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सीमांत राज्यों की आपसी हिंसा के आगे बेबस केंद्र..?


श्रीश्रीप्रकाश दीक्षित ,वरिष्ठ पत्रकार

                जब चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध होता है तब सेना के लोग मारे जाते हैं.ऐसे ही जब नक्सली आदि आतंकियों से मुठभेड़ होती है तो अर्धसैनिक बलों और प्रदेशों की पुलिस के लोग मारे जाते हैं। इसके बरअक्स राजनैतिक और प्रशासनिक मोर्चे पर बोफोर्स जैसी खरीद की आड़ मे कमीशनबाजी होती है.अब तो प्रदेशों के बीच ही युद्ध जैसे खतरनाक हालात बन रहे हैं.सवा साल पहले मिजोरम और असम के बीच हिंसक टकराव मे असम के छह पुलिस जवानों सहित सात की मौत और पचास के घायल होने से पूरा देश स्तब्ध हो गया था.घायलों में आईजी/ एसपी भी थे.अब असम और मेघालय में तकरार के चलते मेघालय के आधा दर्जन बेक़सूर ग्रामीण मारे गए हैं.चीन की गिद्धदृष्टि वाले पूर्वोत्तर राज्यों की आपसी हिंसा कई सवाल खड़े करती है.असम मे भाजपा सरकार है तो मेघालय और मिज़ोरम में मिलीजुली सरकारें हैं।
                बेहद संवेदनशील सीमांत राज्यों में आपसी खून ख़राबे के लिए राजनैतिक नेतृत्व की विफलता को जिम्मेदार माना जा रहा है.बड़े बड़े दावों के बावजूद मोदी सरकार सूबों के आपसी विवाद ही हल नहीं कर पा रही है.तब चीन और पाकिस्तान से सीमा विवाद के मोर्चे पर क्या करेगी..? दरअसल पिछले साल असम बनाम मिजोरम हिंसा के तींन चार दिन पहले ही प्रधानमंत्री मोदी के बाद सबसे ताकतवर सत्तापुरुष गृहमंत्री अमित शाह ने शिलांग मे उत्तर पूर्व के आठ राज्यों के मुख्यमंत्रियोंकी बैठक ली थी.तब शाह ने यह कहते हुए की आंदोलन और आतंकवाद पूर्वोत्तर मे बीते दिनों की बात हो गए हैं,समस्याओं को सुलझा लेने के दावे किए थे..? इसके तुरंत बाद हिंसा और अब का ताजा हिंसक टकराव तो यही एहसास कराता है की घरेलू समस्याओं के समाधान के लिए केंद्र के पास ना तो राजनैतिक इच्छाशक्ति है और ना ही फुरसत।

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