राजवाड़ा-2-रेसीडेंसी बात यहां से शुरू करते हैं...
अरविंद तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार
मुरलीधर राव बोले ये विभीषण हैं, सिसोदिया ने कहा हम तो रामजी के पुजारी
मुरलीधर राव बोले और बात बिगड़े नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है। पिछले दिनों भाजपा के एक समागम में सिंधिया समर्थक मंत्री महेन्द्रसिंह सिसोदिया और प्रद्युम्नसिंह तोमर की मौजूदगी में राव ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए मंत्रियों की ओर इशारा करते हुए उन्हें विभीषण बता दिया। दोनों मंत्रियों के साथ ही मंच पर बैठे अन्य नेताओं का भी चौंकना स्वाभाविक था। तोमर तो चुप रहे, लेकिन सिसोदिया ने राव की तरफ रुख करते हुए कहा कि हम सब रामजी के पुजारी हैं। राव के ये बिगड़े बोल आने वाले समय में उन्हीं के लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं।
मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें और अखबारों की सुर्ख़ियों में कुछ मंत्री
मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों के बीच कुछ मंत्रियों से जुड़ी खबरें जिस तरह से अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं, उससे कई दिग्गजों का चौंकना स्वाभाविक है। पर वे समझ रहे हैं कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। मजेदार बात यह है कि जिन मंत्रियों को निशाने पर लिया जा रहा है, वे सब गाहेबगाहे मंत्रिपरिषद की बैठक हो या फिर मुख्यमंत्री की मंत्रियों के साथ अनौपचारिक चर्चा, हमेशा मुखर रहते हैं। पड़ताल तो इस बात की चल रहे हैं कि आखिर इन खबरों का जन्मदाता है कौन? वैसे भोपाल में इस तरह के काम का जिम्मा लेने वालों की कमी नहीं है।
गुजरात की कवायद ने बढ़ा दी है म.प्र. के भाजपा दिग्गजो की धड़कन
गुजरात में जिस तरह से विधानसभा चुनाव में टिकट बांटे गए हैं, उससे मध्यप्रदेश के कई भाजपा नेताओं के दिल की धड़कन बढ़ गई है। 70 तक पहुंच चुके कई नेता खुसर-पुसर करने लगे हैं। इन नेताओं के साथ दिक्कत दो तरह की है यदि गुजरात का फार्मूला मध्यप्रदेश में लागू किया गया तो इनके टिकट तो कट ही जाएगा। साथ ही परिवारवाद से परहेज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे के चलते इनके पुत्रों को भी टिकट मिलना मुश्किल रहेगा। ऐसे में करें तो क्या करें। हालांकि आम आदमी पार्टी की मध्यप्रदेश में इंट्री ने ऐसे नेताओं को थोड़ी राहत दे चुकी है।
कुलपति वीडी के ससुर बने, मुद्दा 'सरकार' को मिल गया
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा के ससुर डॉ. पी.के. मिश्रा कुलपति क्या बने भाजपा के ही कुछ लोगों को मानों बड़ा मुद्दा मिल गया। इन लोगों ने अखबारों के दफ्तर तक यह खबर पहुंचाने और छपवाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी, जिन्हें कुलपति बनाया गया है, वे प्रदेशाध्यक्ष के ससुर हैं और जिस विश्वविद्यालय में बनाया गया है और उसी विश्वविद्यालय में प्रदेशाध्यक्ष की पत्नी प्रोफेसर हैं। यह तो हुई एक बात। दूसरी बात यह है कि इस बहाने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथ ऐसा मुद्दा लग गया है, जिसे वे कभी भी हथियार के रूप में उपयोग कर सकते हैं। याद है प्रदेश भाजपा के प्रभारी रहते विनय सहस्त्रबुद्धे को भी एक बार उनके पसंदीदा परिवहन निरीक्षक के मामले में उपकृत कर ऐसे ही शिकंजा कसा गया था।
कांतिलाल भूरिया या डॉ. विक्रांत, देखते हैं तवज्जो किसे मिलती है
