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मॉं अन्‍नपूर्णा की पूजन से मिलता धन-धान्‍य, होती है सुखों की प्राप्ति



ये व्रत अगहन मॉस के शुक्ल पक्ष के पहले दिन से शुरू करते हैं और २१ दिन तक माता अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है। जिससे जीवन में अन्न, धन और सभी सुख समृद्धि प्राप्त होतें हैं इस बार ६ दिसंबर से यह व्रत प्रारंभ हो रहा है। सुबह नहा धोकर माता अन्नपूर्णा के सामने घी का दिया जलाएं और माता अन्नपूर्णा की कथा किसी को सुनानी होती है। अगर कोई न हो तो एलोवेरा (ग्वारपाठा ) का पौधा सामने रखकर कथा कहिये और माता को भोग लगाइए। दो दीपक सुबह और शाम दोनों वक्त जलाइये। व्रत अगर सम्भव हो तो २१ दिन रखिये अगर नहीं सम्भव है तो पहले और आखिरी दिन व्रत करें और आरती सुबह - शाम दोनों वक्त करें। माता अन्नपूर्णा की कृपा पूर्ण रूप से प्राप्त होगी और दीपक जलाते समय निम्न कथा कहें और हांथों में पुष्प लेकर माता के चरणों में चढ़ा दें।

माँ अन्नपूर्णा की उत्पति – अन्नपूर्णा माता की कथा 
एक बार जब पृथ्वी लोक पर पानी और अन्न समाप्त होने लगा तो परेशान लोगों ने परेशानी से निजात दिलाने के लिए भगवान ब्रह्मा और विष्णु की स्तुति शुरू की।

लोगों की परेशानी जान ब्रह्मा और विष्णु ने भगवान शिव की आराधना कर उन्हें योग मुद्रा से जगाया और पूरे मामले की जानकारी दी। इसके बाद भगवान शिव ने पृथ्वी का भ्रमण किया।

इसके बाद माता पार्वती ने अन्नपूर्णा रूप और भगवान शिव ने भिक्षु का रूप धारण किया। इसके बाद भगवान शिव ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा लेकर पृथ्वीवासियों के बीच वितरित किया। इस कारण आज के दिन माता अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है।

माता अन्नपूर्णा देवी अन्न की देवी है। इस दिन रसोई घर साफ रखना चाहिए। इसके बाद गंगा जल छिड़क कर घर को शुद्ध करना चाहिए एवं घर के चूल्हे की पूजा करनी चाहिए। अन्नपूर्णा जयंती के दिन माता पार्वती तथा भगवान शिव की पूजा-अर्चना करनी चहिए। माता अन्नपूर्णा की पूजा करने से घर में कभी अन्न और जल की कमी नहीं होती है।

सुख-सौभाग्य तथा समृद्धि की कामना के साथ श्री अन्नपूर्णा व्रत करने वालों ने विधि-विधान के साथ पूजन-अर्चन किया। पूजन के बाद कथा एवं आरती से क्षेत्र में धर्ममय माहौल रहा। रात्रि में अन्नपूर्णा जी की विशेष आरती की गई। यह व्रत महिलाओं द्वारा विशेष रूप से किया जाता है। भक्तों ने भक्ति भाव के साथ मातारानी का पूजन किया। 21 दिनी व्रत के समापन पर हवन में पूणाहुति दी गई। पूजन में विशेष रूप से सुहाग की वस्तुओं का अर्पण किया गया।

प्रतिवर्ष व्रत की शुरुआत अगहन मास की पंचमी तिथि से होती है। जिसमें प्रतिदिन व्रतधारी अन्नपूर्णा देवी का पूजन कर कथा सुनतीं थी। समापन के दिन अन्नपूर्णा देवी को विविध पकवानों का भोग लगाया गया। महिलाओं ने पूजन-अर्चन के बाद पारंपरिक भक्ति गीतों की प्रस्तुति दी।

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