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क्रोध वह अग्नि है, जो मानवता का नाश करती है


 
उत्तम क्षमा धर्म पर जैन मंदिर बोर्डिंग में बोली आर्यिका विदक्षा श्री माताजी
उज्जैन। क्षमा का प्रतिरोधी क्रोध है। अतः क्षमा धर्म को जीवन में अपनाने हेतु क्रोध पर विजय अनिवार्य है। क्रोध वह अग्नि है जो मानवता का नाश करती है। क्रोध वह विष है जो आत्मगुणों का नाश करता है। क्रोधी व्यक्ति दूसरों के द्वारा किये गये अपराध की सजा स्वयं को देता है और अपना ही सर्वनाश करता है जबकि क्षमा वह अमृत है जो आत्मा को अमरत्व प्रदान करती है।
उक्त बात बोर्डिंग जैन मंदिर में विराजमान आर्यिका विदक्षा श्री माताजी ने उत्तम क्षमा धर्म पर संबोधन देते हुए कही। क्षमा वीरस्य भूषणं सूत्र के माध्यम से माताजी ने बताया वीर वही है जो दूसरों के अपने प्रति अपराध करने पर उन्हें क्षमा प्रदान करते हैं। क्षमा मांगना व क्षमा कर देना इन दो सूत्रों को जीवन में अपनाने वाला ही शाश्वत सुख को पाता है। समाज सचिव सचिन कासलीवाल के अनुसार उत्तम क्षमा धर्म का उपदेश देकर माताश्री ने सबको नई राह दिखाई कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्जवल व चित्र अनावरण से किया गया। 

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