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ऋषि पंचमी का व्रत करने से नारी जाति को मिलती है इस दोष से मुक्ति



भारतभूमि को त्यौहारों और उत्सवों की भूमि कहा जाता है। तिथि के अनुसार यहां पर सालभर त्यौहारों का सिलसिला चलता रहता है। भाद्रपद मास में कई त्यौहार मनाए जाते हैं, और कुछ विशेष तिथियों पर व्रत रखकर विशेष पूजा की जाती है। जिसमें एक प्रमुख तिथि ऋषि पंचमी है। ऋषि पंचमी, गणेश चतुर्थी के दूसरे दिन मनाई जाती है। गणेश चतुर्थी के पहले पार्वतीप्रिया हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। ऋषि पंचमी के दिन सप्तऋषियों की पूजा की जाती है।

ऋषि पंचमी के व्रत के संबंध में ब्रह्माजी ने राजा सिताश्व को विस्तार से बताया था। एक बार राजा सिताश्व ने ब्रह्माजी से ऐसे व्रत के बारे में जानने की ईच्छा जताई थी जिसकी वजह से प्राणियों के सभी पापों का नाश हो जाता है। तब ब्रह्माजी ने राजा सिताश्व को ऋषि पंचमी के व्रत के बारे में बताया था।

ऋषि पंचमी की कथा
सतयुग में विदर्भ नगर में श्येनजित नामक राजा का राजपाठ था। वह ऋषियों के समान तेजस्वी थे। उन्हीं के राज में एक किसान सुमित्र रहता था। उसकी पत्नी जयश्री बहुत पतिव्रता थी। एक समय बारिश में जब उसकी पत्नी खेती के काम कर रही थी, तो वह काम करते समय रजस्वला हो गई। उसको रजस्वला होने का पता लग चुका था फिर भी वह घर के कामों में लगी रही। कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपना-अपना जीवन जीकर मृत्यु को प्राप्त हुए। पत्नी जयश्री तो कुतिया बन गई और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने की वजह से बैल की योनी मिली, क्योंकि ऋतु दोष के अलावा इन दोनों का कोई और अपराध नहीं था।

इसी वजह से इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का सारा विवरण याद रहा। वे दोनों कुतिया और बैल बनकर में उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां पर निवास करने लगे। धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों को पूरा सम्मान देता था। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मण भोजन के लिए कई प्रकार के व्यंजन बनवाए।

जब सुचित्र की पत्नी किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सांप ने रसोई की खीर के बर्तन में जहर उगल दिया। कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से बैठकर सब कुछ देख रही थी। अपनी पुत्रवधु के आने पर उसने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया। सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुतिया पर बहुत नाराज हुई और उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल कर उसको मार दी।

कुतिया मार खाते हुए बचने के लिए इधर-उधर भागने लगी। चौके में जो झूठन आदि बच जाता था, वह सब सुचित्र की बहू उस कुतिया को दे देती थी, लेकिन क्रोध की वजह से उसने वह भी बाहर फिकवा दी। सब खाने का सामान घर के बाहर फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा खाना बना कर ब्राह्मणों को खिलाया।

रात के समय भूख से परेशान होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास आकर बोली, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं। वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला। सांप के विष वाले खीर के बर्तन को अनेक ब्रह्म हत्या के भय से छूकर उनके न खाने योग्य कर दिया था। इसी वजह से उसकी बहू ने मुझे मारा और खाने को कुछ भी नहीं दिया।

तब वह बैल बोला, हे भद्रे! तेरे पापों की वजह से तो मुझे भी इस योनी में आना पड़ा है और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है। आज मैं भी खेत में दिनभर हल चलाता रहता हूं। मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत। मुझे इस तरह से कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया।

अपने माता-पिता के इस वार्तालाप को सुचित्र सुन रहा था, उसने उसी वक्त दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उनके दुख से दुखी होकर वन की ओर प्रस्थान कर गया। जंगल में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता को कौनसे कर्मों की वजह से इन नीच योनियों को प्राप्त हुए हैं और अब किस उपाय से इनको छुटकारा मिल सकता है। तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नी सहित ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो और उसका फल अपने माता-पिता को दो।

भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को दोपहर में नदी के पवित्र जल में स्नान कर नए रेशमी वस्त्र धारण करना और अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजन करना। इतना सुनकर सुचित्र अपने घर वापस आया और अपनी पत्नी सहित ऋषि पंचमी का विधि-विधान से पूजन व्रत किया। इस तरह पुत्र और पुत्रवधु के पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूट गए। इसलिए मान्यता है कि जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है।

ऋषिपंचमी का महत्व
इस तरह ऋषि पंचमी के व्रत को खासकर महिलाएं करती है। सनातन संस्कृति में माहवारी के दौरान महिलाओं को कुछ विशेष बातों का ख्याल रखना पड़ता है और घर परिवार में रहते हुए शरीर के अशुद्ध रहते हुए कोई ऐसा काम हो जाए, जो नहीं होना चाहिए तो उस पाप, दोष या गलती के प्रायश्चित्त के लिए ऋषि पंचमी के व्रत का प्रावधान किया गया है। महिलाओं सामान्यत: माहवारी के दौरान वर्षभर एहतियात बरतती है, लेकिन इसके बावजूद कुछ गलतियां हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में वे ऋषिपंचमी का व्रत विधि-विधान से कर माहवारी के पाप से मुक्त हो सकती है।

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