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शरद पूर्णिमा की रात चन्‍द्रमा बरसाता है अमृत किरणें, मॉं लक्ष्‍मी लेती है घरों का फेरा



शरद पूर्णिमा से ही स्नान और व्रत प्रारम्भ हो जाता है। माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी-देवताओं का पूजन करती हैं। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारम्भ होता है। विवाह होने के बाद पूर्णिमा (पूर्णमासी) के व्रत का नियम शरद पूर्णिमा से लेना चाहिए। शरद ऋ तु में मौसम एकदम साफ रहता है। इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं। और न ही धूल-गुबार। इस रात्रि में भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है।

प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है। हिन्दू धर्मशास्त्र में वर्णित कथाओं के अनुसार देवी देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल केवल इसी रात में खिलता है।

यूं तो हर पूर्णिमा पर चांद गोल नजर आता है, परंतु शरद पूर्णिमा की चांद की बात ही कुछ और है। कहते हैं कि इस दिन चांद की किरणें धरती पर अमृतवर्षा करती हैं।

आश्विन शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं और इस साल यह 23 अक्टूबर यानी आज है। इसे कोजागरी और रास पूर्णिमा भी कहते हैं। किसी-किसी स्थान पर व्रत को कौमुदी पूर्णिमा भी कहते हैं। कौमुदी का अर्थ है चांद की रोशनी।

इस दिन चांद अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। कुछ प्रांतों में खीर बनाकर रात भर खुले आसमान के नीचे रखकर सुबह खाते हैं। इसके पीछे भी यही मान्यता है कि चांद से अमृतवर्षा होती है।

इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि इसी दिन श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास की शुरुआत की थी। इस पूर्णिमा पर व्रत रखकर पारिवारिक देवता की पूजा की जाती है। रात को ऐरावत हाथी (सफेद हाथी) पर बैठे इन्द्र देव और महालक्ष्मी की पूजा होती है।

कहीं कहीं हाथी की आरती भी उतारते हैं। इन्द्र देव और महालक्ष्मी की पूजा में दीया, अगरबत्ती जलाते हैं और भगवान को फूल चढ़ाते हैं। इस दिन कम से कम सौ दीये जलाते हैं और अधिक से अधिक एक लाख। लक्ष्मी और इन्द्र देव रात भर घूमकर देखते हैं कि कौन जाग रहा है और उसे ही धन की प्राप्ति होती है। इसलिए पूजा के बाद रात को लोग जागते हैं। अगले दिन पुन: इन्द्र देव की पूजा होती है।

यह व्रत मुख्यत: महिलाओं के लिए है। महिलाएं लकड़ी की चौकी पर स्वस्तिक का निशान बनाती हैं और उस पर पानी से भरा कलश रखती हैं। गेहूं के दानों से भरी कटोरी कलश पर रखी जाती है। गेहूं के तेरह दाने हाथ में लेकर व्रत की कथा सुनते हैं। बंगाल में शरद पूर्णिमा को कोजागोरी लक्ष्मी पूजा कहते हैं। महाराष्ट्र में कोजागरी पूजा कहते हैं और गुजरात में शरद पूनम।

शरद पूर्णिमा की कथा कुछ इस प्रकार से है-
एक साहूकार की दो पुत्रियां थी। दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी, परन्तु बड़ी पुत्री विधिपूर्वक पूरा व्रत करती थी जबकि छोटी पुत्री अधूरा व्रत ही किया करती थी। परिणामस्वरूप साहूकार की छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी।

उसने पंडितों से अपनी संतानों के मरने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले समय में तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत किया करती थी, जिस कारणवश तुम्हारी सभी संतानें पैदा होते ही मर जाती है। फिर छोटी पुत्री ने पंडितों से इसका उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि यदि तुम विधिपूर्वक पूर्णिमा का व्रत करोगी, तब तुम्हारे संतान जीवित रह सकते हैं।

साहूकार की छोटी कन्या ने उन भद्रजनों की सलाह पर पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक संपन्न् किया। फलस्वरूप उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई परन्तु वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। तब छोटी पुत्री ने उस लड़के को पीढ़ा पर लिटाकर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया।

फिर अपनी बड़ी बहन को बुलाकर ले आई और उसे बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया। बड़ी बहन जब पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा उस मृत बच्चे को छू गया, बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। बॅडी बहन बोली- तुम तो मुझे कलंक लगाना चाहती थी।

मेरे बैठने से तो तुम्हारा यह बच्चा यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली- बहन तुम नहीं जानती, यह तो पहले से ही मरा हुआ था, तुम्हारे भाग्य से ही फिर से जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। इस घटना के उपरान्त ही नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

कैसे मनाएं
- इस दिन प्रात: काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए।

- रात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण (भोग लगाना) करना चाहिए।

- पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें तथा खीर का नैवेद्य अर्पण करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें तथा सबको उसका प्रसाद दें।

- पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुनानी चाहिए। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोनों में रोली तथा चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाए। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर मिश्राणी के पांव स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अर्ध्य दें।

वैसे तो हर माह पूर्णिमा होती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व कुछ और ही है। इस बार शरद पूर्णिमा 26 अक्टूबर दिन सोमवार को है। हिंदू पुराणों के अनुसार माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चांद पूरी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस दिन चांदनी सबसे तेज प्रकाश वाली होती है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत गिरता है। ये किरणें सेहत के लिए काफी लाभदायक है। जानिए शरद पूर्णिमा इतनी खास क्यों है। इस दिन क्या होता है।

शरद पूर्णिमा से जुड़ी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत टपकता है। जो आपकी सेहत के लिए लाभकारी है। इस दिन लोग अपने घरों की छत में खीर बना कर रखते है। जिससे चांद की किरणें खीर पर पड़े जिससे वह अमृतमयी हो जाए। इसको खाने से न जाने कितने बड़ी-बड़ी बीमारियों से निजात मिल जाता है। कही-कही पर इस दिन सार्वजनिक रूप से खीर वितरित भी की जाती है।

- धर्म ग्रंथों के अनुसार माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन श्री कृष्ण गोपियों के साथ रासलीला भी करते हैं। साथ ही माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात के समय भ्रमण में निकलती है यह जानने के लिए कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है। उसी के अनुसार मां लक्ष्मी उनके घर पर ठहरती है। इसीलिए इस दिन सभी लोग जगते हैं। जिससे कि मां की कृपा उन पर बरसे और उनके घर से कभी भी लक्ष्मी न जाएं।

- अगर शरद पूर्णिमा को वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से देखा जाए तो माना जाता है कि इस दिन से मौसम में परिवर्तन होता है और शीत ऋ तु की शुरूआत होती है। इस दिन खीर खाने को माना जाता है कि अब ठंड का मौसम आ गया है इसलिए गर्म पदार्थों का सेवन करना शुरू कर दें। ऐसा करने से हमें ऊर्जा मिलती है।

- शरद पूर्णिमा का चांद सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। इसका चांदनी से पित्त, प्यास, और दाह दूर हो जाते है। दशहरे से शरद पूर्णिमा तर रोजाना रात में 15 सो 20 मिनट तक चांदनी का सेवन करना चाहिए। यह काफी लाभदायक है। साथ ही चांदनी रात में त्राटक करने से आपकी आंखों की रोशनी बढ़ेगी। साथ ही इसी दिन वैद्य लोग अपनी जड़ी-बूटी और औषधियां इसी दिन चांद की रोशनी में बनाते है। जिससे यह रोगियों को दुगुना फायदा दें।

अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न् होती है।

- लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋ तु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।

- अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋ षि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं।

ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपने उज्जवल रूप में चमकता है। मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिकों और आयूरा रीडर्स के लिए यह दिन काफी महत्व रखता है।

कथा और महत्व:
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, आश्विन मास का पूर्ण चंद्रमा (जो ज्यादातर सितंबर या अक्टूबर माह में और दशहरा व दीवाली के मध्य में आता है) को शरद पूर्णिमा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। भारत के कुछ भागों में इस दिन भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की तो कुछ भागों में देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

उड़ीसा में इस दिन भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय की पूजा की जाती है। लेकिन चंद्रमा को इस पर्व का मुख्य केंद्र बिन्दु माना जाता है।

ऐसा माना जाता है जो भक्तपूर्ण श्रद्धा के साथ रात्रि जागरण कर भगवान को मिष्ठनों, खासतौर से दूध और चावल से निर्मित खीर का भोग लगाता है उस पर अमृत की वर्षा होती है। साथ ही इस दिन श्रीयंत्र की पूजा करना भी बेहतर परिणाम दिलाता है।

ये त्योहार मानसून की समाप्ति और फसलों की कटाई का भी सूचक है। इस दिन भक्त पूरी रात उपवास कर खीर को सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है। चंद्र ग्रह को मजबूत बनाने के लिए उपचार करने का ये सबसे उपयुक्त दिन है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण
गणेशजी का कहना है कि इस त्योहार का एक अहम ज्योतिषीय दृष्टिकोण और महत्व भी है। इस प्रभावशाली मौके पर चंद्रमा को नग्न आंखों से इसके उज्जवल रूप में देखा जा सकता है। अगर आपकी जन्म कुंडली में चंद्रमा दूषित है या कमजोर स्थिति में है, तो इस उदार ग्रह को प्रसन्न् करने के लिए विभिन्न् उपाय करने के लिए ये शुभ दिन होगा।

इनमें चंद्र यंत्र की पूजा, शिवलिंग पर दूध या जल चढ़ाना, मोती का रत्न पहनना, दूध दान करना और जरूरतमंदों को सफेद वस्तुओं का दान करने जैसे उपाय आप इस दिन कर सकते हैं।

