होलाष्टक के ही साथ होगा शुरू होगी मीन मलमास, एक महीने तक नहीं हो सकेंगे शुभ संस्कार
इस बार अशुभ माने जाने वाला होलाष्टक और मीन मलमास एक साथ शुरू हो रहे हैं। होलाष्टक में आठ दिनों तक शुभ संस्कार करने की मनाही है, लेकिन इसी दिन से मीन मलमास शुरू होकर एक महीने तक चलेगा।
इसके चलते होलाष्टक से लेकर पूरे एक माह तक कोई भी शुभ संस्कार नहीं किया जा सकेगा। इस तरह 14 मार्च को होलाष्टक शुरू होने से 14 अप्रैल मीन मलमास खत्म होने तक सगाई, विवाह, मुंडन, जनेऊ आदि संस्कार पर रोक लगी रहेगी।
14 से 20 मार्च तक होलाष्टक
महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला के अनुसार शास्त्रीय मान्यता है कि होलाष्टक के दौरान किए जाने वाले शुभ कार्यों का उचित फल नहीं मिलता। इस मान्यता के चलते नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार आदि नहीं किए जा सकेंगे। इस बार होलाष्टक 14मार्च से शुरू होकर 20 मार्च होलिका दहन तक रहेगा। 21 मार्च को होली (धुलेण्डी) मनाई जाएगी।
14 मार्च को सूर्य करेगा मीन राशि में प्रवेश
ऐसा माना जाता है कि सूर्य जब मीन राशि में प्रवेश करता है तो सूर्य मलीन अवस्था में होता है। चूंकि सूर्य को विवाह का कारक ग्रह माना जाता है इसलिए सूर्य के मलीन अवस्था में होने के कारण विवाह समेत अन्य संस्कार इस दौरान नहीं किया जाता। सूर्य 14 मार्च को मीन राशि में प्रवेश करेगा और 14 अपै्रल तक विद्यमान रहेगा। सूर्य जब मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करेगा, तब ही विवाह जैसे संस्कार पुनः शुरू होंगे।
शास्त्रीय मान्यता अनुसार हिन्दू पंचांग के फाल्गुन पूर्णिमा के आठ दिन पहले यानी अष्टमी से होलाष्टक शुरू हो जाता है जो पूर्णिमा तक मनाया जाता है। इन आठ दिनों में किसी भी तरह के शुभ संस्कार करने की शास्त्रों में मनाही है। होलाष्टक का संबंध भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद और उनके पिता हिरण्यकशिपु से संबंधित है।
होलाष्टक के आठ दिनों में भक्त प्रहलाद को दी थी यातना
श्रीमद्भागवत कथा में भक्त प्रहलाद के चरित्र की व्याख्या की जाती है। कथा में वर्णित है कि भगवान विष्णु से ईर्ष्या-द्वेष रखने वाले और स्वयं को ही भगवान मानने वाले वाले हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र प्रहलाद को घोर यातना दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। भगवान विष्णु की भक्ति न करने के लिए हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को घोर यातनाएं दी। भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद का कुछ नहीं बिगड़ा। हिरयण्कशिपु ने अपनी बहन होलिका को जिसे आग में भी नहीं जलने का वरदान प्राप्त था उसकी गोद में बिठाकर प्रहलाद को अग्नि में भस्म करवाने की कोशिश की। अग्नि में न जल सकने वाली होलिका तो जल गई मगर प्रहलाद बच गया। भक्त प्रहलाद को जिन आठ दिनों में घोर यातनाएं दी गई थीं उन आठ दिनों को अशुभ मानने की परंपरा सदियों से चल रही है। इसी वजह से होलिका दहन के शुरुआती आठ दिनों में कोई भी शुभ संस्कार संपन्न नहीं किए जाते।