शनि जयंती : शनि देव की पूजा में रखें ये सावधानी, नहीं करना चाहिऐं आखों वाली प्रतिमा की पूजा
नवग्रहों में शनि को न्याय का देवता माना जाता है। मान्यता है कि शनि महाराज हमेशा सच्चाई का साथ देने वाले, गरीबों की मदद करने वाले और सदमार्ग पर चलने वालों का साथ देते हैं। शनि महाराज से हमेशा लोग भयभीत रहते हैं, लेकिन हकीकत में जिंदगी की सही राह पर चलने वाले लोगों पर शनि हमेशा मेहरबान रहते हैं। और उनको सुख-समृद्धि और तरक्की का वरदान देते हैं। इस साल शनि जयंती सोमवार 3 जून को सोमवती अमावस्या के दिन मनाई जाएगी। इस दिन शनि संबंधित दान, धर्म और पूजा-पाठ करने से शनि संबंधित पीड़ा का नाश होता है।
कुंडली में शनि की स्थिति से तय होती है दिशा और दशा
किसी इंसान पर शनि की नाराजगी और उनकी कृपा को कुंडली के गृहयोग देखकर लगाया जाता है। कुंडली में शनि उच्च का है, मित्र है, सम है, शत्रु है या नीच का है। इससे किसी इंसान की जिंदगी की दशा और दिशा तय होती है। यदि कुंडली के अनुसार शनि की कृपा नहीं है तो जप, तप, दान, धर्म करके इससे मिलने वाले कष्टों से छुटकारा पाया जा सकता है।
किसी इंसान की कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार उस समय शनि की साढ़ेसाती, अढ़ैया, महादशा, अंर्तदशा, प्रत्यंतरदशा के होने पर इंसान को उसका फल प्राप्त होता है। चूंकी शनि कर्मप्रधान है इसलिए यदि किसी की व्यक्ति के कर्म अच्छे हैं तो यानी वह गरीबों की सहायता करता है, अपने अधिनस्थों को प्रताड़ित न कर उनके साथ मित्रवत व्यवहार करता है।अपने से छोटे लोगों को इज्जत देता है तो शनि की ऐसे व्यक्ति पर विशेष कृपा रहती है।
शनि के निमित्त यह करें दान
शनि के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए शनिवार को शनि मंदिर या किसी गरीब, असहाय व्यक्ति को सरसों का तेल, काला कंबल, काला कपड़ा, लोहे का पात्र, काले तिल काले उड़द, काला छाता, काले चमड़े के चप्पल या जूते, गरीबों को भोजन दान करने का प्रावधान है। इसके साथ हनुमानजी के मंदिर में या घर पर हनुमान आराधना का विधान है। इसके तहत हनुमाान चालीसा, सुंदरकांड, हनुमान अष्टक, बजरंगबाण का पाठ किया जाता है। साथ ही हनुमानजी को चमेली का तेल और सिंदूर लगाने का विधान है। प्रसाद में चने-चिरौंजी, गुड़-चने, नारियल और बूंदी के लड्डू चढ़ाने का प्रावधान है।
शनिवार की शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक लगाने से शनि संबंधित कष्टों से छुटकारा मिलता है। शिवलिंग पर काले तिल मिश्रित जल समर्पित करने से शनि के कष्टों में कमी होती है। साथ ही श्रीकृष्ण आराधना से भी शनि के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
विशेष सावधानी
शनि महाराज की कभी भी ऐसी प्रतिमा की पूजा न करें , जिसमें आखें हो। शनि महाराज की शिला रूप वाली प्रतिमा का ही पूजा का विधान। क्योंकि शनि की दृष्टि यदि भक्त पर पड़ती तो उसको ठीक नहीं माना जाता है। इसलिए यदि शनि से कष्टों से पीड़ित व्यक्ति यदि उनकी दृष्टि में आएगा तो उसको नुकसान होगा।