चंद्र का शुभ होना, आपको उत्तम मानसिक शांति, माता और मातृपक्ष से जुड़े रिश्तेदारों के साथ अच्छे संबंध, अत्यधिक समृद्धि, सृदृढ़ निर्णयात्मक क्षमता और चौतरफा खुशियों का आशीर्वाद दे सकता है। खीर का इस त्योहार में विशेष महत्व है, यह शरीर में पित्त तत्व का नाश करता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण
अन्य प्राचीन परंपराओं की तरह इसका भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। गर्मी का मौसम अब समाप्ति की ओर है और इस तरह बदलते मौसम में लोग पित्त या एसिडिटी से प्रभावित होते है। ऐसे में खीर शरीर में पित्त तत्व का प्रतिकार करती है।

दूसरी मान्यता ये है कि अगर शरद पूर्णिमा के दिन कुंवारी कन्याएं उपवास करती है और चांद की पूजा करती है तो उन्हें भगवान कृष्ण की तरह सुंदर जीवनसाथी प्राप्त होने का आशीर्वाद मिलता है। ऐसी मान्यता है कि इन्होंने शरद पूर्णिमा के दिन ही गोपियों के साथ रासलीला शुरू की थी।

यहां हम कुछ उपयुक्त और कुछ अनुपयुक्त बातों के बारे में बता रहे हैं, जिनका पालन भक्तों को शरद पूर्णिमा का अत्यधिक फल प्राप्त करने के लिए करना चाहिए।

क्या करें:

- शरद पूर्णिमा की रात्रि को उपवास रखें।

- गर्म दूध और चावल से निर्मित खीर तैयार करें और उसे एक कटोरे में डालकर खुले स्थान पर यानीकि या तो छत पर या बालकनी में रखें। कटोरा ऐसे स्थान पर रखा होना चाहिए जहां से चंद्र की सीधी किरणें इस पर पड़े। खीर को तैयार करते समय आप अपनी इच्छानुसार इसमें कुछ सूखे मेवे भी डाल सकते है।

- खीर का प्रसाद ग्रहण कर सुबह अपना व्रत खोलें।

नहीं करें: 

- कुछ भी मसालेदार खाना बनाने या खाने से परहेज करें। 

- इस रात को कुछ भी नहीं खाने और नहीं सोने की कोशिश करें। 

- इच्छा, धन और वासना के विचार का परित्याग करें।

शरद पूर्णिमा बहुत सारे शुभ संयोग एक साथ लेकर आती है। कहा जाता है की इस दिन समुद्र मंथन हुआ था, उसमें से देवी लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। इस दिन मां लक्ष्मी संग चंद्रमा के पूजन करने का विधान है। शरद पूर्णिमा इसलिए भी खास है क्योंकि देवी लक्ष्मी को दीपावली पर हमेशा के लिए अपने पास रखने की तैयारी शुरू हो जाती है।

चांद की चांदनी अमृत किरणों की वर्षा करती है और देवी लक्ष्मी अपने भक्तों को बनाती हैं अपार धन-संपदा के मालिक। आज के दिन किए गए कुछ उपाय कर सकते हैं आपकी हर इच्छा को पूरा। सूर्यास्त के बाद जब चांद की किरणें चारों और फैलती हैं, उस समय करें चंद्र देव और देवी लक्ष्मी को प्रसन्न्।

- रात 12 बजें तक अवश्य जागें, हरिनाम, भजन-कीर्तन करें ।

- रात 12 बजे के बाद चांद की रोशनी में पड़ी खीर खाएं, परिजनों में बांटें।

- चांद की पूजा सफेद पुष्पों से करें।

- मां लक्ष्मी की पूजा पीले फूलों से करें।

- पंचामृत से लक्ष्मी का अभिषेक करें।

- चांदी खरीदना बहुत शुभ होता है। सामर्थ्य न हो तो अष्टधातु खरीद सकते हैं।

- चांदी से निर्मित देवी लक्ष्मी का दूध से अभिषेक करें। एक महीने के अंदर कर्ज समाप्त हो जाएगा और धन से संबंधित कोई भी परेशानी शेष नहीं रहेगी।

- संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोग अपने वाद्य यंत्रों को हल्दी-कुमकुम और पुष्प अर्पित करके धूप-दीप दिखाएं।

- यात्रा करना बहुत शुभ होता है, न कर सकें तो रूमाल में हल्दी, सुपारी और दक्षिणा बांध कर भगवान के पास रख दें। जिस दिन यात्रा के लिए जाएं उस दिन ये रूमाल साथ ले जाएं, सफलता मिलेगी।

- चांद की रोशनी में मखाने और पान खाने से नवविवाहित जोड़ों (विवाहित जोड़े भी खाएं) को देवी लक्ष्मी कभी पीठ नहीं दिखाती।

- फल और दूध का दान करें।

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