10 महाविद्याओं की कृपा पाने का अवसर है गुप्त नवरात्रि
हम लोग साल में होने वाले केवल दो नवरात्रों के बारे में जानते हैं। पहला चैत्र या वासंतिक नवरात्र और दूसरा आश्विन या शारदीय नवरात्र। इसके अतिरिक्त दो और नवरात्र भी हैं जिनमे विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। कम लोगों को इसका ज्ञान होने के कारण या इसके छिपे हुए होने के कारण इसको गुप्त नवरात्र कहते है। इस बार माघ मास की गुप्त नवरात्र का प्रारंभ माघ शुक्ल प्रतिपदा (5 फरवरी, मंगलवार ) से हो रहा है, जो 14 फरवरी, गुरुवार को समाप्त होगी।
गुप्त नवरात्रि से जुड़ी विशेष बातें
साल में 2 बार आतीं है गुप्त नवरात्रि
साल में दो बार गुप्त नवरात्रि आती है। पहली माघ शुक्ल पक्ष में और दूसरी आषाढ़ शुक्ल पक्ष में। इस प्रकार कुल मिलाकर वर्ष में चार नवरात्र होते हैं। यह चारों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय मनाए जाते हैं। महाकाल संहिता और तमाम शाक्त ग्रंथों में इन चारों नवरात्रों का महत्व बताया गया है।
इनमें विशेष तरह की इच्छा की पूर्ति तथा सिद्धि प्राप्त करने के लिए पूजा और अनुष्ठान किया जाता है। इस बार माघ महीने की गुप्त नवरात्रि 4 फरवरी से 14 फरवरी तक रहेगी। नवरात्रि में जहां भगवती के नौ स्वरूपों की आराधना होती है, वहां, गुप्त नवरात्र में देवी की दस महाविद्या की आराधना होती है।
गुप्त नवरात्र की आराधना का विशेष महत्व है और साधकों के लिए यह विशेष फलदायक है। सामान्य नवरात्रि में आमतौर पर सात्विक और तांत्रिक पूजा दोनों की जाती है, वहीं गुप्त नवरात्रि में ज्यादातर तांत्रिक पूजा की जाती है। गुप्त नवरात्रि में आमतौर पर ज्यादा प्रचार प्रसार नहीं किया जाता, अपनी साधना को गोपनीय रखा जाता है। मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि में पूजा और मनोकामना जितनी ज्यादा गोपनीय होगी, सफलता उतनी ही ज्यादा मिलेगी।
गुप्त नवरात्रि की पूजा विधि ?
चैत्र और शारदीय नवरात्र की तुलना में गुप्त नवरात्र में देवी की साधाना ज्यादा कठिन होती है। इस दौरान मां दुर्गा की आराधना गुप्त रूप से की जाती है इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है।
इन नवरात्र में मानसिक पूजा का महत्व है। वाचन गुप्त होता है, लेकिन सतर्कता भी आवश्यक है। ऐसा कोई नियम नहीं है कि गुप्त नवरात्र केवल तांत्रिक विद्या के लिए ही होते हैं। इनको कोई भी कर सकता है लेकिन थोड़ा ध्यान रखना आवश्यक है।
इस व्रत में मां दुर्गा की पूजा देर रात ही की जाती है।मूर्ति स्थापना के बाद मां दुर्गा को लाल सिंदूर, लाल चुन्नी चढ़ाई जाती है। इसके बाद नारियल, केले, सेब, तिल के लडडू, बताशे चढ़ाएं और लाल गुलाब के फूल भी अर्पित करें। गुप्त नवरात्रि में सरसों के तेल के ही दीपक जलाकर ॐ दुं दुर्गायै नमः का जाप करना चाहिए।
देवी सती ने किया था 10 महाविद्याओं का प्रदर्शन
भगवान शंकर की पत्नी सती ने जिद की कि वह अपने पिता दक्ष प्रजापति के यहां अवश्य जाएंगी। प्रजापति ने यज्ञ में न सती को बुलाया और न अपने दामाद भगवान शंकर को। शंकर जी ने कहा कि बिना बुलाए कहीं नहीं जाते हैं। लेकिन सती जिद पर अड़ गईं। सती ने उस समय अपनी दस महाविद्याओं का प्रदर्शन किया।
उन्होंने सती से पूछा- 'कौन हैं ये?' सती ने बताया,'ये मेरे दस रूप हैं। सामने काली हैं। नीले रंग की तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं। मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देती हूं। इन्हीं दस महाविद्याओं ने चंड-मुंड और शुम्भ-निशुम्भ वध के समय देवी के साथ असुरों से युद्ध करती रहीं।