मैं और मेरे की भावना को छोड़कर एकांकी में वास करना ही उत्तम आकिंचन धर्म है
उत्तम आकिंचन धर्म के साथ पर्यूषण का नौवां दिन
उज्जैन। पर्युषण पर्व के 9 दिन शनिवार 22 सितंबर को उत्तम अकिंचन धर्म की पूजा व तेल रस का त्याग किया जाएगा तपोभूमि में मीना दीदी साधना दीदी एवं बोर्डिंग जैन मंदिर में विराजित विदक्षा श्री माताजी ने उत्तम आकिंचन धर्म पर कहा कि बाहरी वस्तुओं का त्याग कर अपने अंतर मन में भ्रमण करना चाहिए एकांत चित करना ही उत्तम उत्तम आकिंचन धर्म का मूल सिद्धांत हैं। आकिचन्य धर्म आत्मा की वह दशा है जहां बाहरी सब छूट जाता है किंतु आंतरिक संकल्प विकल्पों परिणति को विश्राम मिल जाता है। यदि ‘मैं’ और ‘मेरे पन’ का भाव से आत्मा बोझिल होती है और मुक्ति की ऊर्ध्वगामी यात्रा नहीं कर पाती। यह आत्मा,संकल्प, विकल्प रूप कर्तव्य भावों से संसार सागर में डूबती रहती है।
परिग्रह का परित्याग कर परिणामों को आत्मकेंद्रित करना ही अकिंचन धर्म की भावधारा है। जहां पर भीड़ है, वहांपर आवाज, आकुलता और अशांतिहै किंतु एकाकी एकत्व के जीवन में न कोई आवाज,न आकुलता और न अशांति। हम जहां पर जी रहे हैं वह कर्तव्य तो करना ही है लेकिन हमें भुल का भी बौद्ध होना चाहिए। शाम को घिरते-घिरते पक्षी एक तरुवर पर आकर विश्राम कर लेते है औऱ सुबह होते ही अपने कार्य के लिए भिन्न दिशाओं में चले जाते हैं। ठीक इसी प्रकार संसार में हम सभी का निवास है। पुराने जन्मों के किसी संयोग की वजह से आप यहां एकत्रित हुए हैं किंतु आगे की यात्रा तो आपको एकाकी करनी है। आज का यह धर्म जीवन की यात्रा को एकाकी आगे बढ़ाने का धर्म है जिसमें अपने और पराए का भेद समझकरनिर्विकल्प र्निद्वंद्व एकाकी आत्मा की अनुभूति में उतरना पड़ता है।
“आप अकेला अवतरे, मरे अकेला होय।
यूं कबहूं इस जीव का, साथी सगा न कोय।
शास्त्र भेंट कर मनाया पर्यूषण का आठवां दिन
औषधी शास्त्र अभय और आहार का दान ही सबसे बड़ा दान है मीना दीदी
समाज के सचिव सचिन कासलीवाल ने बताया कि शुक्रवार 21 सितंबर को उत्तम त्याग धर्म की पूजा हुई सभी लोगों ने त्याग की परिभाषा समझते हुए अपने जीवन में कुछ ना कुछ त्यागने का विचार भी मन में लाए श्री महावीर तपोभूमि में तपोभूमि प्रणेता मुनि श्री प्रज्ञा सागर जी महाराज के आशीर्वाद से मीना दीदी साधना दीदी के सानिध्य में पर्युषण पर्व के अंतर्गत 10 दिन का जो शिविर चल रहा है उसमें सुबह से ही पूजा पाठ के साथ सभी ने अपनी-अपनी स्वेच्छा से कुछ ना कुछ त्याग किया एवं दीदी ओं को शास्त्र भेंट भी किया मीना दीदी ने णमोकार महामंत्र की महिमा बताते हुए प्रवचन में कहा कि औषधी शास्त्र अभय आहार का हर व्यक्ति को निरंतर अपने जीवन में दान करना चाहिए सांसारिक मनुष्य को दान करने से बड़ा कोई त्याग नहीं है। भगवान के प्रथम कलश का सौभाग्य मोतिरानी वीरसेन जैन, विजिया डॉ एसके जैन, शांतिधारा का सोभाग्य सुरेश तारा देवी कासलीवाल, सजंय बड़जात्या, ओमप्रकाश जैन, लीला बाई नागदा, रमेश मीना एकता एवं शिविर के भोजन कराने का लाभ स्नेहलता सोगानी को प्राप्त हुआ। विशेष रूप से राजेंद्र लुहाडिया, धर्मेंद्र सेठी, संजय जैन, विकास सेठी, हेमंत गंगवाल, अंजू गंगवाल, विनीता कासलीवाल, अंजू ओम जैन, सुलोचना सेठी आदि उपस्थित थे।
दान और त्याग में मान-सम्मान बहू मान की इच्छा नहीं होना चाहिए विदक्षा श्री माताजी
श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर बोर्डिंग में विदक्षा श्री माताजी ने कहा कि त्याग हमेशा मन से हर्षाेल्लास से करना चाहिए त्याग और दान करते वक्त कभी भी मन में मान सम्मान बहू मान का ख्याल नहीं आना चाहिए दान किसको दिया जा रहा है यह भी देखना चाहिए जो व्यक्ति दान की पात्रता रखता है उसको दिया हुआ दान ही वास्तविक दान कहलाता है त्याग मन से वचन से काय से एवं अपनी चंचला लक्ष्मी से हरदम अपनी अपनी इच्छा से करते रहना चाहिए माताजी के सानिध्य में उत्तम त्याग की पूजा के साथ-साथ 10 लक्षण धर्म की पूजा भी हुई एवं दोपहर में धर्म की चर्चा भी हुई शाम को ध्यान श्री जी की आरती के साथ साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित हुआ जिसमें विशेष रूप से ट्रस्ट के अध्यक्ष इंदरचंद जैन दीप्ति गंगवाल आदि कई लोग मौजूद थे।