशाल जंगी प्रदर्शन करने के बावजूद प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान असंवेदनशील बने रहे ! वे लगातार पेंशनरों की माँगों को अनदेखा कर चुके हैं ! अब यह सिद्ध हो चुका है। इसलिए अब जब तक राजधानी, संभाग, जिला और तहसील मुख्यालयों पर अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन आयोजित नहीं होगा, तब तक प्रदेश के सभी जिम्मेदार सोए रहेंगे। इन सबको अब जगाने का समय आ गया है ! इसके लिए सभी पेंशनरों को एक साथ एकजुट होकर अपनी एकता का परिचय देना चाहिए, तभी उनकी माँगों को सुना भी जा सकेगा और उसे पूरा भी किया जा सकेगा !
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