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आयुर्वेद की धरोहर ऐसी अप्रकाशित पुस्तक का विमोचन आज



उज्जैन। महर्षि वाग्भट प्रणीत अष्टांगहृदयम् दामोदर रचित संकेतमंजरी टीका, मणीन्द्र कुमार व्यास कृत अनंतसुन्दरी हिन्दी व्याख्या का आज विमोचन कुलपति विक्रम विश्वविद्यालय के द्वारा किया जाएगा। 
महर्षि वाग्भट ने चरक, सुश्रुत संहिता एवं अष्टांगसंग्रह इन बृहत् त्रयी के समन्वय के स्वरूप अष्टांगहृदयम् की लघुत्रयी के प्रमुख ग्रंथ के रूप में प्रणयन छठी शताब्दी में किया था। यह सुगठित आयुर्वेद का अत्यधिक सरल ऐसा काव्य ग्रंथ है जिसकी लोकप्रियता इसी से पता चलती है कि इसकी सबसे अधिक टीका तथा व्याख्याएं उपलब्ध हैं। आयुर्वेद के इतिहास में 15वीं शताब्दी के टीकाकार दामोदर कृत संकेतमंजरी टीका का उल्लेख किया है जिसमें युक्ति पूर्वक तथा वैज्ञानिक सोच के साथ लिपि, कागज, लेखनी, स्याही, लिखावट, शैली आदि के द्वारा अनुमानों के द्वारा पता चलता है कि यह एक ग्रंथ रत्न भारत की ही नहीं अपितु विश्व के लिए भी आयुर्वेद की भाषा में एक मात्र ऐसी धरोहर हैं। जो कि अनुपलब्ध, स्पष्ट,  भल्लातक की स्याही से सुन्दर, सुगठित अक्षरों से लिखी गई मूल पाण्डुलिपि हमारे पुस्तकालय में सुरक्षित है जिस ग्रंथ का विमोचन किया जा रहा है। 
डॉ मणीन्द्र कुमार व्यास ने कहा कि यह मुझे अपने स्वर्गीय पिताश्री वैद्य अनन्तलाल व्यास तथा मेरी माता सुन्दर देवी व्यास की चिर स्मृति को बनाए रखने के लिए जन्म दिया जिसमें सहयोगी रही मेरी धर्म पत्नी मीनू व्यास के साथ सहयोगी रही पुत्री द्वय मानुषी तथा मनस्विनी। इस ग्रंथ की हस्तलिखित पाण्डुलिपि को उपलब्ध कराने का श्रेय मेरे दो अंग्रजों डॉ. वत्सराज व्यास एवं डॉ. नारायण जी व्यास को जाता है। परम पिता परमेश्वर ने मुझ अल्प बुद्धि  को इस योग्य बनाया कि ये मैं दुरूह कार्य को करने का प्रयास कर अनेक विघ्नों के साथ कितना सफल हो सका। यह तो प्रबुद्ध पाठक ही मूल्याकंन कर पाएंगे कि वास्तव में क्या आयुर्वेद के इतिहास की लुप्त कडी को जोड़ने में मुझे कितनी सफलता मिली ।

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