आप परमात्मा से प्रेम करो या नहीं करो वह आपको प्रेम करता है- आचार्य जिनमणिप्रभ सूरिश्वरजी
उज्जैन। जिंदगी का प्रारंभ प्रेम से होता है। एक बच्चा मां से दुग्धपान तभी कर पाता है जब वह मां से प्रेम का बोध पाता है। अनादि काल से ही व्यक्ति प्रेम करता आया है। व्यक्ति प्रेम करने के लिए प्रेम नहीं करता अपितु प्रेम पाने के लिए प्रेम करता है। परमात्मा के प्रेम का स्मरण अलग है आप परमात्मा से प्रेम करो या नहीं करो वह आपको प्रेम करता है चाहे आप कितना भी नफरत करों आपके भाग्य का प्रेम आपको मिलता है।
उक्त बात गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरिश्वरजी महाराज ने अवंति पार्श्वनाथ मंदिर में प्रवचनों में कही। आपने कहा हर भाव में आपको परमात्मा का प्रेम मिलता है। प्रेम उससे करो जिससे आप कभी बिछड़ न पाओ उससे प्रेम करों जिससे आप अलग न हो पाउ। इसलिए परमात्मा में विराजमान गुरू से प्रेम करो। परमात्मा का प्रेम मिलना हो तो नदी से सिखो जब गंगा गंगौत्री से निकलती है उछलती है कलकल करती है तथा व धीरे धीरे बीच में शांत हो जाती है। किंतु जब वह समुद्र से मिलती है तो वह पूर्व स्वरूप में आ जाती है ऐसा मिलना ऐसा अंगीकार कर जब श्रध्दालु परमात्मा से मिल जब आंखें बंद परमात्मा को अपनी आंखों में बसा लेना चाहता है। परमात्मा आपको जब ही मिलना चालू हो जाते है जब आप अपने घर से परमात्मा से मिलने निकल जाते हैं अतः परमात्मा से प्रेम करो कोई सौदा नहीं।