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भगवान दत्‍तात्रेय ने बनाएं थे 24 गुरू, लिया था ये ज्ञान



भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु थे। जिनमें पक्षी, थलचर, जलचर जीव, मनुष्य और प्रकृति शामिल हैं। जिनसे उन्होंने कुछ न कुछ सीखा। हम भी इन 24 गुरुओं से कुछ न कुछ सीख सकते हैं।

1. कबूतर: कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे अपने बच्चों को बचाने के दौरान खुद भी फंस जाता है। यानी किसी से बहुत ज्यादा स्नेह दुख का कारण होता है।

2. मधुमक्खी : मधुमक्खियां फूलों के रस से शहद बनाती हैं और एक दिन शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए।

3. कुररी पक्षी : कुररी पक्षी से चीजों को पास में रखने की सोच छोड़नी सीखनी चाहिए। कुररी पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे नहीं खाता है। दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को कुररी से उसे छिन लेते हैं। 

4. भृंगी कीड़ा: कीड़े से सीख मिलती है कि अच्छी हो या बुरी, जैसी सोच मन में लाएंगे मन वैसा ही हो जाता है।

5. पतंगा: पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है। उसी प्रकार रूप-रंग के आकर्षण और झूठे मोह में नहीं उलझना चाहिए।

6. भौंरा: जिस प्रकार भौंरा अलग-अलग फूलों से पराग लेता है, उससे सीख मिलती है कि, जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए।

7. रेशम का कीड़ा: जिस प्रकार रेशम का कीड़ा ककून में बंद हो जाने पर दूसरे रूप का चिंतन कर वह रूप पा लेता है, हम भी अपना मन एकाग्र कर वह स्वरूप पा सकते हैं।

8. मकड़ी: मकड़ी की तरह भगवान भी मायाजाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं। जिस प्रकार मकड़ी स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है, ठीक इसी प्रकार भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।

9. हाथी: हाथी-हथिनी के संपर्क में आते ही उसके प्रति आसक्त हो जाता है। इससे सीख मिलती है कि संन्यासी और तपस्वी पुरुष को स्त्री से दूर रहना चाहिए।

10. हिरण: हिरण उछल-कूद, संगीत, मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे अपने आसपास शेर या अन्य किसी हिंसक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है। हिरण की तरह ही जिंदगी को बेखौफ तरीके से जीना चाहिए।

11. मछली: कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के लालच में मछली फंस जाती है। यानी स्वाद को अधिक महत्व नहीं देना चाहिए।

12. सांप: सांप से सीख मिलती है कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। साथ ही, कभी भी एक स्थान पर रुककर नहीं रहना चाहिए। 

13. अजगर: हमें जीवन में अजगर की तरह संतोषी रहना चाहिए। यानी जो मिल जाए, उसे ही खुशी-खुशी स्वीकार करना चाहिए।

14. बालक: छोटे बच्चे से सीखा कि हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्ना रहना चाहिए।

15. पिंगला वेश्या: एक दिन पिंगला वेश्या के मन में वैराग्य जागा तब उसे समझ आया कि पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में ही असली सुख है, तब उसे सुख की नींद आई। इससे दत्तात्रेय ने सबक लिया कि केवल पैसों के लिए जीना नहीं चाहिए। 

15. कुमारी कन्या: एक बार दत्तात्रेय ने एक कुमारी कन्या को धान कूटते देखा और पाया कि इस दौरान उसकी चूड़ियों की आवाज से बाहर बैठे मेहमानों को परेशानी हो रही थी। यह देख उस कन्या ने सारी चूड़ियां तोड़ दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी ही रहने दी। इसके बाद उस कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया। अत: हमें भी एक चूड़ी की भांति अकेले जिंदगी जीने का साहस रखना चाहिए।

16. तीर बनाने वाला: अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाले को देखा, जो अपने काम में इतना मग्न था कि पास से राजा की सवारी निकल जाने पर भी उसका ध्यान भंग नहीं हुआ।

17. आकाश: दत्तात्रेय ने आकाश से सीखा कि हर देश, काल, परिस्थिति में लगाव से दूर रहना चाहिए।

18. जल: हमें जल की तरह पवित्र रहना चाहिए।

19. सूर्य: जिस तरह एक ही होने पर भी सूर्य अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक ही है, लेकिन कई रूपों में दिखाई देती है।

20. वायु: अच्छी या बुरी जगह पर जाने के बाद वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है। उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपनी अच्छाइयों को नहीं छोड़ना चाहिए।

21. समुद्र: समुद्र की तरह ही जीवन के उतार-चढ़ाव में भी खुश और गतिशील रहना चाहिए।

22. आग: कैसे भी हालात हों, हमें उन हालातों में ढल जाना चाहिए। जिस प्रकार आग अलग-अलग होने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है।

23. चन्द्रमा: आत्मा लाभ-हानि से परे है। बिल्कुल वैसे ही जैसे घटने-बढ़ने से भी चंद्रमा की चमक और शीतलता बदलती नहीं है, हमेशा एक-जैसे रहती है। 

24. पृथ्वी: पृथ्वी से सहनशीलता व परोपकार की भावना सीखने को मिलती है। पृथ्वी पर लोग कई प्रकार के आघात करते हैं, लेकिन पृथ्वी हर आघात को परोपकार की भावना से सहन करती है।

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