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क्षमा के स्थान पर आजकल साॅरी की परंपरा-मुनि श्री मार्दव सागर जी महाराज



उज्जैन। दसलक्षण धर्म के प्रथम दिन हम क्षमावणी पर्व मनाते हैं। क्षमा आत्मा का स्वभाव हैं। यदि हमसे कोई त्रुटि या अपराध हुवा है तो तुरन्त क्षमा मांग लेना चाहिये। वर्तमान में क्षमा का स्थान साॅरी ने ले लिया हैं। पर हमें साॅरी भी दिल से बोलना चाहिये। औपचारिकता न रहें। 
उक्त विचार पूज्य मुनिराज 108 विद्यासागरजी के परम शिष्य पूज्य मार्दवसागरजी महाराज ने क्षमावाणी पर्व पर अपने उद्भोधन में कहें। महाराजश्री ने कहा कि भगवान महावीर ने जियो और जीने  दो का सिध्दांत दिया हैं। सभी प्राणियों को जीने का अधिकार हैं। हमें किसी के प्रति दुर्भावना  नहीं रखना चाहिये। सामाजिक विद्वेश व झगडे अक्सर छोटी छोटी बात को लेकर हो जातें हैं। व्यक्ती के अहंम  में ठेस लगती हैं। वह क्रोधित हो जाता है। इसलिये क्षमा करना व क्षमा मांगना दोनो को ही जैन धर्म में श्रेष्ट कहा हैं। 
क्षमा वीरस्य भूषण इस्लिये कहा है कि  क्षमा करना वीरों का गुण हैं, आभूषण है। हमें प्राणी मात्र से आज के दिन क्षमा मांगना चाहिये। सभी प्राणियों से ैहमारा समभाव हैं ओर हमारे किसाी भी कृत्य से कि किसी को कष्ट नहीं पहूंचे। सुखी रहे सब जीव, जगत के कोई न घबरावे, बैर पाप अभिमान छोड जग नित्य नये मंगल जावे। यही भावना हमारी सदैव रहना चाहिये। आज व्यक्ती का स्वभाव बहुत गुस्सेल हो गया है। उसे क्रोध भी बहुत जल्दी आता हैं। 
आज रुपये के चक्कर में एक दुसरे के जानी दुश्मन हो जाते हैं। उनकी मान्यतायें बदल गई हैं। लक्ष्मी का स्वभाव चंचल है। न भैया, न गइया, सबसे बडा रुपया।  भाई भाई का सगा नहीं रहा। बेटा बाप का धन सम्पत्ति के चक्कर में हत्या कर देता है।  हमें लक्ष्मी के चक्कर में अपने गुस्से पर नियंत्रण कर बैर भाव नहीं रखना हैं। 15 दिन के अंदर गलती की क्षमा मांगना चाहिये।
शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर बोर्डिंग में रविवार को सुबह 10 बजे संपूर्ण समाज के बीच में उत्तम क्षमा पर्व का आयोजन किया गया जिसमें संपूर्ण समाज में एक दूसरे से गले मिलकर क्षमा मांगी जानकारी समाज सचिव डॉ सचिन कासलीवाल ने देते हुए बताया कि विशेष रुप से ट्रस्ट के अध्यक्ष इंदर चंद जैन महेंद्र लुहाडिया तेज कुमार विनायक का हीरा लाल बिलाला नरेंद्र बिलाला ललित जैन महिला मंडल आदि आदि कई विशेष रूप से मौजूद थे।

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