सिर्फ इसलिए बाघ की खाल धारण करते हैं भगवान शिव
सावन के महीने में हम शिव भक्तों को शंभूनाथ से जुड़ी कुछ रोचक बातें बता रहे हैं। हम में से कई लोग ये नहीं जानते होंगे कि शिव ने शरीर पर जो कुछ भी धारण कर रखा है उसका एक खास महत्व है। न सिर्फ शिव द्वारा धारण की गई वस्तुओं का बल्कि उनके अंगों का भी विशेष महत्व है।
इनमें त्रिनेत्र, डमरू, त्रिशूल, गले में सांप, बाघ की खाल और रुद्र सहित अन्य वस्तुएं शामिल हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं और हमने देखा भी है कि शिव बाघ की खाल पर विराजमान होते हैं, इसीलिए उन्हें वाघाम्बर भी कहते हैं। मगर, कई लोग ये नहीं जानते हैं कि ग्रंथों में शिव द्वारा धारण की गई खाल का विशेष महत्व होता है। इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है।
इसके अनुसार, एक बार श्री हरि विष्णु ने हिरण्याकश्यप का वध करने के लिए नरसिंह अवतार धारण किया था। इसमें वे आधे नर और आधे सिंह के रूप में थे। कहते हैं कि हिरण्याकश्यप का वध करने के बाद नरसिंह अवतार लिए श्री हरि अधिक क्रोध में आ गए थे। यह सब देखकर भोलेनाथ ने अपना अंश अवतार वीरभद्र को उत्पन्न कर उनसे नरसिंह देवता से निवेदन करने को कहा कि वह अपना क्रोध त्याग दें। कहते हैं इसके बाद भी जब नरसिंह भगवान नहीं मानें, तब वीरभद्र ने शरभ का रूप धारण किया।
कहते हैं नरसिंह देवता को वश में करने के लिए वीरभद्र ने गरुड़, सिंह और मनुष्य का रूप धारण किया। इन तीनों का रूप धारण करने के बाद वे शरभ कहलाए। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शरभ ने नरसिंह भगवान को अपने पंजे से उठा लिया और चोंच से वार किया। इस वार से घायल होकर नरसिंह ने अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया। उन्होंने भगवान शिव से निवेदन किया कि भगवान शिव आप अपने आसन के रूप में नरसिंह के चर्म को स्वीकार कर लें।
कहते हैं कि इस निवेदन के बाद नरसिंह भगवान विष्णु के शरीर में मिल गए और भगवान शंकर ने उनके चर्म को अपना आसन बना लिया। माना जाता है कि उसके बाद से ही भगवान शिव बाघ की खाल पर विराजने लगे और बाघ की खाल हमेशा उनके पास मौजूद होती है।