ओणम : इस दिन देवताओं की नहीं एक असुर की पूजा की जाती है !
सनातन संस्कृति में देवों को पूजने की परंपरा है और उनकी पूजा से ही सभी कार्यों में सिद्धि मिलती है ऐसी शास्त्रों की मान्यता है। तिथि और त्यौहार देवी-देवताओं को समर्पित होते हैं, लेकिन एक असुर ने भी अपने शुभ कार्यो से पूज्यनीय होने का गौरव पाया था। इन असुर का नाम था महाबलि था। महाबलि का नाम केरल में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है और उनके सम्मान में वहां पर ओणम पर्व मनाया जाता है।
ओणम की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक समय महाबली नाम का असुर राजा था। वह अपनी प्रजा का काफी ख्याल रखता था। इसलिए प्रजा भी उसको देवतुल्य मानती थी। वह जप-तप भी काफी करता था। इस वजह से उसने कई दिव्य शक्तियों को प्राप्त कर लिया था। इन शक्तियों के साथ उसमें अहंकार भी काफी आ गया था इसलिए उसमें यह बात घर कर गई थी थी कि उसको कोई परास्त नहीं कर सकता है।
महाबलि ने स्वर्ग पर आक्रमण कर इंद्र को पराजित कर दिया और स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। इंद्र की पराजय से दुखी देवमाता अदिति ने अपने पुत्र के उद्धार के लिए विष्णु की उपासना की। देवमाता की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने कहा कि मैं आपके पुत्र के रूप में जन्म लेकर इंद्र को उसका राजपाठ वापस दिलवाऊंगा। कुछ समय बाद माता अदिति ने विष्णु के वामन अवतार को जन्म दिया।
इस समय राजा बलि स्वर्ग पर स्थाई अधिकार करने के लिए अश्वमेध यज्ञ करा रहे थे। वामन रूप में भगवान विष्णु वहां पहुंच गए। राजा बलि ने एक आसन पर बैठाकर उनका सत्कार किया। भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी। राजा बलि ने उनकी मांग को स्वीकार कर लिया। वामन ने पहले पग में भूलोक, दूसरे पग में आकाश नाप लिया। अब तीसरे पग के लिए राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। वामन के कदम रखते ही राजा महाबली पाताल लोक चले गये| राजा महाबलि की प्रजा को जब यह बात पता चली तो वह काफी दुखी हुई। तब वामन रूप धरे भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह साल में एक बार तीन दिनों तक अपनी प्रजा से मिलने आ सकेंगे। मान्यता है कि ओणम के अवसर पर राजा महाबलि धरती पर आकर अपनी प्रजा का हाल जानते हैं।