दान, पूजा, सील, उपवास, पूर्ण उदय हो या होने वाला हो तब मनुष्य कर पाता है -श्री दुर्लभ मति माताजी
64 ऋध्दी सिध्दी अर्घ्घ का श्री सिध्दचक्रमहामंडल विधान पूजा में आध्यात्मिकता, आत्मध्यान का महत्व
उज्जैन। श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर लक्ष्मी नगर में सिद्धचक्र महामंडल विधान में दुर्लभ मति माताजी ने कहा कि दान, पूजा, शील, उपवास, बड़े साहसी लोग करते हैं और जो करते हैं उनके पुण्य का उदय होता है या बन जाता है। जीवन को सफल बनाने के लिये, देव शास्त्र गुरू की भक्ति में महान शक्ति है। जैन धर्म को अपनाने में कठिन तपस्याओं से होकर गुजरना पडता है। इसके लिये अनेकानेक मंत्र महात्म्य, विधान, पूजायें-आचार्यो ने आध्यात्मिकता, स्वाध्याय, शास्त्रो के माध्यम से जैन समाज के साधर्मियों के लिये विभिन्न ग्रंथों में विस्तार से वर्णन किया गया हैं। संचालन अशोक जैन गुनावाले एवं ट्रस्टीगण संचालन कर रहें हैं।
श्री महावीर दि जैन मंदिर लक्ष्मीनगर मे श्री सिध्दचक्रमंडल विधान का सामुहिक रुप से बडा अनुष्ठान श्री 105 दुर्लभमतिमाताजी ससंघ 13 मार्च से चल रहा हैं। शुक्रवार को माताजी तथा प्रतिष्ठाचार्य ने चौथे अध्याय में 64 अर्घ्यो को गहराई से समझाया। इस विधान में श्री सिध्दभगवान की महिमा, स्तुति, श्रीपाल-मैना सुन्दरी का संपूर्ण चारित्र्य का मुख्य रुप से तपस्वियों के लिये जो ऋध्दिधारी होते हैं उनको स्वतः ही बुंध्दी रिध्दी ओर ओषधी रिध्दी प्राप्त हो जाती है जिनके स्पर्श मात्र से बुध्दी जीवों को बुध्दी ओर असाध्य रोगियों के रोग स्वतःः ही नष्ट हो जाते हैं। सति मैना सुन्दरी के पति श्री पाल का गलत कुष्ट रोग का निवारण रिध्दीधारी मुनियों के आशिर्वाद से सिध्दचक्रमंडल की आराधना कर गलत कुष्ट रोग से मुक्ती मिली थी। आध्यात्मिकता को लेकर विस्तारपूर्वक अध्यायों में उल्लेख किया हैं। जब श्रीपाल राजा का कोढ श्रीसिध्दभगवान की आराधना से, प्रभुभक्ति से, अभिषेक, शांतिधारा की शुध्द मंत्रीत जल से कैसा दुर गया गया, शरीर सुंदर हो गया कि श्रीपाल राजा को पहिचानना मुश्किल हो गया था, यह 64 ऋध्दी सिध्दी को स्वाध्याय के रुप, साधर्मियों समाधानपूर्वक आध्यात्मता से हुदयस्पर्शि भावना से जीवन की तरंगों से जोडकर, जैन धर्म की कठीनतम तपस्याओं की साधना की महत्ता बतायी। अशोक जैन चायवाले अध्यक्ष जैन समाज एवं सचिव सचिन कासलीवाल एवं व्रत और उपवास करने वालों ने आचार्य श्री के चित्र का अनावरण एवं दीप प्रज्वलन किया। नरेंद्र बडजात्या अध्यक्ष श्री पार्श्वनाथ दि जैन पंचायती मंदिर एवं नितिन डोसी, संजय जैन दादा, हितेश सेठी आदि ट्रस्टीगणों ने माताजी को फ्रिगंज स्थित जैन मंदिर में मंगल आगमन करने के लिये श्री फल समर्पित कर निवेदन किया। माताजी तथा प्रतिष्ठाचार्यजी नें जिनालय में त्रिलोकीनाथ का चांदी के कलशों से अभिषेक, शांतिधारा करने, मंदिर शिखर पर स्वर्ण का आवरण होने पर उसका महत्व धार्मिकता का महत्व बताने पर बहुत से साधर्मियों ने चांदी तथा स्वर्ण दान देकर पूण्यार्जन प्राप्त किया। माताजी ने उज्जैन के सभी जिनालयों के अध्यक्षों, साधर्मियों को जैन समाज की एकता अखंडता के लिये आपस में मिलादुलकर रहने का सिध्दांतिक महत्व पर विचार व्यक्त कर कहा कि हमारा जैन धर्म चाहे शत्रु या मित्र साथ रहकर धर्मप्रभावना की सीख ही हैं। स्नेहलता सोगानी द्वारा अपने वात्स्यल्य के अनुरुप विधान के इंद्र इंद्राणी के लिये शुध्द सात्विक भोजन कराया जा रहा है। विमलचंद बाकलीवाल, सुनील जैन खुरई, गौरव लोहारिया, संजय लोहारिया, विनय गर्ग, सूरजमल जैन, इंद्रकुमार बड़जात्या, चेतन सोगानी, शैलेंद्र जैन, अशोक जैन, मंगला महावीर ज्ञानपीठ महिला मंडल, अनेकांत युवा मंडल आदि ने विशेष रूप से सहयोग प्रदान किया।