जब महावीर स्वामी के उपदेश का सांप पर हुआ था ऐसा असर
महावीर स्वामी का जन्म उच्च कुल के राजपरिवार में हुआ था, लेकिन राजसी ठाठ-बाट उनको कभी रास नहीं आए। एश्वर्य और सुख के बीच उनकी परवरिश हुई और जीवन के कई उतार-चढ़ाव के वो साक्षी बने, लेकिन इसके बावजूद वो भौतिक सुखों के बंधन में कभी बंध नहीं पाए। जब संपन्नता के बीच उनको सुख-दुख का कारण पता नहीं चल पाया तो वे आत्मज्ञान के लिए वैराग्य के पथ पर अग्रसर हो गए और जगतकल्याण के लिए राजकुमार वर्धमान से महावीर स्वामी हो गए।
महावीर स्वामी के जीवन से जुड़े अनेक प्रसंग है, जिसमें उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया है। एक ऐसा ही किस्सा भगवान महावीर का सांप से जुड़ा हुआ है। एक बार महावीर स्वामी घनघोर वन से गुजर रहे थे। वह श्वेताम्बी नगरी जा रहे थे जिसका रास्ता एक घने जंगल से होकर गुजरता था। इस वन में चंडकौशिक नाम का एक भयंकर सांप रहता था। चंडकौशिक के बारे में कहा जाता था कि वह इतना जहरीला था कि उसके देखने मात्र से प्राणियों की जान चली जाती थी।
भगवान महावीर जब उस जंगल में प्रवेश कर रहे थे तो ग्रामीणों ने उनको उस सर्प के बारे में बताया और आने वाले खतरे से आगाह किया, लेकिन महावीर स्वामी के लिए तो प्राणीमात्र समान थे उनके पास भय नाम की कोई चीज नहीं थी इसलिए वो निर्भय होकर वन की ओर अग्रसर हो गए। कुछ दूरी तय करने के बाद जंगल की हरियाली गायब हो गई और बंजर भूमि नजर आने लगी। इस जगह पर जीवन का नामोनिशान नहीं था।
महावीर स्वामी को यह समझने में देर नहीं लगी कि वह सर्प चंडकौशिक के इलाके में प्रवेश कर चुके हैं। भगवान महावीर ने वहीं पर ध्यान लगाने का निश्चय कर लिया। महावीर स्वामी के आने का संकेत मिलते ही चंडकौशिक तुरंत सतर्क हो गया और अपने बिल से बाहर निकलकर महावीर स्वामी के नजदीक पहुंच गया। सांप चंडकौशिक उनको देखकर गुस्से से लाल हो गया और सोचने लगा कि इस इंसान की यहां पर आने की हिम्मत कैसे हुई।
चंडकौशिक महावीर स्वामी की ओर फन फैलाकर फुफकारने लगा, लेकिन भयहीन महावीर स्वामी ध्यानमग्न थे इसलिए जरा भी भयभीत नहीं हुए। यह देखकर वह और ज्यादा क्रोधित हुआ और महावीर स्वामी को डराने के लिए और तेजी से फुफकारने लगा। अब चंडकौशिक ने अपना जहर महावीर स्वामी के ऊपर उड़ेल दिया। इस विष का भी उनके ऊपर कोई असर नहीं हुआ। जब चंडकौशिक ने देखा की विष उड़ेलने का भी उनके ऊपर कोई असर नही हुआ तो उसने महावीर स्वामी के अंगूठें में डस लिया।
अब चंडकौशिक के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था क्योंकि उनके अंगूठे से खून की जगह दूध बह रहा था। कुछ देर बाद जब महावीर स्वामी ने आंखे खोली तो वे भयहीन और शांतचित्त थे। भगवान महावीर ने उसको प्रेमपूर्वक अहिंसा का उपदेश दिया तो चंडकौशिक के मन-मस्तिष्क से अभिमान और क्रोध के भाव गायब थे। उसने प्रेम और अहिंसा का आवरण ओढ़ लिया था।
महावीर स्वामी के बाद जब लोगों को पता चला कि चंडकौशिक बदल गया है तो कई लोगों ने उसके बदले स्वभाव की वजह से उसकी पूजा की तो कुछ लोगों ने जो चंडकौशिक की वजह से अपने बंधु-बांधव गंवा बैठे थे, उसको ईंट-पत्थर से मारने लगे।
चंडकौशिक लहू-लुहान हो गया, लेकिन क्रोधित नहीं हुआ। कुछ देर बाद रक्त, दूध, मिष्ठान्न की वजह से वहां पर चीटियों के झुंड आ गए। वह चींटियां उसको काटने लगी, लेकिन चीटिंयों को कोई तकलीफ न हो इसलिए चंडकौशिक जरा भी नहीं हिला।
अपने इस आत्म संयम और भावनाओं पर नियंत्रण के कारण उसके कई पाप कर्म नष्ट हो गए और मृत्युपरांत वह स्वर्ग को प्राप्त हुआ।