गणेश जयंती (माघी गणेश चतुर्थी) : साल भर की चतुर्थी व्रत का फल मिल जाता है इस एक चतुर्थी के व्रत करने से
गणेश जयंती का पर्व सिर्फ महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसे देशभर में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. हर साल भाद्रपद महीने में 10 दिनों तक गणेशोत्सव का पर्व बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन माघ मास की गणेश जयंती का अपना एक अलग महत्व है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था. ग्रेगोरियल कैलेंडर के अनुसार, माघ महीना जनवरी या फरवरी में आता है. भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश को प्रथम पूजनीय माना जाता है, इसलिए किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है.
माघ महीने की गणेश जयंती को भगवान गणेश के जन्मदिवस के तौर पर मनाया जाता है. माघ महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को, तिलकुंड चतुर्थी और वरद चतुर्थी जैसे नामों से जाना जाता है.
कैसे शुरु हुई गणेशोत्सव मनाने की शुरुआत?
गणेश चतुर्थी के पर्व को मनाने की इस परंपरा की शुरुआत स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने की थी. 1892 जन विरोधी विधानसभा कानून के माध्यम से हिंदू सभाओं पर ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए औपनिवेशक प्रतिबंध को रोकने के लिए तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव मनाने का आह्वान किया, जिसके बाद से इस त्योहार को हर साल सार्वजिनक तौर पर मनाया जाने लगा.
कैसे मनाया जाता है माघी गणेश जयंती का पर्व ?
माघ महीने की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है, इस दिन महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में भक्त भगवान गणेश की प्रतिमा को सार्वजनिक पंडालों और घरों में स्थापित करते हैं. इस दिन उनकी छवि हल्दी या सिंदूर से बनाई जाती है और उनकी पूजा की जाती है. तिल से तैयार भोजन गणपति को अर्पित किया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में बांटा जाता है, इसलिए इसे तिल कुंड चतुर्थी भी कहा जाता है. इस दिन पूजा से पहले भक्त तिल मिश्रित जल से स्नान करते हैं और तिल का उबटन लगाते हैं. इस दिन व्रत रखकर विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा की जाती है और उत्सव के चौथे दिन गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है.
शुभ मुहूर्त और तिथि
चतुर्थी तिथि आरंभ- 8 फरवरी 2019, सुबह 10.17 बजे से,
चतुर्थी तिथि समाप्त- 9 फरवरी 2019, सुबह 12.25 बजे तक.
पूजा विधि-
इस दिन गणेश जी की प्रतिमा का शुद्ध जल से अभिषेक करें और उनकी प्रतिमा को एक चौकी पर स्थापित करें.
इस दिन सुबह स्नान के बाद भगवान गणेश को शुद्ध घी और गुड़ का भोग लगाएं.
गणेश जी की प्रतिमा पर 108 दूर्वा पर पीली हल्दी लगाकर अर्पित करें, इसके साथ ही हल्दी की पांच गाठें चढ़ाएं.
उन्हें मोदक, गुड़, फल. मावा-मिष्ठान और लड्डुओं का भोग लगाएं, फिर इसे प्रसाद के रुप में बांटें.
इस दिन व्रत रखकर शाम को घर में गणपति अथर्वशीष का पाठ करें और गणपति को तिल के लड्डुओं का भोग लगाएं.
गौरतलब है कि भगवान गणेश की पूजा प्रथम पूज्य देवता के तौर पर की जाती है और किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले उनकी आराधना की जाती है. मान्यता है कि माघ महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन माघी गणेश जयंती पर व्रत करने से भगवान गणेश भक्तों के संकटों को दूर करते हैं और उनकी समस्त मनोकामनाएं पूरी करते हैं.