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राधाष्‍टमी : राधे-राधे कहो, चले आएंगें बिहारी



राधारानी बरसाने की थी, लेकिन उनके निश्चल प्रेम और श्रीकृष्ण के प्रति उनके समर्पण के किस्से ब्रह्मांड की अनंत गहराइयों तक में समाए हुए थे। श्रीकृष्ण उनको छोड़कर चले गए थे, लेकिन अपने मनमंदिर में राधा ने श्रीकृष्ण को इस तरह बसा रखा था कि वो कभी भी उनके दिल से दूर नही रहे। श्रीकृष्ण द्वारका चले गए, लेकिन ब्रजभूमि में राधा उनकी यादों को संजो कर समय व्यतीत करने लगी।

इस साल राधाष्टमी का पर्व 6 सितंबर शुक्रवार को भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाएगा। अष्टमी तिथि का प्रारंभ 5 सितंबर की रात 8 बजकर 49 मिनट से प्रारंभ होगा और 6 सितंबर को रात 8 बजकर 43 मिनट तक रहेगा

राधाष्टमी पूजा विधि
राधाष्टमी पर राधा के प्राकट्योत्सव पर विधि-विधान और श्रद्धाभक्ति के साथ राधारानी की पूजा की जाती है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और 24 घंटे सात्विक दिनचर्या का पालन करते हैं।

इस दिन राधा जी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराते हैं । स्नान के बाद मूर्ति का आकर्षक श्रंगार किया जाता है। राधाष्टमी को राधा जी की सोने या किसी दूसरी उत्तम धातु से बनी सुंदर प्रतिमा को विग्रह के रूप में स्थापित किया जाता है। दोपहर के समय श्रद्धा और भक्ति के साथ राधा जी की पूजा-उपासना की जाती है। इस दिन पूजन स्थल को ध्वजा, पुष्पमालाओं, पताकाओं, तोरणा आदि से सजाया जाता है। पूजन स्थल पर पांच रंगों से मंडप की सजावट की जाती है और उसके अंदर षोडश दल के आकार का कमलयंत्र बनाया जाता है।

रौली, चंदन, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेंहदी, वस्त्र और धूप-दीप से आरती के बाद राधाजी को भोग लगाया जाता है। कई पौराणिक ग्रंथों में राधाष्टमी के दिन राधा-कृष्णा की संयुक्त रूप से पूजन की बात भी कही गई है। यह भी मान्यता है कि 27 पेड़ों की पत्तियां , 27 कुओं का जल इकट्ठा कर, सवा मन दूध, दही और शुद्ध घी, बूरा और औषधियों से मूल शांति का भी इस दिन विधान है। नारद पुराण के अनुसार, राधाष्टमी का व्रत करने वाले भक्तगण ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेते हैं और जो व्यक्ति इस व्रत को विधि-विधान से करता है, उसको सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। व्रत के दूसरे दिन हागिन स्त्रियों तथा ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उनको दक्षिणा दें।

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