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दीनदुखियों की सेवा ही मोक्ष का सरल रास्ता


 

सेवाधाम में चल रही अनोखी भागवत कथा में बोले पं. शुक्ला

उज्जैन। राम की तरह उच्च आदर्शों को अपनाकर अपने जीवन को श्रेष्ठ कार्यों में लगाकर न सिर्फ स्वयं का उद्धार करों वरन संपूर्ण मानव जाति के उद्धार का संकल्प लो, तभी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। आधुनिकता और विलासिता की जीवनशैली के कारण आज मनुष्य कर्तव्य से दूर होता जा रहा है। भगवान राम ने जिस तरह जीवन समर्पण कर नर से नारायण होने का संदेश दिया उसी तरह यदि मनुष्य दीन दुखियों की सेवा और असहाय की सहायता करें तो राम राज्य की भारत में पुनः स्थापना की जा सकती है। राम और कृष्ण दोनों ही मानव जीवन का आधार हैं। 

सेवाधाम आश्रम अंबोदिया में चल रही अनोखी श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन पंडित गोपाल कृष्ण शुक्ला ने व्यासपीठ से कहा कि मानव जीवन दुर्लभ है, देवता भी धरती पर मानव जीवन में आने के लिए तरसते हैं। ऐसे में मनुष्य को अपने जीवन का मूल्य समझकर क्रोध, अहंकार, वासना और विलासिता का त्याग करना चाहिये जैसा कि श्रीकृष्ण ने बालस्वरूप में संदेश दिया है। आपने समुद्र मंथन प्रसंग पर कहा कि जिस तरह राक्षसों और देवताओं के बीच युध्द में समुद्र मंथन से अमृत कलश निकला था। ठीक उसी प्रकार कलयुग में हताशा, दुख, मानसिक अस्थिरता और अवसाद के मंथन का केन्द्र सेवाधाम आश्रम है, जहां अमानवीयता और असंवेदनाओं के विष के विपरित खुशहाली का अमृत बरसता है, इस वर्षा में एक बूंद बनकर भी यदि सहयोग किया तो मोक्ष का कठिन मार्ग मक्खन जैसा हो जाएगा। वामन अवतार और मत्स्य अवतार की कथा सुनाते हुए कहा कि कलयुग में हरिकीर्तन के साथ-साथ परोपकार के कार्य ही मोक्ष का आधार हैं। वामन अवतार का जिक्र करते हुए कहा कि प्रभु ने स्वयं वामन अवतार लेकर धर्मपरायणता का संदेश दिया और यह बताया कि वचन पर अडिग रहना ही प्रभुभक्ति है लेकिन आज कलयुग में मानव अपने वचन पर अडिग रहने के विपतर झूठ जमीन पर कदम नाप रहा है, यही उसके दुख और पतन का कारण बन रहा है। 

मूक बिधर बच्चों ने मनाया जन्मोत्सव

कथा के चौथे दिन मूक बधिर बच्चों ने श्रीराम और श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया। आश्रम में 400 से अधिक दिव्यांग बच्चे, बूढ़े, महिलाओं ने अर्जुन नामदेव कीबोर्ड, संतोष कौशल ढोलक के साथ बधाई गीत गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। 

अनोखी कथा

सेवाधाम आश्रम में चल रही भागवत कथा शहर में होने वाली कथाओं से अलग और अनोखी है क्योंकि बड़े-बड़े पांडाल और लाखों के खर्च के विपरित मानव सेवा तीर्थ सेवाधाम के प्रांगण में दिव्यांग बच्चों द्वारा तैयार किए गए पांडाल और मूक बधिर बच्चों द्वारा सजाए गए मंच पर हो रही कथा को वे लोग श्रवण कर रहे हैं जो अपनों से सताये और तिरस्कृत किए हुए हैं। व्यासपीठ से कथा वाचक पं. गोपालकृष्ण शुक्ला और पं. नरेन्द्र जोशी के अनुसार ऐसी भागवत कथा उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं की। 

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