चित्त को साध लेना ही ईश्वर प्राप्ति
संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा में हुआ रूक्मणी विवाह-आज कथा का समापन
उज्जैन। पारमार्थिक चितन जीवन को शांति प्रदान करता है, गायन, वादन, नृत्य मन को शांत करते हैं इसलिए कृष्ण ने रास का प्रादुर्भाव किया, नृत्य से आराधना गीता में सबसे ज्यादा मन पर किया है। चित्त को साध लेना ही ईश्वर प्राप्ति है। परमात्मा कभी भी व्यक्ति का अहंकार बर्दाश्त नहीं करता। बिन मांगे ईश्वर सबकुछ देता है।
उक्त बात महाकाल प्रवचन हॉल में आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा में उत्तम स्वामी महाराज ने कही। आपने कहा व्यक्ति के जीवन में यदि कोई अमृत है तो वह है भागवत, पुण्य कर्मों में तन्द्रा शीघ्र आती है। संतों की दृष्टि एवं मनुष्य की दृष्टि अलग-अलग होती है। स्वार्थ से प्रेम समाप्त हो जाता है, माया से मनुष्य होने के बाद व्यक्ति वेदांत की बात करने लगता है। अधर्मी के विनाश से पृथ्वी प्रसन्न हो जाती है, संत, पंथ, मंत्र, ग्रंथ 4 चीजें जीवन में अवश्य होना चाहिये। ज्ञानी के लक्षण 8 दुर्गुणी के लक्षण 28। भागवत कथा में गुरूवार को रूक्मणी विवाह हुआ। कथा समापन पर महाआरती विधायक पारस जैन, पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय, विधायक अरुण भीमावद शाजापुर, ओम जैन, राम भागवत, शैलेंद्र शर्मा, संजू बना, तुषार, अशोक, विशाल राजोरिया, राकेश शर्मा लाला, राजकुमारी ठाकुर, शीतल भागवत, अर्जुन चंदेल, अनिल जैन कालुहेडा, सुरेन्द्र सिंह अरोरा, विजय जायसवाल, आनंदसिंह खीची, अशोक सिंह गेहलौत ने की। आज शुक्रवार को कथा की पूर्णाहुति होगी जिसके अंतर्गत सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक कथा होगी।