पाण्डुलिपियों का संरक्षण एवं व्याख्या सुदीर्घ साधना का फल- कुलपति डाॅ शर्मा
500 वर्ष पुराने प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रंथ ‘अष्टान्ग हृदयम’ की ‘हिन्दी टीका’ का लोकार्पण
उज्जैन। प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों को सुरक्षित व संरक्षित रखना दुरुह श्रम साध्य कार्य है, 500 वर्ष पुराने अष्टान्ग् हृदयम ग्रंथ की हिन्दी टीका की व्याख्या करने व प्रकाशित करने का जो कार्य लेखक डाॅ. मणीन्द्र व्यास ने किया है वह लेखक की सुदीर्घ तपस्या साधना का प्रतिफल है। जो प्राचीन आयुर्वेद ग्रन्थों व शास्त्रों के प्रति उनके समर्पण भाव को प्रकट करता है।
उक्त विचार विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. बालकृष्ण शर्मा ने आयुर्वेद ग्रंथ अष्टांग हृदयम की हिन्दी टीका के लोकार्पण समारोह में व्यक्त किये। धन्वंतरि आयु चिकित्सा महाविद्यालय के प्राचार्य जेपी चैरसिया ने कहा कि डाॅ. व्यास का यह कार्य युगों तक आयुर्वेद के विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करेगा। पूर्व आयुष संचालक डाॅ. श्यामलाल शर्मा ने कहा कि डाॅ व्यास ने कई ग्रन्थो का सम्पादन किया है वे अदभुत प्रतिभा के धनी है। वैध बाबुलाल पण्डया ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम का प्रारम्भ पंडित राजेन्द्र व्यास के मंगलाचरण से हुआ। स्वागत गीत मीनू व्यास ने प्रस्तुत किया। अतिथि परिचय डाॅ. विनोद बैरागी ने दिया। अतिथियों का स्वागत अनन्त सुन्दरम परिवार की और से डाॅ. वत्सराज व्यास, सुखदेव व्यास, सुहास वोहरा, मानुषी व मनस्विनी व्यास ने किया। डाॅ मणीन्द्र व्यास ने पावर पाईन्ट के माध्यम से ग्रंथ का परिचय दिया व बताया की विगत 35 वर्ष से इस ग्रंथ की पाण्डुलिपी पर शोध उनके द्वारा किया जा रहा है। इस अवसर पर नगर के प्रसिद्ध आयुर्वेद विशेषज्ञ चिकित्सकों का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन प्रो डाॅ. रामतीर्थ शर्मा ने किया एवं आभार मनस्विनी ने माना। शान्ति पाठ वैदिक जयघोष के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।