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क्‍या भादप्रद अमावस्‍या का महत्‍व, इस दिन एकत्रित की जाती है विशेष प्रकाश की घास


प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि का अपना विशेष महत्व होता है, लेकिन भाद्रपद माह की अमावस्या की अपनी ही विशेषता हैं। भाद्रपद माह की अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिए कुश (एक प्रकार की घास) एकत्रित की जाती है। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि धार्मिक कार्यों में या विशेष रूप से  श्राद्ध कर्म आदि करने में उपयोग की जाने वाली घास यदि इस दिन एकत्रित की जाए तो वो वर्षभर तक पुण्य फलदायी होती है। कुश एकत्रित करने के कारण ही इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में वैसे इस अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। कहा जाता है इस अमावस्या पर उखाड़ा गया कुश एक वर्ष तक प्रयोग किया जा सकता है। हिन्दू धर्म शास्त्र में कुश को बहुत ही शुद्ध और पवित्र माना गया है।

वैसे ही अगर आपको कुश को उखाड़ना है तो इसके लिए कुछ नियम होते हैं जिनका प्रयोग किया जाना चाहिए। कुश का महत्व श्राद्ध करने के लिए या श्राद्ध पक्ष में बहुत बढ़ जाता है और आप उन्हें इन नियम से उखड सकते हैं। प्रातः प्रथम स्नान करें और शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण करें, इसके बाद आप भूमि से कुश उखाड़ सकते हैं। कुश उखाड़ते समय अपना मुख उत्तर या पूर्व की ओर रखें। पहले 'ॐ'  का उच्चारण करें फिर कुश को स्पर्श करें इसके बाद ये मंत्र पढ़ सकते हैं। 

विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिनिसर्जन।

नुद सर्वाणि पापानि दर्भ! स्वस्तिकरो भव॥'

उसके बाद हाथों की मुट्ठी बना कर एक ही बार में कुश उखाड़ लें. इसे एक ही बार में उखाड़ना चाहिए, या फिर आप पहले उसे नुकीली चीज़ से ढीला कर लें।

कुश उखाड़ते समय:-  'हुं फ़ट्'  कह। 

आप उन सभी कुश को उपयोग में ले सकते हैं जो शुद्ध स्वच्छ हों, अशुद्ध, या गंदे मार्ग से प्राप्त ना हो, जिसका आगे का हिस्सा कटा या फिर जला हुआ ना हो। इस अमावस्या पर अगर आप भी ऐसा ही कर रहे हैं और आपको कुश का उपयोग करना नहीं आता तो यहां आप पढ़ सकते हैं जो आपके लिए सहायक सिद्ध हो सकता है। धर्म शास्त्रों में दस प्रकार की कुशों का उल्लेख मिलता है।

कुशा:काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।

गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।

ऐसी मान्यता है कि घास के इन दस प्रकारों में जो भी घास सुलभ एकत्रित की जा सकती हो इस दिन एकत्रित कर लेनी चाहिए। ध्यान रखना चाहिये कि घास को केवल हाथ से ही एकत्रित करें और उसकी पत्तियां पूरी की पूरी साबुत होनी चाहिये आगे का भाग टूटा हुआ या खण्डित ना हो। मात्र कुश एकत्रित करने के लिए ही भादों मास की अमावस्या का महत्व नहीं है इस दिन को पिठोरा अमावस्या भी कहा जाता है। पिठोरा अमावस्या को देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। 

इस विषय में पौराणिक मान्यता भी है कि इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के कुशल मंगल के लिये उपवास किया जाता है और देवी दुर्गा सहित सप्तमातृका के साथ 64 अन्य देवियों की पूजा भी की जाती है।

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