गुरु स्वाति योग में विराजेंगे प्रथम पूज्य गौरी पुत्र गणेश, इस दिशा में करें स्थापना...
उज्जैन। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर 13 सितंबर को गौरी पुत्र गणेश गुरु स्वाति योग में विराजमान होंगे। ज्योतिषियों के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी पर ऐसा योग दुर्लभ माना जाता है। शुभ योग व श्रेष्ठ नक्षत्र में पार्थिव गणेश की स्थापना सुख समृद्धि के साथ रिद्धिसिद्धि प्रदान करेगी।
ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला के अनुसार चतुर्थी पर गुरुवार के दिन स्वाति नक्षत्र का योग आ रहा है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार शुभ दिवस, शुभ नक्षत्र में श्री गणेश का आगमन सर्वत्र शुभफल प्रदाता माना गया है। गुरुवार का दिन, चतुर्थी तिथि तथा स्वाति नक्षत्र, जिनका आपसी अनुक्रम में क्रमश: बृहस्पति, गणपति तथा वायु देवता से संबंध है।
भाद्रपद मास की चतुर्थी पर इस प्रकार का संयोग सालों में बनता है। क्योंकि चतुर्थी तिथि के देवता भगवान गणेश हैं, जो रिद्धि सिद्धि प्रदान करते हैं। बृहस्पति जिन्हें ज्ञान का प्रदाता माना गया है। वायु देवता जो मनुष्य में पंच प्राण को संतुलित रखते हैं। इस दृष्टि से ज्ञान बुद्धि का संतुलन कार्य में सिद्धि प्रदान करता है। अत: गुरु स्वाति योग में दस दिवसीय गणेशोत्सव विभिन्न् प्रकार की आराधना से भक्तों को मानोवांछित फल प्रदान करने वाला रहेगा।
मूर्ति स्थापना के लिए यह दिशा श्रेष्ठ
पूर्व दिशा : पूर्व दिशा के ईशान कोण में विधि विधान से भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति स्थापित कर दस दिन तक नियमित आराध्ाना करने से भक्तों के निवास में स्थिर लक्ष्मी का वास होता है। साथ ही कार्य मे सफलता मिलती है।
उत्तर दिशा : मध्य उत्तर दिशा से वायव्य कोण में मूर्ति स्थापना कर पूजा करने से आर्थिक प्रगति, सही गलत को पहचानने की क्षमता तथा सुरक्षा कवच की प्राप्ति होती है। रुके हुए कार्य की शुरुआत के लिए भी यह दिशा शुभ है।
पश्चिम दिशा : पश्चिम दिशा में गणपति स्थापना कर पूजा अर्चना करने से संकट तथा बाधाओं का निवारण होता है। मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए भी इस दिशा में गणपित पूजन को श्रेयष्कर माना गया है।