मॉं बगलामुखी जयंती : मॉं बगलामुखी की पूजन से मिलती है शत्रु भय से मुक्ति
12 मई 2019, बुधवार को बगलामुखी जयंती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मां बगलामुखी देवी प्रकट हुईं थीं। जिस कारण इस तिथि को बगलामुखी जयंती के रुप में मनाया जाता है। मां बगुलामुखी दस महाविद्याओं में से एक हैं। ग्रंथों मे इनका रंग पीला बताया गया है और इन्हें पीला रंग पसंद है इसलिए इनका एक नाम पितांबरा भी है। माता बगलामुखी की कृपा से शत्रु का नाश होता है और हर तरह की परेशानी दूर होती है।
पीला रंग अति प्रिय
दस महाविद्या में आठवां स्वरूप देवी बंगलामुखी का है। माता बंगलामुखी पीली आभा से युक्त हैं इसलिए इन्हें पीताम्बरा कहा जाता है। बगलामुखी की पूजा में पीले रंग का विशेष महत्व है। इनका प्राकट्य स्थान गुजरात के सौराष्ट्र में माना जाता है। मां बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनकी बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है।
पौराणिक कथा
हिन्दू धर्म के अनुसार एक बार सतयुग में ब्रह्माण्ड को नष्ट करने वाला तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे समस्त लोकों में हाहाकार मच गया और समस्त लोक के लोग संकट में आ गए। इस संकट की समस्या में भगवान विष्णु चिंतित हो गए। जब भगवान विष्णु को कोई उपाय ना सूझा तो उन्होंने शिवजी को स्मरण किया, तब भगवान शिवजी ने कहा कि यदि कोई इस विनाश को रोक सकता है तो वो शक्ति रूप है। आप उनकी शरण में जाएं। इसके बाद भगवान विष्णु ने कठिन तपस्या करके शक्ति रूपी देवी को प्रसन्न किया। तब माता बगलामुखी देवी ने प्रकट होकर समस्त लोकों को इस संकट से उबारा।
पूजन विधि
इस दिन प्रातः काल जल्दी उठकर नियत कर्मो से निवृत होकर पीले रंग के वस्त्र पहनें। पूर्व दिशा में उस स्थान को जहां पर पूजा करना है, उसे सर्वप्रथम गंगाजल से पवित्र कर लें। फिर उस स्थान पर एक चौकी रख उस पर माता बगलामुखी की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं और पानी छींटकर आसन पवित्र करें। हाथ में पीले चावल, हल्दी, पीले फूल और दक्षिणा लेकर माता बगलामुखी व्रत का संकल्प करें। माता की पूजा खासतौर से पीले फल और पीले फूल से करें। इसके बाद धूप, दीप और अगरबत्ती लगाएं। फिर पीली मिठाई का प्रसाद चढ़ाएं। व्रत के दिन निराहार रहना चाहिए। रात्रि में फलाहार कर सकते हैं। अगले दिन पूजा करने के बाद ही भोजन करें।
भारत-चीन युद्ध रोकने के लिए हुआ था मां बगलामुखी यज्ञ
1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ तब फौजी अधिकारियों एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश की रक्षा के लिए 11 दिन तक मां बगलामुखी का महायज्ञ कराया था। इसके प्रभाव से 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। ये यज्ञ मध्यप्रदेश के दतिया में बगलामुखी शक्ति पीठ में हुआ था। वो यज्ञशाला आज भी मौजूद है। पितांबरा पीठ में इस घटना का उल्लेख है। इसके अलावा जब-जब देश पर विपत्ति आती है तब-तब गोपनीय रूप से मां बगलामुखी की साधना व यज्ञ किया जाता है।