वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव ने दिया था श्रीहरि की तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान
22 नवंबर गुरुवार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी है. इसको वैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. इस शुभ दिन को भगवान शिव तथा विष्णु की पूजा की जाती है. इस त्योहार को वैकुण्ठ चौदस के नाम से भी जानी जाती है. इस दिन भक्त व्रत रखकर भगवान विष्णु तथा भगवान शिव दोनों की आराधना करते हैं. यह व्रत कार्तिक माह के शुक्ल चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. इस वर्ष यह हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है. देश के विभिन्न भागों में इस तिथि को विशेष पूजा-आराधना की जाती है. सामान्यतः पूजा का समय निशित काल (मध्य रात्रि) को किया जाता है.
बैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा-
प्राचीन मतानुसार, एक बार विष्णु जी ने काशी में शिव भगवान को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढा़ने का संकल्प किया. जब अनुष्ठान का समय आया, तब शिव भगवान ने विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर दिया. पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपने "कमल नयन" नाम को स्मरण करके अपना एक नेत्र चढा़ने के लिए अपने आंख को निकाला कर समर्पित कर दिया. तभी भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए तथा प्रकट होकर कहा कि कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी "वैकुण्ठ चौदस" के नाम से जानी जाएगी.