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घर में सुख-शांति, लम्‍बी उम्र का वरदान देती है राधा रानी



भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाष्टमी के नाम से जाना जाता है। पुराणों में कहा जाता है कि राधा जी वृषभानु के यज्ञ से इस दिन प्रकट हुई थीं। इस त्योहार को लगातार 16 दिनों तक मनाया जाता है और महिलायें लगातार 16 दिन व्रत का पालन करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से घर में सुख शांति बनी रहती है। यह व्रत खासतौर पर पति और बेटे के लंबी उम्र के लिए और परिवार की खुशहाली एवं संतान सुख के लिए किया जाता है।

पूजा का मुहूर्त
अष्टमी तिथि 16 सितंबर दोपहर 3:54 मिनट से शुरू होकर 17 सितंबर को 5 बजकर 44 मिनट तक रहेगी। 

कैसे हुआ राधा जी का जन्म
राधा वृषभानु गोप की संतान थी उनकी माता का नाम कीर्ति था। पद्मपुराण में राधाजी को राजा वृषभानु की संतान बताया गया। जब राजा यज्ञ के लिए भूमि की सफाई कर रहे थे तब भूमि से कन्या के रुप में राधा मिली थी। राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर इसका लालन-पालन किया।

एक अन्य कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु कृष्ण अवतार में जन्म लिया था तब उनके अन्य सदस्य भी पृथ्वी पर जन्म लिया था। विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रुप में पृथ्वी पर आई थी। ऐसी मान्यता है कि राधाजी अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थी। राधाजी को श्रीकृष्ण की प्रेमिका माना जाता है।

पूजन विधि
इस दिन सुबह उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर श्री राधा जी का विधिवत पूजन करना चाहिए। इनकी पूजा के लिए मध्याह्न का समय उपयुक्त माना गया है। इस दिन पूजन स्थल में ध्वजा, पुष्पमाला, वस्त्र, पताका, तोरण आदि व विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्नों एवं फलों से श्री राधा जी की स्तुति करनी चाहिए। पूजन स्थल में पांच रंगों से मंडप सजाएं, उनके अंदर षोडश दल के आकार का कमलयंत्र बनाएं, उस कमल के मध्य में दिव्य आसन पर श्री राधा कृष्ण की युगलमूर्ति पश्चिमाभिमुख करके स्थापित करें।

इसके बाद पूजा की सामग्री लेकर भक्तिभाव से भगवान की स्तुति गान करें। रात्रि को कीर्तन करें। एक समय फलाहार करें। मंदिर में दीपदान करें।

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