कमलनाथ जब मुख्यमंत्री थे, तब झाबुआ में उपचुनाव हुआ था। कांग्रेस ने कांतिलाल भूरिया को मैदान में उतारा था। तब जगह-जगह सभाएं लेकर दिग्विजय सिंह ने कहा था कि यह भूरिया का अंतिम चुनाव है। इस बार उन्हें जिता दीजिए। लोगों ने दिग्विजय सिंह की बात मानी और भूरिया चुनाव जीत गए। अब सालभर बाद फिर चुनाव होना है। भूरिया के रुख से ऐसा नहीं लगता कि वे पीछे हटने वाले हैं। इधर जिन लोगों ने उम्मीदवारी के सपने देखना शुरू कर दिए थे, वे भी सक्रिय हो गए हैं। फैसला कमलनाथ को करना है। देखते हैं भूरिया फायदे में रहते हैं या फिर घर बैठते हैं। वैसे प्राथमिकता उनके बजाय बेटे विक्रांत भूरिया को मिल सकती है।
रिपोर्टिंग अथॉरिटी तो लक्ष्मण सिंह मरकाम ही हैं
जलवे तो इन दिनों लक्ष्मणसिंह मरकाम के हैं। आदिवासियों से जुड़े मुद्दों पर उनकी रणनीति असर दिखाने लगी है और जयस के कई दिग्गज अब उनके इर्द-गिर्द आ गए हैं। डॉ. निशांत खरे, सांसद सुमेरसिंह सोलंकी, गजेन्द्रसिंह पटेल, जयदीप पटेल जैसे मजबूत हाथों के दम पर मरकाम अपने एजेंडे को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं। मरकाम भी कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। वे पर्दे के पीछे रहते हैं, पर युवाओं से जुड़े संघ के हर आयोजन में पीछे की कुर्सी पर बैठकर इस बात पर दिमाग लगाते रहते हैं कि कमजोरी क्या-क्या है और आखिर पांव कैसे और मजबूती से जमाएं जाएं।
तौबा-तौबा, कमलनाथ जी इंदौर में कांग्रेस इतनी कमजोर
इंदौर में कांग्रेस कितनी कमजोर है, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि तमाम दिग्गज नेता भी पूरी ताकत लगाने के बावजूद इस बात का बंदोबस्त नहीं कर पाए कि भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल गांधी इंदौर में कहां डेरा डालेंगे। वैष्णव संस्थान ने जगह देने से इन्कार कर दिया। खालसा परिसर को लेकर विवाद हो चुका है और दशहरा मैदान पहले से बुक है। चिमनबाग पर अनुमति के लिए कांग्रेसियों को एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर भटकना पडा। चिंता का विषय कमलनाथ के लिए भी है कि आखिर इतने कमजोर संगठन के दम पर वे 2023 की लड़ाई इंदौर में कैसे लड़ पाएंगे।
चलते-चलते
नौकरी के अंतिम दिनों में विवाद में आए एक सेवानिवृत्त स्पेशल डीजी की महिला मित्र के किस्से इन दिनों पुलिस मुख्यालय में चर्चा में हैं। उक्त महिला जिस तरह से ब्लैकमेलिंग कर पैसा वसूल रही है, उसके पीछे एक नहीं अनेक पुलिस अफसरों का हाथ बताया जा रहा है।
पुछल्ला
जीतू पटवारी और सत्यनारायण पटेल जिस तरह से कमलनाथ विरोधियों को एकजुट करने में लगे हैं, उसे क्या माना जाए। पता नहीं क्यों कांग्रेस के नेता इस तालमेल के साथ दिग्विजय सिंह और विवेक तन्खा का नाम भी जोड़ रहे हैं।
अब बात मीडिया की
भास्कर के संपादकीय विभाग में कई बड़े फेरबदल की प्रक्रिया अब गुजरात चुनाव के बाद आकार लेगी। कागजों पर इसकी रूपरेखा तैयार हो चुकी है। इस फेरबदल में कई स्टेट एडिटर और एडिटर प्रभावित होंगे। देखते हैं, किसे कहां मौका मिलता है।
दैनिक भास्कर प्रबंधन फिर अपनी टीम को इन्क्रीमेंट देने की तैयारी में है। प्रबंधन ने पिछले साल भी अपनी टीम को इन्क्रीमेंट दिया था। देखना यह है कि इस बार का इन्क्रीमेंट पिछले साल की तुलना में ज्यादा होता है या कम।
नईदुनिया के कोर ग्रुप की बैठक पिछले दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हुई। बैठक में अगले एक साल की वर्किंग स्ट्रेटजी एवं एडिटोरियल पॉलिसी पर चर्चा हुई। 2023 का विधानसभा चुनाव भी कोर ग्रुप की इस बैठक का अहम मुद्दा था।
वरिष्ठ पत्रकार जय द्विवेदी टीम दैनिक भास्कर का हिस्सा हो गए हैं। जय ने भास्कर से ही अपने कॅरियर की शुरुआत की थी और बाद में पत्रिका और दबंग दुनिया में भी सेवाएं दीं।
इंदौर में पत्रिका अखबार अपनी टीम का विस्तार कर रहा है। जल्दी ही उसकी रिपोर्टिंग टीम में ऐसे साथी शामिल होने जा रहे हैं, जो कलेक्टोरेट और नगर निगम बीट में महारथ रखते हैं।
...000...