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नौ दिनों तक मॉं की आराधना कर शक्ति अर्जित करने का पर्व है नवरात्र


 

धर्म ग्रंथों के अनुसार नवरात्र माता भगवती की आराधना, संकल्प, साधना और सिद्धि का दिव्य समय है। यह तन-मन को निरोग रखने का सुअवसर भी है।देवी भागवत के अनुसार देवी ही ब्रह्मा,विष्णु एवं महेश के रूप में सृष्टि का सृजन,पालन और संहार करती हैं।

भगवान महादेव के कहने पर रक्तबीज शुंभ-निशुंभ,मधु-कैटभ आदि दानवों का संहार करने के लिए मां पार्वती ने असंख्य रूप धारण किए किंतु नवरात्र में देवी के प्रमुख नौ रूपों की ही पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्र का प्रत्येक दिन देवी मां के विशिष्ट रूप को समर्पित होता है और हर स्वरूप की उपासना करने से अलग-अलग प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं।

प्रथम शैलपुत्री- 
नवरात्र पूजन के प्रथम दिन कलश पूजा के साथ ही मां दुर्गा के पहले स्वरूप 'शैलपुत्री जी" का पूजन किया जाता है। पर्वतराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया है। वृषभ-स्थिता इन माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत हैं। इनका पूजन करने से मूलाधार चक्र जागृत होता है और यहां से योगसाधना आरम्भ होती है ।

पूजा फल- मां शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरूप हैं जो सहज भाव से पूजन करने से शीघ्र प्रसन्ना हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं ।

मन विचलित होता हो और आत्मबल में कमी हो तो शैलपुत्री की आराधना करने से लाभ मिलता है।

द्वितीय ब्रह्मचारिणी 
मां दुर्गा की नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है और ब्रह्मचारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय और भव्य है। भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इन्हांेने हज़ारों वर्षों तक घोर तपस्या की थी। इनके एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में तप की माला है। पूर्ण उत्साह से भरी हुई मां प्रसन्ना मुद्रा में अपने भक्तों को आशीर्वाद दे रही हैं। साधक दुर्गापूजा के दूसरे दिन अपने मन को स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं।

पूजा फल- इनकी पूजा से अनंत फल की प्राप्ति एवं तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। इनकी उपासना से साधक को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।

लालसाओं से मुक्ति के लिए मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान लगाना अच्छा होता है।

तृतीय चंद्रघंटा- 
बाघ पर सवार मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति देवी चंद्रघंटा के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। दस भुजाओं वाली देवी के प्रत्येक हाथ में अलग-अलग शस्त्र हैं, इनके गले में सफ़ेद फूलों की माला सुशोभित रहती है। इनके घंटे की सी भयानक चंडध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य राक्षस सदैव प्रकंपित रहते है। इस दिन साधक का मन 'मणिपुर चक्र" में प्रविष्ट होता है।

पूजा फल
इनकी आराधना से साधकों को चिरायु,आरोग्य,सुखी और संपन्ना होने का वरदान प्राप्त होता है तथा स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। प्रेत-बाधादि से ये अपने भक्तों की रक्षा करती है।

क्रोधी,छोटी-छोटी बातों से विचलित हो जाने और तनाव लेने वाले तथा पित्त प्रकृति के लोग मां चंद्रघंटा की भक्ति करें।

चतुर्थ कूष्माण्डा -
नवरात्र के चौथे दिन शेर पर सवार मां के कूष्माण्डा स्वरूप की पूजा की जाती हैं। अपनी मंद हल्की हंसी द्वारा ब्रह्माण्ड को उत्पन्ना करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने 'ईषत" हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी अत: यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा,आदि शक्ति हैं।

इन्हीं के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। अष्ट भुजाओं वाली देवी के सात हाथों में क्रमश: कमंडल, धनुष, बाण, कमलपुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। नवरात्र के चौथे दिन साधक अपने मन को मां के चरणों में लगाकर अदाहत चक्र में स्थित करते हैं।

पूजा फल- देवी कूष्मांडा अपने भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। यदि प्रयासों के बावजूद भी मनोनुकूल परिणाम न मिलता हो,तो कूष्मांडा स्वरूप की पूजा से मनोवांछित फल प्राप्त होने लगते हैं।

