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सिफ़ारिश के कारण सही काम होने पर भी लोग उसे संदेह की निगाह से देखते है


रविवारीय गपशप ———————-

लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।

                       

हमारे यहाँ ना जाने क्यों यह धारणा है कि बिना सिफ़ारिश काम होना मुश्किल है । जो सही काम है , लोग उसके लिए भी सिफ़ारिश कराने के लिए उपयुक्त बन्दा ढूँढते रहते हैं । मैंने ये महसूस किया है कि कामकाज यदि साफ़ सुथरा है , तो इस रास्ते की ज़रूरत महसूस होती नहीं है क्योंकि कई बार सिफ़ारिश के कारण सही काम होने पर भी लोग उसे संदेह की निगाह से देखने लगते हैं । राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करने के पहले मैं भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी किया करता था । पन्ना ज़िले के एक छोटे से क़स्बे रैपुरा में मेरी ब्रांच थी , जहाँ अपने गृह नगर कटनी से रोज़ाना , मैं कभी बस और कभी ट्रेन से ज़ाया करता था । कटनी में जहाँ हमारा घर था , उसके ठीक सामने के मकान में श्री के. के. नामदेव रहा करते थे , जो भारतीय स्टेट बैंक में अधिकारी थे । एक दिन की बात है मैं कटनी से रैपुरा बस से जा रहा था । मैं बस में अपनी सीट पर बैठा था तभी नामदेव जी बस में चढ़े और मेरे साथ की ख़ाली सीट पर आकर बैठ गए । मैंने उन्हें नमस्कार किया , उन्होंने भी प्रत्युत्तर दिया और मुझसे पूछा तुम इस बस से कहाँ जा रहे हो ? मैंने उन्हें बताया कि अंकल मैं स्टेट बैंक में नौकरी करने लगा हूँ , और रैपुरा ड्यूटी पर जा रहा हूँ । उन्होंने आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता से कहा कि अरे मैं पन्ना ज़िले का लीड बैंक मैनेजर हूँ , और आज मैं भी स्टेट बैंक की रैपुरा ब्रांच के इंस्पेक्शन के लिए जा रहा हूँ । इसके बाद उन्होंने प्रेम से मुझे उलाहना दिया कि “अरे तुमने बताया नहीं कि तुम्हारा एस.बी.आइ. में चयन हो गया है , वरना मैं हायर मेनेजमेंट में अपने किसी साथी को कह के कटनी के आसपास ही तुम्हारी पोस्टिंग करा देता । पता नहीं कैसे मेरे मुँह से बेसाख़्ता निकला कि “अंकल मैं जानता था कि आप ये करा सकते हैं पर मैंने सोचा कि जब नौकरी मिलने में मैंने आपका सहारा नहीं लिया तो पोस्टिंग में क्यों लूँ । नामदेव अंकल मुस्कुराये और कहा तुम्हारी बातों से लग रहा है कि तुम ज़्यादा दिन यहाँ टिकोगे नहीं । सच में कुछ महीनों बाद मेरा चयन डिप्टी कलेक्टर के पद पर हो गया और मैं राजनांदगाँव में पदस्थ हो गया । राजनांदगाँव ज़िले के बाद मेरा तबादला नरसिंहपुर हो गया और मैंने मय साजोसामान के सम्पूर्ण साक्षर होने वाले प्रथम ज़िले में आकर अपनी उपस्थिति दे दी । ज्वाइनिंग के वक्त नरसिंहपुर ज़िले के मुख्यालय का अनुविभाग रिक्त था , और मैं पुराने ज़िले में दो सब-डिविज़न का एस. डी. ओ. रह चुका था इसलिए मुझे लगा कि मुझे मुख्यालय का चार्ज मिल जायेगा , पर ऐसा हुआ नहीं । बिना किसी कार्य आबँटन के दो सप्ताह गुज़र गए और मैं अपने बेचमेट श्री पन्ना लाल सोलंकी के कमरे में बैठ बैठ कर चाय पीकर रेस्ट हाउस वापस आ जाता । एक दिन कलेक्टर के स्टेनो शंकर लाल सोनी ने मुझसे कहा कि साहब ऐसे कब तक इन्तिज़ार करोगे , मेरे पास शासक पार्टी के ज़िला अध्यक्ष आते हैं , मैं उन्हें आपके पास भेज दूँगा आप बस उनसे कह देना कि कामकाज आपके हिसाब से चला करेगा , वे कह देंगे तो कलेक्टर मुख्यालय का चार्ज आपको दे देंगे । मैंने हाँ तो कह दिया और वे महाशय दूसरे दिन आकर मेरे पास बैठ भी गए । हमने दुनिया भर की बातें कीं , पर वो वाक्य मेरी ज़ुबान से निकला ही नहीं । आख़िरकार आधा घण्टे मेरे साथ गप्प कर वे उठ गए और अगले पंद्रह दिवस और इन्तिज़ार के बाद जब जबलपुर से श्रीवास्तव साहब नरसिंहपुर बतौर डिप्टी कलेक्टर पदस्थ हुए तब कार्य आबंटन आदेश जारी हुआ और श्री श्रीवास्तव जी नरसिंहपुर मुख्यालय के एस.डी.एम. बने और मुझे कलेक्ट्रेट की विभिन्न शाखाओं का प्रभार सौंपा गया । कलेक्ट्रेट में रहने का फ़ायदा ये हुआ कि ज़िले के के कामकाज सीखने का मुझे भरपूर अवसर मिला और नरसिंहपुर में ही मैंने आम चुनाव और जनगणना के प्रभारी अधिकारी का दायित्व निभाया और जब कलेक्टर साहब स्थानांतरित हुए तो उन्होंने ज़िले से मुक्त होने पर लिखी जाने वाली परम्परा गत चार्ज नोट पर अंग्रेज़ी में लिखा “ आनन्द शर्मा एक क़ाबिल अधिकारी हैं जिन्हें किसी अनुविभाग का एस. डी. एम. बनाया जाना चाहिये ।

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