इन मंत्रों के जाप से मिलेगी श्रीगणेश की कृपा
प्रथम पूज्य गणेश की महिमा निराली है. इनका उपासक कभी तकलीफ में नहीं रह सकता है. कोई विघ्न-बाधा उसके समक्ष टिकी नहीं रह सकती है. किसी भी काम में बाधा हो या धन-संकट की समस्या हो, भगवान गणेश की उपासना से तत्काल उससे मुक्ति मिल सकती है. वैसे तो गणेश की कई तरह से पूजा होती है और वह हर तरह से भक्तों पर कृपा बरसाते हैं लेकिन इस लेख में मैं भगवान गणेश के कुछ ऐसे प्रभावशाली मंत्रों एवं उसके उपयोग की जानकारी दूंगा जिससे कम श्रम व समय में बड़ी उपलब्धि हासिल करना संभव होगा. तो ऊं गणेशाय नम: के साथ इसका शुभारंभ किया जाए. गणेश चुतुर्थी आने वाली है, 17 सितंबर से दस दिवसीय गणेश महोत्सव भी शुरू होगा. इस दौरान किसी भी मंत्रों का नियमपूर्वक अधिक से अधिक संख्या (यदि संभव हो तो पुरश्चरण कर लें) में जप करना अत्यंत कल्याणकारी होगा.
मंत्र-- वक्र तुंडाय हुम्
विधि-- छह लाख मंत्र के जप से पुरश्चरण होता है. इसके बाद गन्ना, सत्तू, केला, चिऊड़ा (चूरा/पोहा), तिल, मोदक, नारियल और धान के लावा को समान भाग में मिलाकर उससे दशांश हवन करने पर मनोकामना की पूर्ति होती है. पुरश्चरण के पश्चात उपरोक्त सारे वस्तुओं के साथ उससे थोड़े कम मात्रा में चिऊड़ा, नारियल एवं काली मिर्च को मिलाकर एक माह तक नित्य एक हजार मंत्र से हवन करने पर बड़ा लाभ मिलना तय है. यदि जीरा, सेंधा नमक एवं काली मिर्च के साथ पंद्रह दिन ही एक हजार मंत्र से हवन करने पर धन लाभ निश्चित होता है. मूल मंत्र से प्रतिदिन 444 बार तर्पण किया जाए तो एक माह में ही मनोकामना की पूर्ति होती है.
ध्यान
उद्यदिनेश्वर रूचिं निजहस्तपद्मै:
पाशांकुशा भयवरान् दधतं गजास्यां
रक्तां वरम् सकल दुख हरं गणेशं
ज्ञायेत् प्रसन्न मखिरा भरणाभिरामम्
उच्छिष्ट गणेश
इनका प्रयोग अत्यंत सरल है तथा इनकी साधना में अशुचि-शुचि का कोई बंधन नहीं है. मंत्र शीघ्र फल देने वाले हैं. उच्छिष्ट गणेश अक्षय भंडार के देवता हैं. प्राचीन समय में यति जाति के साधक इन्हीं की साधना व सिद्धि के द्वारा थोड़े से भोजन प्रसाद से नगर व ग्राम का भंडारा कर देते थे. इनकी साधना करते समय मुंह उच्छिष्ट होना चाहिए. मुंह में गुड़, पताशा, लौंग, इलायची, पान आदि में कुछ भी होना चाहिए. भोजन भी स्वीकार्य है. पृथकृ-पृथक कामना हेतु पृथक-पृथक पदार्थ की परिपाटी है. लौंग व ईलायची वशीकरण हेतु, सुपारी विभिन्न फल की प्राप्ति और वशीकरण के लिए, गुड़ मुंह में रखकर मंत्र जप से अन्न-धन वृद्धि तथा मुंह में पान हो तो सर्वसिद्धि के लिए प्रयोग होता है. उच्छिष्ट गणेश के प्रयोग से पूर्व या उस दौरान साधक पर दुश्मन द्वारा कृत्या या कोई अन्य अभिचारक प्रयोग हुआ हो तो गणपति उससे भी रक्षा करते हैं.
ध्यान
शरान्धनु: पाशसृणि पहस्तै दधानमारक्त सरोरुहस्थम्.
विवस्त्र पतन्या सुरत प्रवृत्त मुच्छिष्ट ममवासुतमाश्रयेहम्..
मंत्र-- हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा
विधि-- इस मंत्र का सिर्फ 16 हजार जप करने की बात शास्त्रों में वर्णित है. इसी से पुरश्चरण माना गया है लेकिन मेरा मानना है कि 16-16 मंत्रों की कम से कम तीन आवृत्ति कर लेनी चाहिए. इसमें दशांश हवन की आवश्यकता नहीं है. पुरश्चरण के बाद निम्न विधि से काम करें.
1-भोजन करते समय पहले गणपति के लिए ग्रासान्न को प्रसाद की तरह निकाल कर अलग रख दें. फिर भोजन करते हुए जप करें. इसी तरह रोज करने पर जप सिद्ध होता है. कुबेर ने इसी मंत्र से नौ सिद्धियां पाईं. विभीषण और सुग्रीव ने भी इसी मंत्र से राज्य सिंहासन हासिल किया.
2-मंत्र जप पूर्ण करने के बाद मधु मिश्रित लाजा (चिरचिरी) से नित्य (एक माह तक) हवन करने पर संसार को वशीभूत कर अभीष्ट की प्राप्ति की जा सकती है. यदि यह कार्य कन्या करे तो चाहे कितनी भी बाधा आ रही हो, उसका अच्छे वर से शीघ्र विवाह हो जाएगा.
हेरम्ब गणपति
मंत्र-- गुं नम:
विधि-- एक लाख जप करने से किसी भी देवी-देवता की उपासना में आ रहा विघ्न दूर होता है तथा आत्मबल और धन में बढ़ोतरी होती है.
लक्ष्मी-विनायक
मंत्र-- श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानाय स्वाहा.
विधि-- तीन लाख जप के बाद दशांश सामान्य हवन करें. बेल के वृक्ष के नीचे जप करने पर धन वृद्धि होती है. अशोक की लकड़ी से प्रज्ज्वलित अग्नि में घी मिश्रित चावल से हवन करने से संपूर्ण विश्व का वशीकरण होता है. पायस से हवन करने पर माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं.
अन्य मंत्र
1-गं क्षित्र प्रसादनाय नम:
विधि-- यदि पूजा में या किसी साधना में बार-बार बाधा आ रही हो, सफलता पाते-पाते रह जाते हों तथा विघ्न और कलह से छुटकारा नहीं मिल रहा हो तो उपरोक्त मंत्र का नित्य एक हजार जप करें. कुछ ही दिन में सारी बाधाएं खत्म हो जाएंगी.
2-श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजन में वशमानाय स्वाहा.
विधि-- इस मंत्र का एक लाख जप करने से ही साधक में वशीकरण की ताकत बहुत बढ़ जाती है. लोग अनायास उसकी ओर खिंचे चले आते हैं. लोग इस मंत्र के साधक के हितैषी और प्रशंसक हो जाते हैं तथा विरोधी सामाप्त प्राय हो जाते हैं.