मासूमों के दुष्कर्मियों को फॉंसी की सजा देने के अध्यादेश को मिली मंजूरी
दिल्ली में हुए निर्भया कांड ने पूरे देश को झकझोर दिया था. महिला सुरक्षा के लिए हिन्दुस्तान सड़क पर उतर आया था. लोगों ने रेपिस्टों के लिए फांसी की सजा की मांग की थी. तत्कालीन मनमोहन सरकार ने रेप से जुड़े कानूनों में संशोधन करके पॉक्सो कानून पारित किया था. इसमें बच्चों के साथ होने वाली बर्बरता के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया था.
मोदी सरकार ने अपने घोषणा पत्र में महिला सुरक्षा का मजबूती से दावा किया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए. इसी साल जब शिमला, कठुआ और उन्नाव में हुए गैंगरेप के मामलों मे तूल पकड़ा तो सरकार सचेत हो गई. रेप की घटनाओं में सख्त सजा के प्रावधान का फैसला किया गया. कैबिनेट में इससे संबंधित प्रस्ताव पारित किया गया.
रेपिस्टों को मौत की सजा दिए जाने संबंधित अध्यादेश को मंजूरी दी गई. इसके लिए 'प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस' यानी पॉक्सो कानून में जरूरी संशोधन किए गए. इससे संबंधित अध्यादेश राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेजा गया, जिसे उन्होंने महज 24 घंटे के अंदर मंजूरी दे दी. अब 12 साल तक के मासूमों से रेप के दोषियों को मौत की सजा मिलेगी.
नया कानून, नई सजा
- पहले 12 साल तक की बच्ची से रेप करने वालों को कम से कम सात साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा मिलती थी. लेकिन नए कानून के तहत कम से कम 20 साल और अधिकतम फांसी की सजा का प्रावधान कर दिया गया है.
- पहले 13 से 16 साल तक की बच्ची के साथ रेप करने वालों को कम से कम 10 साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा मिलती थी. अब नए कानून के तहत कम से कम 20 साल और अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान है.
- पहले किसी महिला के साथ रेप करने वालों को कम से कम 7 साल और अधिकतम उम्र कैद मिलती थी. अब कम से कम 10 साल और अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है.
2 महीने में पूरी होगी सुनवाई
नए कानून के तहत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), साक्ष्य अधिनियम, आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और यौन अपराधों से बाल सुरक्षा (पोक्सो) अधिनियम को अब संशोधित माना जायेगा. अध्यादेश में मामले की त्वरित जांच और सुनवाई की भी व्यवस्था है. बलात्कार के सभी मामलों में सुनवाई पूरी करने की समय सीमा दो महीने ही होगी.
क्या है पॉक्सो कानून
पॉक्सो का पूरा नाम है- प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट 2012 यानी लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012. इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है. यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है.