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मनुष्‍य के पापो से मुक्ति का उत्‍तम साधन है पापमोचिनी एकादशी



पापमोचिनी एकादशीचैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी रहते है। यह एकादशी इस बार 31 मार्च को है। यह एकादशी सभी तरह के पापों को नष्ट करती है। विक्रम संवत वर्ष के अनुसार यह साल की अंतिम एकादशी भी होती है। पापमोचिनी एकादशी को बहुत ही पुण्यतिथि माना जाता है। पुराण ग्रंथों में तो यहां तक कहा गया है कि यदि मनुष्य जाने-अनजाने में किये गये अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता है तो उसके लिये पापमोचिनी एकादशी ही सबसे बेहतर दिन होता है।  इससे यह भी पता चलता है कि कामभावना मोक्ष प्राप्त करने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है, जिसे जीतने में साधारण मनुष्य तो क्या, ऋषि मुनि भी असफल होते हैं।

इस व्रत में मित्र धर्म का संदेश भी निहित है। इस विषय पर राजा मान्धाता और महर्षि लोमश से संबंधित कथा युधिष्ठिर को कृष्ण ने सुनाई थी। लोमश ऋषि ने मान्धाता से कहा- अप्सराओं द्वारा सेवित चैत्ररथ नामक सुंदर वन में मंजूघोषा नामक अप्सरा को स्वर्ग के राजा इन्द्र ने उसी स्थान में तपस्या कर रहे ऋषि मेधावी की तपस्या को भंग करने के लिए भेजा। शाप के भय से मंजूघोषा आश्रम से एक कोस दूर ही वीणा बजाते हुए मधुर गीत गाने लगी।

टहलते हुए मुनि वहां जा पहुंचे और उसी समय सहायक के रूप में पहुंचे कामदेव ने मुनि में मंजूघोषा के प्रति कामभावना भर दी। ऋषि काम के वशीभूत हो गए। बरसों बीत गए। मंजूघोषा ने देखा कि अब इनका तप पुण्य समाप्त हो गया है। तपस्या भंग हो गई है। वह देवलोक जाने को तैयार हुई और कहा, 'मुझे अपने देश जाने की आज्ञा दीजिये।' मेधावी बोले, 'जब तक सवेरे की संध्या न हो जाए, तब तक तो मेरे ही पास ठहरो।' अप्सरा ने कहा, 'विप्रवर! बहुत-सी संध्या बीत चुकी हैं।' मुनि चौंके। देखा तो 57 बरस बीत चुके थे। क्रोध में वह बोले, 'मेरी तपस्या भंग की।

जा पिशाची हो जा।' मंजूघोषा ने डर कर कहा, 'मेरे शाप का उद्धार करें ऋषिवर। सात वाक्य बोलने या सात कदम साथ-साथ चलने मात्र से ही सत्पुरुषों में मैत्री हो जाती है। फिर मैं तो आपके साथ बरसों रही हूं।' मेधावी को मंजूघोषा की बात समझ में आ गई, उन्होंने कहा, 'चैत्र कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी का व्रत करो, उसके करने से ही तुम्हारा कष्ट दूर होगा।' अप्सरा ने विधि-विधान से चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत किया, जिससे उसे पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई। मेधावी इस पूरे प्रकरण से बहुत लज्जित हो गए थे। वह अपने पिता च्यवन ऋषि के आश्रम पहुंचे। च्यवन ने भी मेधावी से सब कुछ सुन कर उन्हें पापमोचनी एकादशी का ही व्रत करने को कहा। मेधावी ने भी व्रत कर तप बल पुन: प्राप्त किया।

एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन श्रीमद्भागवत कथा का पाठ करना चाहिए। एकादशी तिथि में रात भर जागना अद्भुत फल प्रदान करता है।

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