अक्षय तृतीया पर किऐ दान-पुण्य का फल भी हो जाता है अक्षय
अक्षय तृतीया को आम बोलचाल की भाषा में आखातीज भी कहा जाता है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इस दिन किय गया कोई भी कार्य अक्षय फल प्रदान करता है। अक्षय तृतीया को साल के स्वयंसिद्ध मुहूर्तों में से भी एक माना गया है।
मान्यता है कि इस दिन बगैर कोई मुहूर्त देखे जन्म से जुड़े संस्करों से लेकर विवाह और गृह प्रवेश से लेकर खरीददारी तक के कार्य संपन्न किए जा सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन पितरों के लिए किया गया तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध और दान अक्षय फल प्रदान करता है।
इस दिन गंगा या गंगा के अलावा दूसरी पवित्र नदी, सरोवर में स्नान करने और भगवत पूजा करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। अक्षय तृतीया को किया गया जप,तप, हवन और दान भी अक्षय हो जाता है।
अक्षय तृतीया यदि सोमवार और रोहिणी नक्षत्र में आए तो इस दिन किए गए शुभ कार्यों का सर्वश्रेष्ठ फल मिलता है। और यदि तृतीया तिथि मध्यान्ह से शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
अक्षय तृतीया का दान देता है अनन्त गुना फल
अक्षय तृतीया के दिन विभिन्न वस्तुओं के दान का बहुत महत्व है। गंगा या किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान कर किए गए दान-पुण्य का अक्षय फल प्राप्त होता है। स्नान के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उनको गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल का नैवेद्य समर्पित किया जाता है। इसके बाद फल, फूल, बरतन, तथा वस्त्र, गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र के साथ जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। मान्यता है कि इस दिन हम जिन वस्तुओं का दान करते हैं वे दानकर्ता को स्वर्ग में या दूसरे जन्म में प्राप्त हो जाते है।
बड़ी घटनाओं का गवाह है यह दिन
भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है और सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से माना जाता है।
भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुरामजी का जन्म अक्षय तृतीया को हुआ था।
राजा भगीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर मां गंगा का धरती पर अवतरण आज ही के दिन हुआ था।
इस दिन मां अन्नपूर्णा का जन्मदिन मनाया जाता है और जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में गरीबों को खाना खिलाया जाता है, जिससे घर में धन-धान्य के भंडार भरे रहते हैं।
इस दिन महर्षि वेदव्यास ने महाभारत का लेखन प्ररंभ किया था। महाभारत को पांचवां वेद माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन श्रीमद्भागवत गीता के 18वें अध्याय का पाठ करना चाहिए।
देवादिदेव महादेव ने इसी दिन भक्तों से देवी लक्ष्मी और कुबेर की पूजा करने को कहा था। जिससे संपन्नता बनी रहे।
इसी दिन युधिष्ठिर को अक्षय पात्र का प्राप्ति हुई थी। इस पात्र में भोजन कभी खत्म नहीं होता था।
ब्रह्माजी के सुपुत्र अक्षय कुमार का प्रगटोत्सव भी इसी दिन हुआ था।
बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के बाद इसी दिन खुलते हैं और वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं।
इसी दिन महाभारत के युद्ध का समापन हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।