पुस्तक का अपना वजूद है जिसे कोई डिगा नहीं सकता
पुस्तक मेले में कथाकारों ने सुनाई कहानियां, बताया किंडल, इंटरनेट व अन्य संसाधन के युग में आज भी पुस्तक का अपना महत्व
उज्जैन। कहानी सुनने का शौक हमारे यहाँ दादा-दादी के जमाने से चलता आया है। कहानी सुन कर हमारी पौध में संस्कार विकसित हुआ है। पंचतंत्र व लोककथा को हमारी पीढ़ी पढ़ कर सुनती हुई बड़ी हुई है। ऐसे ही शानदार कथाकारों को राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने उज्जैन पुस्तक मेले में इकट्ठा किया। बुधवार को सूर्यकांत नागर, प्रभु जोशी, डॉ एमजी नाडकर्णी, ज्योति जैन और मीनाक्षी स्वामी जैसे कथाकारों ने अपनी कहानियों के माध्यम से किंडल, इंटरनेट व अन्य संसाधन के युग में बताया कि पुस्तक का अपना वजूद है जिसे कोई डिगा नहीं सकता।
इस सत्र का समन्वय शाश्वत पत्रिका के संपादक व कथाकार संदीप सृजन ने किया। इस मौके पर मध्यप्रदेश के मुरैना में पदस्थ स्टेट सर्विस के वरिष्ठ अधिकारी व कथाकार तरुण भटनागर विशिष्ठ अतिथि के तौर पर आमंत्रित थे। कार्यक्रम के आरम्भ में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत की परंपरा का निर्वाह करते हुए सभी कथाकारों को न्यास की ओर से पुस्तकें न्यास के हिंदी संपादक व कार्यक्रम प्रभारी डॉ ललित किशोर मंडोरा ने भेंट की। इस अवसर पर उन्होंने श्रोताओं को न्यास की जानकारी देते हुए कहा कि विगत 60 वर्षों से न्यास पुस्तक, प्रकाशन के क्षेत्र में एक अग्रणी प्रकाशन संस्थान है जिसने 40 से अधिक भाषाओं में पुस्तकों के प्रकाशन के साथ नेत्रहीन पाठकों के लिए भी पुस्तकें प्रकाशित करने का गौरव अर्जित किया है। न्यास देश व दुनिया के लिए पठनीय सामग्री तैयार करने में प्रतिबद्ध ही नहीं अपितु समर्पित भी है।
कहानी सत्र की शुरुआत ज्योति जैन की कहानी से हुई। नजरबट्टू नाम की रचना ने श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया। भूख और गरीबी का बेबाक चित्रण ज्योति जैन ने अपनी कहानी में किया। सरस शैली और बातचीत के अंदाज में उनकी रचना ने एक नया बिंब प्रस्तुत किया और श्रोताओं की भरसक बधाई व शुभकामनाएं भी पाई। डॉ एमजी नाडकर्णी ने अपनी कहानी निशब्द का पाठ किया। कहानी भारतीय परिवेश के इर्दगिर्द तानाबाना बुनते हुए आगे बढ़ रही थी। आजकल के दौर में इस प्रकार की शैली प्रायः लुप्तप्राय है लेकिन नाडकर्णी की रचना में प्रेमचंद की शैली के दर्शन हुए। इस अवसर पर इंदौर से पधारी कथाकार मीनाक्षी स्वामी ने अपनी कहानी बगुला बैठा ध्यान में का पाठ किया। यह कहानी सामान्य तौर पर पुरुष की स्त्री पर केंद्रित मानसिकता को उद्घाटित करती है। श्रोताओं ने मन से रचना को सुना। इंदौर के वरिष्ठ कथाकार सूर्यकांत नागर ने अपनी कहानी समाचार का पाठ किया। संचालन कर रहे संदीप सृजन ने भी अपनी कहानी पाखंड का पाठ किया। सत्र में विशिष्ठ अतिथि तरुण भटनागर ने अपने उद्बोधन में कहा इस तरह के आयोजन के लिए पहले मैं राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत को बधाई देना चाहूंगा जिसने उज्जैन जैसे धार्मिक व पवित्र नगरी में पुस्तकमेले का आयोजन किया। अब न्यास ने अंचलों व छोटे शहरों में पुस्तकमेले का आयोजन शुरू किया है इसके लिए न्यास अध्यक्ष प्रोफेसर गोविंद प्रसाद शर्मा व निदेशक नीरा जैन को बधाई देना चाहूंगा। तरुण भटनागर ने कहा कि कहानी सुनाने की विधा अब पहले से विकसित हुई है। हमारे यहां जातक कथाएं, कथा सरित्सागर जैसे पौराणिक आधार बिंदु है जिनसे सीख कर हमारी पीढ़ी धैर्यवान व जागरूक हुई है। आज हमारे यहाँ प्रेम कप दरकते हुए देख रहे है, ऐसे समय में कहानी ही है जो हमें नए तरीके से सोचने को विवश करती है। प्रेम किसी भी मजहब से ऊपर है।
सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं देते हुए तरुण भटनागर ने कहा कि आज बेहतरीन कहानियां सुनने को मिली, निसंदेह आज उज्जैन में होने का गौरव मिला और शानदार कहानियां सुन पाया हूँ। सत्र के समन्वयक संदीप सृजन ने कहा कि आज के दौर में पाठक ने पठनीय सामग्री के लिए विकल्पों को तलाश लिया है, जिसमें किंडल, इंटरनेट व अन्य संसाधन भी है लेकिन पुस्तक का अपना वजूद है जिसे कोई डिगा नहीं सकता। गणमान्य लोगों में शिव चैरसिया, प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार शर्मा के साथ शहर के अनेक पत्रकार व बुद्धिजीवी वर्ग शामिल था।