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इंदिरा एकादशी व्रत से मिलता है पितृों को मोक्ष, ऐसे करना चाहिए व्रत और पूजा ..



हर महीने आने वाली कृष्ण और शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि का बहुत महत्व है। इंदिरा एकादशी का व्रत ऐसा है जिसके प्रभाव से हर तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं साथ ही अंत काल में मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार ये व्रत अश्विन महीने की कृष्णपक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस बार ये एकादशी व्रत 25 सितंबर, बुधवार को किया जाएगा। भगवान विष्णु को समर्पित इस इंदिरा एकादशी व्रत में विधि-विधान से उपवास रखने से सांसारिक सुख प्राप्त होता है और अंत काल में श्री हरि के चरणों में स्थान प्राप्त होता है।

एकादशी व्रत और पूजा विधि
इस एकादशी के व्रत और पूजा की विधि अन्य एकादशियों की तरह ही है, लेकिन सिर्फ अंतर ये है कि इस एकादशी पर शालिग्राम की पूजा की जाती है। 
इस दिन स्नान आदि से पवित्र होकर सुबह भगवान विष्णु के सामने व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए। अगर पितरों को इस व्रत का पुण्य देना चाहते हैं तो संकल्प में भी बोलें।

इसके बाद भगवान शालिग्राम की पूजा करें। भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्नान करवाएं। पूजा में अबीर, गुलाल, अक्षत, यज्ञोपवित, फूल होने चाहिए। इसके साथ ही तुलसी पत्र जरूर चढ़ाएं। इसके बाद तुलसी पत्र के साथ भोग लगाएं।
 फिर एकादशी की कथा पढ़कर आरती करनी चाहिए। इसके बाद पंचामृत वितरण कर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन पूजा तथा प्रसाद में तुलसी की पत्तियों का (तुलसीदल) का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है।

इंदिरा एकादशी व्रत का महत्व
इंदिरा एकादशी की खास बात यह है कि यह पितृपक्ष में आती है। इसलिए इसका महत्व बढ़ जाता है। ग्रंथों के अनुसार इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसके पुण्य को पूर्वजों के नाम पर दान कर दिया जाए तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है और व्रत करने वाले को बैकुण्ठ प्राप्ति होती है। पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करने वाला भी स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है।

इंदिरा एकादशी का व्रत करने और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। पुराणों में बताया गया है कि जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और उससे अधिक पुण्य एकमात्र इंदिरा एकादशी व्रत करने से मिल जाता है।

व्रत की कथा
प्राचीन काल में महिष्मति नगरी में इंद्रसेन नाम के राजा थे। उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी।  अचानक एक रात उन्हें स्वप्न दिख कि उनके माता-पिता यमलोक (नरक) में कष्ट भोग रहे हैं। अपने पितरों की इस दुर्दशा से राजा बहुत चिंतित हुए। उन्होंने सोचा किस प्रकार यम यातना से पितरों को मुक्त किया जाए। इस विषय पर परामर्श उन्होंने विद्वान् ब्राह्मणों और मंत्रियों को बुलाकर स्वप्न की बात बताई।

ब्राह्मणों ने कहा- यदि आप सपत्नीक इंदिरा एकादशी का व्रत करें तो आपके पितरों की मुक्ति हो जाएगी। उस दिन आप शालिग्राम की पूजा, तुलसी आदि चढ़ाकर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें और उनका आशीर्वाद लें। इससे आपके माता-पिता स्वर्ग चले जाएंगे। राजा ने उनकी बात मान विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी का व्रत किया। रात्रि में जब वे मंदिर में सो रहे थे, तभी भगवान ने उन्हें दर्शन देकर कहा तुम्हारे व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सभी पितर स्वर्ग चले गए हैं। इसी दिन से इस व्रत की महत्ता बढ़ गई।

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