आज है प्रदोष व्रत, राशि अनुसार इस विधि से करे भगवान शिव की पूजा
हिंदू धर्म में कई त्योहार और व्रत ऐसे हैं जिनका अपना अलग महत्व और पूजन विधि है. आज 2 अप्रैल मंगलवार को प्रदोष व्रत है. इस व्रत को लोग भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से भगवान शिव व्रती भक्त की सभी प्रकार की परेशानियों का हरण कर लेते हैं. प्रदोष व्रत के दिन भक्तजन माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भी भक्त ये व्रत करता है उसे किसी ब्राह्मण को गोदान (गाय का दान) करने के समान पुण्य लाभ होता है.
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कलियुग में जब समाज में हर तरफ कुरीतियों का बोलबाला हो ऐसे समय में यह व्रत अत्यंत मंगल परिणाम देने वाला होता है. प्रदोष का अर्थ होता है शाम का समय. ऐसा माना जाता है कि शाम के समय प्रदोषकाल में भगवान शिव कैलाश पर्वत के चांदी से बने भवन में तांडव नृत्य करते हैं. इस समय सारे देवी-देवता उनकी आराधना करते हैं.
प्रदोष व्रत की पूजा-विधि:
प्रदोष व्रत करने वाले व्रती को इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाना चाहिए. इसके बाद नहा-धोकर पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव का भजन कीर्तन और पूजा-पाठ करना चाहिए. इसके बाद पूजाघर में झाड़ू-पोछा कर पूजाघर समेत पूरे घर में गंगाजल से पवित्रीकरण करना चाहिए. इसके बाद पूजाघर को गाय के गोबर से लीपना चाहिए.
मिलता है यह फल:
ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त ये व्रत करता है उसे किसी ब्राह्मण को गोदान (गाय का दान) करने के समान पुण्य लाभ होता है.
प्रदोष व्रत में इस मंत्र का करें जाप:
अब केले के पत्तों और रेशमी वस्त्रों की सहायता से एक मंडप तैयार करना चाहिए. अब चाहें तो आटे, हल्दी और रंगों की सहायता से पूजाघर में एक अल्पना (रंगोली) बना लें. इसके बाद साधक (व्रती) को कुश के आसन पर बैठ कर उत्तर-पूर्व की दिशा में मुंह करके भगवान शिव की पूजा-अर्चना करनी चाहिए. व्रती को पूजा के समय 'ॐ नमः शिवाय' और शिवलिंग पर दूध, जल और बेलपत्र अर्पित करना चाहिए.
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया पंचागीय गणना के अनुसार 2 अप्रैल को मंगलवार के दिन शत तारका नक्षत्र, शुभयोग, तैतिल के उपरांत वाणिज करण एवं कुंभ राशि के चंद्रमा की साक्षी में प्रदोष आ रही है। पंचाग की यह स्थिति वारुणी योग का निर्माण कर रही है। इस योग में तीर्थ स्नान, जप, साधना तथा अनुष्ठान का विशेष महत्व है। मंगलवार का दिन प्रदोष तिथि लेकर आया है, इसलिए यह भौम प्रदोष कहलाएगा। इस दिन शत तारका नक्षत्र का होना सौ प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाता है।
जिन जातकों की जन्म पत्रिका में मंगल दोष हों अथवा जो भक्त महामंगल की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं। वें इस दिन मंगलनाथ व अंगारेश्वर महादेव मंदिर में अपनी राशि अनुसार पूजन सामग्री अर्पित कर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। वर्ष में किए गए ज्ञात अज्ञात दोषों की निवृत्ति के लिए भी भौम प्रदोष पर वारुणी योग में तीर्थ पर दान पुण्य करने से अनुकूलता प्राप्त होती है।
शुभ योग की साक्षी खास
भौम प्रदोष पर शुभ योग की साक्षी विशेष मानी गई है। 27 योगों में 23 वे स्थान पर आने वाले शुभ योग की अधिष्ठात्री देवी माता महालक्ष्मी है। विशिष्ट तिथि व योग के संयोग में शुभ योग का होना आर्थिक प्रगति तथा भूमि, भवन, वाहन आदि की प्राप्ति के लिए खास माना गया है।
राशि अनुसार वस्तुएं अपर्ति करें
-मेष : अनार, गेहूं व लाल वस्त्र
-वृषभ : घी से भरे पात्र को भगवान से स्पर्श करा कर ब्राह्मण को दान करें।
-मिथुन : गन्ने के रस से भगवान का अभिषेक करें।
-कर्क : दूध या पंचामृत से अभिषेक करें।
-सिंह : नारियल के पानी से अभिषेक करें।
-कन्या : पंचामृत से अभिषेक करें।
-तुला : सात प्रकार के धान अर्पित करें।
-वृश्चिक : विभिन्न प्रकार के फल भगवान को स्पर्श करा कर ब्राह्मण को दान दें।
-धनु : खसखस मिश्रित पीला चंदन भगवान को अर्पित करें।
-मकर : कांसे के बर्तन में सफेद तिल्ली रखकर भगवान को स्पर्श कराकर दान दें।
-कुंभ : धान्य मिश्रित जल से भगवान का अभिषेक करें।
-मीन : पीले व लाल पुष्प के साथ ऋतुफल भगवान को चढ़ाएं।