जितने भी साधन सुख व आनंद देते हैं अंत में वे ही दुख के कारण बनते हैं
गंगाघाट मौनतीर्थ पर आयोजित श्रीमद् भागवत महापुराण में बोले भानपुरा पीठ के शंकराचार्य दिव्यानंद तीर्थ
उज्जैन। एक तरफ स्वार्थ, एक तरफ परमार्थ खड़ा है तो हम स्वार्थ की तरफ झुकते हैं। माता का दूध जिस दिन से बच्चा पीने लगता है तो उसे सुख का अनुभव होता है, जिस दिन माता उसे दूध पिलाना बंद कर देती है उसे व्याकुलता होती है। जितने भी साधन सुख व आनंद देते हैं अंत में वे ही दुख के कारण बनते हैं। ज्ञान होना सरल है लेकिन ज्ञानविष्ठ होना कठिन है।
उक्त बात गंगाघाट मौनतीर्थ पर आयोजित श्रीमद् भागवत महापुराण में भानपुरा पीठ के शंकराचार्य दिव्यानंद तीर्थ ने कही। मानस भूषण संत सुमनभाई एवं डॉ. अर्चना सुमन के सानिध्य में आयोजित भागवत कथा के तीसरे दिन स्वामी दिव्यानंद तीर्थ ने कहा कि जैसे कोई माता आभूषण पहनकर आती है तो वह बार-बार आभूषणों को दिखाती है यह शीर ब्रह्म नहीं हो सकता। शंकराचार्यजी ने कहा कि यदि मैं पेंट, शर्ट, सूट, बूट पहनकर आउं तो मुझे व्यासपीठ पर बैठने का अधिकार नहीं। भारतीय सनातन धर्म परंपरा अनुसार वेशभूषा में बैठना ही न्यायोचित है। जैसे हम जागते हैं तो उठने का मन नहीं करते क्योंकि बुध्दि ने उठने का मन कहा है। कथा के दौरान उन्होंने अनेक समसामयिक विषयों पर अपने दृष्टांत दिया एवं कहा कि भगवान तो भक्त के अधिन है तथा सेवा का भाव जिस मानस में उतर जाता है वह जन-जन के बीच स्वतः प्रिय हो जाता है। जनसंपर्क अधिकारी दीपक राजवानी के अनुसार इस अवसर पर भगवान शर्मा, सरोज अग्रवाल, जियालाल शर्मा, भारतभूषण शर्मा, वैभव शर्मा, वर्षा, पूजा, गौरी तृप्ति शर्मा सहित शहर के गणमान्यजन मौजूद थे।
वेद मंत्र अंताक्षरी प्रतियोगिता का हुआ आयोजन
ब्रह्मर्षि श्रीश्री मौनी बाबा जयंति समारोह के अंतर्गत सोमवार को आवासीय वेद पाठशालाओं के बटुकों द्वारा वेद मंत्र अंताक्षरी प्रतियोगिता का आयोजन प्रातः 11.30 बजे हुआ। वेद विद्या प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित उक्त प्रतियोगिता में प्रथम स्थान ब्रह्मर्षि श्री श्री मौनी बाबा वेद विद्या प्रतिष्ठान, द्वितीय ऋषी गुरुकुल वेद विद्यालय चिंतामण तथा तृतीय स्थान महर्षि पाराशर वेद विद्यालय को प्राप्त हुआ।