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नवरात्रि के दिनों में हवन का महत्व


नवरात्रि के दौरान जप, तप, साधना और हवन का बड़ा महत्व है। हवन को ज्यादातर घरों, मंदिरों और साधनास्थलों में पूर्णाहूति के रूप में लिया जाता है। पहले दिन देवी स्थापना के साथ नवरात्र पर्व का प्रारंभ होता है और हवन के साथ इस पर्व का समापन हो जाता है। हवन को वातावरण की शुद्धि का बेहतर साधन माना गया है। अनादिकाल से ऋषि-मुनि हवन और मंत्रोच्चार से देव आराधना करते आ रहे हैं। नवरात्रि और कुछ विशेष पर्वों पर हवन का महत्व कई गुना बड़ जाता है।

हवन के संबंध में वेद-पुराणों में काफी कुछ कहा गया है और विज्ञान भी हवन के शास्त्रसम्मत स्वरूप की पुष्टि करता है। सनातन संस्कृति के शास्त्रों में कहा गया है कि हवन करने से वातावरण की शुद्धि होती है और हानिकारक जीवाणुओं का नाश होता है साथ ही आसपास के माहौल की नेगेटिविटी समाप्त होती है। वैज्ञानिकों की रिसर्च में इस बात का खुलासा हुआ है कि बेहतर स्वास्थ्य के लिए हवन बेहद जरूरी है। हवन के धुएँ से प्राण में संजीवनी शक्ति का संचार होता है।

ऋग्वेद में भी हवन से बीमरियों से मुक्त होने की बात कही गई है। हवन के औषधीय धुएं का असर वातावरण पर 30 दिन तक बना रहता है और इस अवधि के दौरान किसी भी तरह के जहरीले कीटाणु नहीं पनप पाते हैं। हवन को खेती के लिए भी काफी लाभदायक बताया गया है।

हवन के औषधीय धुएं से फसल को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक जीवाणुओं का भी खात्मा हो जाता है। मान्यता है कि हवन से घर और उसके आसपास के 94 प्रतिशत जीवाणुओं का नाश होता है इसलिए धर्मशास्त्रों में हवन को आवश्यक कर्म बताया गया है। इसके साथ ही हवन के दौरान किए गए शास्त्रसम्मत मंत्रोच्चार से शरीर में और आसपास के वातावरण में विशेष सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।

हवन की सामग्री की जानकारी: हवन को पवित्र बनाए रखने के लिए आध्यात्मिक शुद्धता के साथ स्वच्छता का ख्याल भी जरूरी है। हवन के लिए पवित्र और पर्यावरण हितैषी पेड़ों की लकड़ियों का उपयोग किया जाता है, जिसमें चंदन, बेल, नीम, पलाश, देवदार की लकड़ी, पीपल की छाल और तना, गूलर की छाल और पत्ती, आम की पत्ती और तना, जामुन की कोमल पत्ती, अश्वगंधा की जड़, मुलैठी की जड़, बहेड़ा का फल, तिल, जौ, गुग्गल, कमलगट्टा, जटामासी, तेजपत्ता, इलायची, सूखे मेवे, चावल, लौंग, कपूर, तमाल, घी, शकर और कई तरह की औषधिय वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है।

नवरात्रि के दौरान हवन का विशेष महत्व है। साधक यदि कोई साधना करता है तो उसको हवन जरूर करना चाहिए। यदि उपासक ने एक लाख मंत्रों का जाप किया है तो उसके दशांश के बराबर मंत्रजाप से हवन करना चाहिए।

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