अज्ञानता से मुक्ति दिलाने वाले गुरू के पूजन-समर्पण का पर्व है गुरू पूर्णिमा
भारतीय परंपरा में गुरु की महिमा अपरंपार बताई गयी है। गुरु बिन, ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता है, गुरु बिन आत्मा भी मुक्ति नहीं पा सकती है। हमारे पौराणिक ग्रंथों ने गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया है। मान्यता है कि ईश्वर से श्रापित है यदि कोई तो उसे गुरु बचा सकता है, लेकिन यदि किसी को गुरु ने ही श्राप दे दिया हो उसे फिर ईश्वर भी नहीं बचा सकता है।
आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा के तौर पर मनाया जाता है। भारत में गुरु पूर्णिमा का बेहद महत्व है। ना केवल हिन्दू भाई, बल्कि सिख भाई भी इस दिन को महत्वपूर्ण मानते हैं।
क्यों मनाते हैं गुरु पूर्णिमा?
यूं तो हर माह की पूर्णिमा का धार्मिक महत्व है। पूर्णिमा शास्त्रीय उपायों और सिद्धियों की प्राप्ति के लिए महत्व दिन माना गया है, लेकिन गुरु पूर्णिमा इन सभी से अधिक महत्वपूर्ण है। इस दिन गुरु पूजा का विधान है।
माना गया है कि महर्षि वेद व्यास, जिन्हें हिन्दू धर्म में ब्रह्मज्ञानी, ज्ञानियों के ज्ञानी माना गया, इस दिन उन्हीं की पूजा की जाती है। शास्त्रों में वेद व्यास जी को 'आदिगुरु कहकर सम्मानित किया गया है, अत: यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा के दिन उनकी पूजा की जाती है। गुरु पूर्णिमा के दिन वेद व्यास जी के अलावा लोग अपने गुरु की भी पूजा-सेवा करते हैं।
पूजन विधि
गुरु पूर्णिमा की सुबह जल्दी उठकर घर की सफाई करके एवं स्नानादि करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें। अब घर के मंदिर या किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं। व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम अथवा मंत्र से पूजा का आवाहन करें। अंत में अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करें।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
वैसे तो गुरु के मौजूद रहने पर किसी भी दिन उनकी पूजा की जानी चाहिए। किंतु पूरे विश्व में आषाढ; मास की पूर्णिमा के दिन विधिवत गुरु की पूजा करने का विधान है। इस पूर्णिमा को इतनी श्रेष्ठता प्राप्त है कि इस एकमात्र पूर्णिमा का पालन करने से ही वर्ष भर की पूर्णिमाओं का फल प्राप्त होता है। गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है, जिसमें हम अपने गुरुजनों, महापुरुषों, माता-पिता एवं श्रेष्ठजनों के लिए कृतज्ञता और आभार व्यक्त करते हैं।
गुरु वास्तव में कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि उसके अंदर निहित आत्मा है। इस प्रकार गुरु की पूजा व्यक्ति विशेष की पूजा न होकर गुरु की देह में समाहित परब्रह्म परमात्मा और परब्रह्म ज्ञान की पूजा है। आषाढ; मास की पूर्णिमा विशेष रूप से गुरु पूजन का पर्व है।
इस पर्व को 'व्यास पूर्णिमा" भी कहते हैं। उन्होंने वेदों का विस्तार किया और कृष्ण द्वैपायन से वेदव्यास कहलाये। इसी कारण इस गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।
16 शास्त्रों एवं 18 पुराणों के रचयिता वेदव्यास जी ने गुरु के सम्मान में विशेष पर्व मनाने के लिये आषाढ़ मास की पूर्णिमा को चुना। कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने शिष्यों एवं मुनियों को पहले-पहल श्री भागवत पुराण का ज्ञान दिया था। अत: यह शुभ दिन व्यास पूर्णिमा कहलाया।
इसी आषाढ मास की पूर्णिमा को छह शास्त्र तथा अठारह पुराणों के रचयिता वेदव्यास के अनेक शिष्यों में से पांच शिष्यों ने गुरु पूजा की परम्परा डाली। पुष्पमंडप में उच्चासन पर गुरु यानी व्यास जी को बिठाकर पुष्प मालाएं अर्पित कीं, आरती की तथा अपने ग्रंथ अर्पित किए। तब से शताब्दियां बीत गईं। गुरु को अर्पित इस पर्व की संज्ञा गुरु पूर्णिमा ही हो गई। एक मान्यता के अनुसार इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था।
क्यों वर्षा ऋतु में मनाई जाती है गुरू पूर्णिमा?
क्षह वर्षा ऋतु के आरंभ में मनाई जाती है। इस दिन से प्रारम्भ कर, अगले चार महीने तक परिव्राजक और साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर, गुरु से ज्ञान प्राप्त करते हैं। क्योकि यह चार महीने मौसम के हिसाब से अनुकूल रहते हैं, इसलिए गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति आदि के लिए यह सबसे अनुकूल समय माना जाता है।
गुरु के लिए पूर्णिमा से बढ़कर कोई और तिथि हो ही नहीं सकती, क्योंकि गुरु और पूर्णत्व दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। जिस प्रकार चंद्रमा पूर्णिमा की रात सर्वकलाओं से परिपूर्ण हो जाता है और वह अपनी शीतल रश्मियां समभाव से सभी को वितरित करता है।
उसी प्रकार सम्पूर्ण ज्ञान से ओत-प्रोत गुरु अपने सभी शिष्यों को अपने ज्ञान प्रकाश से आप्लावित करता है। पूर्णिमा गुरु है। आषाढ़ शिष्य है। बादलों का घनघोर अंधकार। आषाढ़ का मौसम जन्म-जन्मान्तर के लिए कर्मों की परत दर परत। इसमें गुरु चांद की तरह चमकता है और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।
चांद जब पूरा हो जाता है तो उसमें शीतलता आ जाती है। इस शीतलता के कारण ही चांद को गुरु के लिए चुना गया होगा। चांद में मां जैसी शीतलता एवं वात्सल्य है। इसलिये हमारे ऋषियों व महापुरुषों ने चांद की शीतलता को ध्यान में रखकर आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु को समर्पित किया है। अत: शिष्य, गृहस्थ, संन्यासी सभी गुरु पूर्णिमा को गुरु पूजन कर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। गुरु महिमा को इस स्तुति से वंदित किया गया है।