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सर्वपितृ अमावस्‍या के दिन पड़ रही शनिश्‍चरी, 20 साल बाद बना संयोग



उज्जैन। भादौ मास की पूर्णिमा 13 सितंबर से श्राद्घ पक्ष का आरंभ होगा। ज्योतिषियों के अनुसार शततारका (शतभिषा) नक्षत्र में शुरू हो रहे पितृ आराधना के पर्व में श्राद्घ करने से सौ प्रकार के तापों से मुक्ति मिलेगी। खास बात यह है कि श्राद्घ पक्ष का समापन 28 सितंबर को शनिश्चरी अमावस्या के संयोग में होगा। सर्वपितृ अमावस्या पर शनिश्चरी का संयोग 20 साल बाद बन रहा है।

ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा से श्राद्घ पक्ष का आरंभ होगा। हालांकि पक्षीय गणना से अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से पितृ पक्ष बताया गया है। चूंकि पंचागीय गणना में मास का आरंभ पूर्णिमा से होता है। इसलिए पूर्णिमा श्राद्घ पक्ष का पहला दिन माना गया है। इसके बाद पक्ष काल के 15 दिन को जोड़कर 16 श्राद्घ की मान्यता है। इस बार पूर्णिमा पर 13 सितंबर शुक्रवार को शततारका (शतभिषा) नक्षत्र,धृति योग,वणिज करण एवं कुंभ राशि के चंद्रमा की साक्षी में श्राद्घ पक्ष का आरंभ हो रहा है। शास्त्रीय गणना से देखें तो पूर्णिमा तिथि के स्वामी चंद्रमा हैं। शततारका नक्षत्र के स्वामी वरुण देव तथा धृति योग के स्वामी जल देवता हैं। पितृ जल से तृप्त होकर सुख-समृद्घि तथा वंश वृद्घि का आशीर्वाद देते हैं। इसलिए श्राद्घ पक्ष की शुरुआत में पंचांग के पांच अंगों की स्थिति को अतिविशिष्ट माना जा रहा है।

पांच गुना शुभफल प्रदान करेगा नक्षत्र
श्राद्घ पक्ष का आरंभ शततारका नक्षत्र में हो रहा है। नक्षत्र मेखला की गणना से देखें तो शततारका के तारों की संख्या 100 है। इसकी आकृति वृत्त के समान है। यह पंचक के नक्षत्र की श्रेणी में आता है। यह शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा के दिन विद्यमान है। इसलिए यह शुभफल प्रदान करेगा। श्राद्घ पक्ष में श्राद्घकर्ता को पितरों के निमित्त तर्पण पिंडदान करने से लौकिक जगत के 100 प्रकार के तापों से मुक्ति मिलेगी। वहीं वणिज करण की स्वामिनी माता लक्ष्मी हैं। ऐसे में विधि पूर्वक श्राद्घ करने से परिवार में माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी।

किस दिन कौनी सी तिथि का श्राद्घ
-13 सितंबर-पूर्णिमा का श्राद्घ
-14 सितंबर-सुबह 10.30 बजे तक पूर्णिमा तिथि रहेगी। पश्चात प्रतिपदा लगेगी।
-15 सितंबर- दोपहर 12.25 तक प्रतिपदा तिथि रहेगी। पश्चात द्वितीया लगेगी।
-16 सितंबर-दोपहर 2.35 तक द्वितीया तिथि रहेगी। पश्चात तृतीया लगेगी।
-17 सितंबर-तृतीया
-18 सितंबर-चतुर्थी
-19 सितंबर-पंचमी
-20 सितंबर-षष्ठी
-21 सितंबर-सप्तमी
-22 सितंबर-अष्टमी
-23 सितंबर-नवमी
-24 सितंबर-दशमी
-25 सितंबर-एकादशी
-26 सितंबर-द्वादशी उपरांत त्रयोदशी
-27 सितंबर-त्रयोदशी उपरांत चतुर्दशी
-28 सितंबर-सर्वपितृ अमावस्या

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