पंचम स्कंदमाता- 

भगवान स्कंद(कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। यह कमल के आसान पर विराजमान हैं इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। शास्त्रानुसार सिंह पर सवार देवी अपनी ऊपर वाली दाईं भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए हुए हैं और नीचे वाली दाईं भुजा में कमल पुष्प लिए हुए हैं।

ऊपर वाली बाईं भुजा से इन्होंने जगत तारण वरदमुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बाईं भुजा में कमल पुष्प है।स्कंदमाता का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है। इस दिन साधक का मन 'विशुद्ध चक्र" में स्थित होता है।

पूजा फल- स्कंदमाता की साधना से साधकों को आरोग्य, बुद्धिमता तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है ।

विद्या प्राप्ति, अध्ययन, मंत्र एवं साधना की सिद्धि के लिए मां स्कंदमाता का ध्यान करना चाहिए ।

षष्टम कात्यायनी -
मां कात्यायनी देवताओं और ऋषियों के कार्य को सिद्ध करने के लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। यह देवी दानवों और शत्रुओं का नाश करती है। सुसज्जित आभामंडल युक्त देवी मां का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी है। शेर पर सवार मां की चार भुजाएं हैं, इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार व दाहिनें हाथों में स्वास्तिक व आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है। भगवान श्री कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए व्रज की गोपियों ने इनकी पूजा यमुना के तट पर की थी।

नवरात्र के छठेे दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र" में स्थित होता है।

पूजा फल- देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है। इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है। जिनके विवाह में विलंब हो रहा हो या जिनका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं है वे जातक विशेष रूप से मां कात्यायनी की उपासना करें, लाभ होगा।

सप्तम कालरात्रि-
सातवां स्वरूप है मां कालरात्रि का, गर्दभ पर सवार मां का वर्ण एकदम काला तथा बाल बिखरे हुए हैं, इनके गले की माला बिजली के समान चमकने वाली है।इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाली देवी बताया गया है। इनके तीन नेत्र और चार हाथ हैं जिनमें एक में तलवार है तो दूसरे में लौह अस्त्र तथा तीसरा हाथ अभय मुद्रा में है,चौथा हाथ वर मुद्रा में है। अत्यंत भयानक रूप वाली मां सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन साधक का मन 'सहस्त्रार चक्र" में स्थित रहता हैं।

पूजा फल- ये देवी अपने उपासकों को अकाल मृत्यु से भी बचाती हैं। इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत, प्रेत, राक्षस और सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं। मां कालरात्रि की पूजा से ग्रह-बाधा भी दूर होती हैं ।

सभी व्याधियों और शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए मां कालरात्रि की आराधना विशेष फलदायी है ।

अष्टम महागौरी-
दुर्गाजी की आठवीं शक्ति महागौरी का स्वरूप अत्यंत उज्जवल और श्वेत वस्त्र धारण किए हुए है व चार भुजाधारी मां का वाहन बैल है। अपने पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, जिस कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्ना होकर जब शिवजी ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से धोया तब वह विद्युतप्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा, तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा भक्तों के लिए यह देवी अन्नापूर्णा स्वरूप हैं इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है।

पूजा फल- इनकी पूजा से धन, वैभव और सुख-शांति की प्राप्ति होती हैं। उपासक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है। धन-धान्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए महागौरी उपासना की जानी चाहिए।

नवम सिद्धिदात्री- 
मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं । देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही समस्त शक्तियों को प्राप्त किया एवं इनकी अनुकम्पा से ही शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण महादेव जगत में अर्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए।

कमल पर आसीन देवी के हाथों में कमल, शंख, गदा, सुदर्शन चक्र धारण किए हुए हैं। मां सिद्धिदात्री सरस्वती का भी स्वरूप माना गया है जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती हैं। मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं को भी मां सिद्धिदात्री से ही सिद्धियों की प्राप्ति हुई है ।

पूजा फल- इनकी उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। भक्त इनकी पूजा से यश,बल और धन की प्राप्ति करते हैं । समाज में ख्याति प्राप्त करने कि लिए मां सिद्धिदात्री की उपासना विशेष फलदायी है।

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