top header advertisement
Home - धर्म << शीतला सप्‍तमी : जो महिलाऐं आज के दिन रखती है व्रत उनके घर से दूर रहती है बिमारियां

शीतला सप्‍तमी : जो महिलाऐं आज के दिन रखती है व्रत उनके घर से दूर रहती है बिमारियां



शीतला सप्तमी का त्योहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। वहीं कुछ जगह पर ये व्रत अष्टमी तिथि पर भी मनाया जाता है। होली के बाद चैत्र मास की अष्टमी से लेकर वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ कृष्ण पक्ष की अष्टमी माता शीतला की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। इस बार शीतला सप्तमी का व्रत 27 मार्च, बुधवार को है।
 
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन जो महिला व्रत रखती है। उसके घर में कभी भी कोई दुख नहीं आता है। इसके साथ ही इस दिन व्रत करने से सुख-समृद्धि और संतान को किसी भी तरह की कोई बीमारी नहीं होती है।

इस कारण है शीतला सप्तमी खास
इस व्रत को लेकर मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से घर-परिवार में चेचक रोग, दाह, पित्त ज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, आंखों की सभी बीमारियां आदि शीतलाजनित समस्याएं दूर हो जाती हैं। लिहाजा लोग इनसे मुक्ति पाने और भविष्य में ऐसे रोगों से अपने परिवार के लोगों को बचाने पूजा-पाठ करेंगे।

शुभ मुहूर्त
शीतला अष्टमी पूजा का मुहूर्त: 06:20 से 18:32 बजे।
मुहूर्त की अवधि: 12 घंटे 12 मिनट

अष्टमी तिथि आरंभ: 27 मार्च 2019, बुधवार 20:55 बजे।
अष्टमी तिथि समाप्त: 28 मार्च 2019, गुरुवार 22:34 बजे।

शीतला अष्टमी व्रत- पूजा
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद माता शीतला के मंत्र (श्मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमनपूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्येश्) से व्रत का संकल्प लें। इसके बाद विधि-विधान और सुगंध युक्त फूल आदि से माता शीतला का पूजन करना चाहिए। फिर एक दिन पहले बनाए हुए बासी भोजन, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी आदि का भोग लगाएं। वहीं चतुर्मासी व्रत कर रहे हों तो भोग में माह के अनुसार भोग लगाएं। इसके बाद शीतला स्रोत का पाठ करना चाहिए। यह उपलब्ध न हो तो शीतला अष्टमी की कथा सुनें। रात में जगराता व दीपमालाएं प्रज्जवलित करने का भी विधान है।

ऐसे लगाएं माता शीतला को भोग
मां शीतला की पूजा के लिए महिलाएं 26 मार्च की रात मां को अर्पित करने वाले और अपने व्रत के पारण के लिए खाए जाने वाले व्यंजन व भोग तैयार करेंगी। इसमें खीर व मीठी रोटी जैसे मीठे भोजन शामिल हैं। वहीं अगले दिन शीतला अष्टमी को उसे भोग के रूप में अर्पित कर बासी भोजन का सेवन करेंगी। वहीं कठोर व्रत करने वाली महिलाएं उस दिन घरों में चूल्हे भी नहीं जलाएंगी। ऐसे में उन घरों में उस दिन बासी भोजन को ही ग्रहण किया जाएगा।

शीतला माता को क्यों चढ़ाया जाता है बासी प्रसाद
शीतला सप्तमी या अष्टमी पर घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। इस दिन ठंडा भोजन खाए जाने का रिवाज है इसका धार्मिक कारण यह है कि शीतला मतलब जिन्हे ठंडा अतिप्रिय है। इसीलिए शीतला देवी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें ठंडी चीजों का भोग लगाया जाता है। इस कारण से ही उत्तर भारत में शीतला सप्तमी या अष्टमी का ये व्रत बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। 

इसके पीछे एक कारण ये भी है कि इस दिन के बाद से बासी भोजन करना बंद कर दिया जाता है। ये ऋतु का अंतिम दिन होता है जब बासी खाना खा सकते हैं। इस व्रत को करने से शीतला देवी प्रसन्‍न होती हैं और व्रत करने वाले के परिवार में दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग और शीतला से होने वाले दोष दूर हो जाते हैं। शीतला माता की पूजा से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा भी मिलती है।

Leave a reply