अनंत चर्तुदशी : इन मुहूर्त में गणेश प्रतिमा का विसर्जन
गणेश चतुर्थी पर भगवान गणपति की स्थापना के बाद अनंत चतुर्दशी पर प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। इस दिन भी पिछले 10 दिनों की तरह पूजा, आरती और भोग लगाया जाता है। इसके बाद विसर्जन के समय फिर से पूजा की जाती है। इसे उत्तर पूजा भी कहा जाता है। फिर आरती कर विसर्जन मंत्र के साथ प्राण-प्रतिष्ठित मिट्टी की गणेश प्रतिमा का घर में ही विसर्जन किया जाना चाहिए ताकि 10 दिनों की पूजा का पूरा फल मिल सके। इस दिन त्याग और परोपकार का भी महत्व है। माना जाता है कि इस भावना से भगवान प्रसन्न होते हैं।
गणेश विसर्जन मुहूर्त
सुबह 06:10 से 07:50 तक
सुबह 10:50 से दोपहर 03:22 तक
शाम 04:55 से 06:25 तक
विधि
सुबह जल्दी उठकर नहाएं और मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा की पूजा का करें। गणेशजी को चंदन, अक्षत, मोली, अबीर, गुलाल, सिंदूर, इत्र, जनेऊ चढ़ाएं।
पूजा करते समय यह मंत्र बोलें
ॐ गं गणपतये नमः। ॐ श्री गजाननाय नमः। ॐ श्री विघ्नराजाय नमः।
ॐ श्री विनायकाय नमः। ॐ श्री गणाध्यक्षाय नमः। ॐ श्री लंबोदराय नम:।
ॐ श्री विघ्नेश्वराय नमः। ॐ श्री वक्रतुंडाय नम:। ॐ श्री गणनाथाय नम:।
ॐ श्री गौरीसुताय नम:। ॐ श्री गणाधीशाय नम:। ॐ श्री सिद्धिविनायकाय नम:।
इसके बाद गणेशजी को 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। 21 लड्डुओं का भोग लगाएं फिर कर्पूर से भगवान श्रीगणेश की आरती करें। इसके प्रसाद अन्य भक्तों को बांट दें। संभव हो सके तो ब्राह्मणों को भोजन कराएं। दक्षिणा दें। इसके बाद ही स्वयं भोजन करें।
पूजा के बाद विसर्जन
विसर्जन स्थान पर मौजूद परिवार के सदस्य और अन्य लोग हाथ में फूल और अक्षत लें। फिर विसर्जन मन्त्र बोलकर गणेश जी को चढ़ाएं और प्रणाम करें।
विसर्जन मंत्र
ॐ गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ, स्वस्थाने परमेश्वर
यत्र ब्रह्मादयो देवाः, तत्र गच्छ हुताशन ।।
ॐ श्री गणेशाय नमः, ॐ श्री गणेशाय नमः, ॐ श्री गणेशाय नमः।
विसर्जन
गणेशजी की पूजा के बाद घर में साफ बर्तन में शुद्ध पानी भरें और उस पानी में गणेश प्रतिमा विसर्जित करें। कुछ ही देर में मिट्टी की प्रतिमा गल जाएगी। बाद में यह मिट्टी घर में गमले में डाल सकते हैं। इस गमले में दुर्वा लगा लें या कोई भी पौधा लगा सकते हैं।
जल में विसर्जन का महत्व
जल को पंच तत्वों में से एक माना गया है। इसमें घुलकर प्राण प्रतिष्ठित गणेश मूर्ति पंच तत्वों में सामहित होकर अपने मूल स्वरूप में मिल जाती है। जल में विसर्जन होने से भगवान गणेश का साकार रूप निराकार हो जाता है। जल में मूर्ति विसर्जन से यह माना जाता है कि जल में घुलकर परमात्मा अपने मूल स्वरूप से मिल गए। यह परमात्मा के एकाकार होने का प्रतीक भी है। सभी देवी-देवताओं का विसर्जन जल में ही होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है संसार में जितनी मूर्तियों में देवी-देवता और प्राणी शामिल हैं, उन सभी में मैं ही हूं और अंत में सभी को मुझमें ही मिलना है।
मिट्टी के गणेश, घर में ही विसर्जन
दैनिक भास्कर समूह कई वर्षों से 'मिट्टी के गणेश-घर में ही विसर्जन' अभियान चला रहा है। इसका मूल उद्देश्य यही है कि हम अपने तालाब और नदियों को प्रदूषित होने से बचा सकें। इसलिए आप घर या कॉलोनी में कुंड बनाकर विसर्जन करें और उस पवित्र मिट्टी में एक पौधा लगा दें। इससे न सिर्फ ईश्वर का आशीर्वाद बना रहेगा, बल्कि उनकी याद भी घर-आंगन में महकती रहेगी। यह पौधा बड़ा होकर पर्यावरण में योगदान देगा। साथ ही घर में नई समृद्ध परंपरा का संचार होगा।