सफलता का सूत्र - जब तक काम पूरा न हो जाए चैन नहीं मिलना चाहिए
राम काजु कीन्हे बिनु मोहि कहां विश्राम... रामचरित मानस की इन चौपाइयों के साथ महानिर्वाणी अखाड़े के संत प्रणव पुरीजी ने श्रीराम कथा महोत्सव का समापन किया। वे यहां श्रावण में महाकाल को रामकथा सुनाने आए हैं। मंगलवार को अंतिम दिन उन्होंने हनुमानजी की कथा के साथ कथा को विश्राम दिया। उन्होंने कहा कि हनुमान बाबा कहते हैं- राम काजु कीन्हे बिनु मोहि कहां विश्राम। हनुमानजी का संदेश है कि जब तक काम पूरा न हो जाए चैन नहीं मिलना चाहिए। यही सफलता का सूत्र है।
महाराजश्री ने कहा कि हम कोई भी काम करें तो सबसे पहले आलस्य बाधा डालता है। इसलिए सबसे पहले आलस्य से छुटकारा पा लें। फिर अपने लक्ष्य को पाने में जुट जाएं। इस बीच कहीं रुकने का ख्याल भी नहीं आना चाहिए। हनुमानजी की लंका यात्रा हमें कई संकेत देती है। हनुमानजी जब सौ योजन का समूद्र लांघने के लिए निकले तो पहले मैनाक पर्वत ने उन्हें कहा रुक जाओ, विश्राम कर आगे जाना। हनुमानजी ने कहा- नहीं, भगवान राम का काम पूरा किए बिना मैं कैसे विश्राम कर सकता हूं। सोने का पर्वत था, किंतु मन में लालच नहीं आया। लंका के द्वार पर लंकिनी को चतुराई से पार किया। हनुमानजी के त्वरित निर्णय की क्षमता भी अद्भुत है। जब गए थे तब लंका जलाने का आदेश नही था, किंतु लंका के प्रांगण में ही त्रिखा ने संकेत दिया तो उन्होंने वही फैसला लेकर काम पूरा कर दिया। रामजी ने माता सीता को लाने का आदेश नहीं दिया था तो सीता को धैर्य तो बंधाया किंतु वापस लेकर नही आए। स्वामी के आदेश का कितना महत्व है, यह हनुमानजी से सीखना चाहिए। वास्तव में हनुमानजी से बडा मैनेजमेंट गुरु कोई नही है। कथा का समापन श्रीराम के राज्याभिषेक के साथ हुआ।