अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने लिया था नरसिंह अवतार
नरसिंह जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस बार नरसिंह जयंती 28 अप्रैल 2018 को है। इस जयंती का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। भगवान श्रीनरसिंह शक्ति तथा पराक्रम के प्रमुख देवता हैं। पौराणिक धार्मिक मान्यताओं एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप का वध किया था।
नरसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है। नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य और आधा शेर का शरीर धारण कर दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप का वध किया था। धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु के इस अवतरण की कथा भी दी गई है।
नरसिंह जयंती व्रत विधि
नरसिंह जयंती के दिन व्रत-उपवास और पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए और भगवान नरसिंह की विधी विधान के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान नरसिंह और लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए, इसके बाद वेद मंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। भगवान नरसिंह की पूजा के लिए फल, पुष्प, पंचमेवा, कुमकुम, केसर, नारियल, अक्षत व पीताम्बर रखना चाहिए। गंगाजल, काले तिल, पंच गव्य व हवन सामग्री का पूजन में उपयोग करें। भगवान नरसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके नरसिंह गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। पूजा के बाद एकांत में कुश के आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से नरसिंह भगवान के मंत्र का जप करना चाहिए। इस दिन व्रती को सामर्थ्य अनुसार तिल, स्वर्ण के साथ ही वस्त्रादि का दान करना चाहिए। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति लौकिक दुःखों से मुक्त हो जाता है। भगवान नरसिंह अपने भक्त की रक्षा करते हैं व उसकी समस्त मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
शुभ मुहूर्त
वर्ष 2018 में नरसिंह जयंती 28 अप्रैल 2018, शनिवार के दिन मनाई जाएगी।
मध्याह्न संकल्प का शुभ मुहूर्त - 11:00 से 01:37
सायंकाल पूजन का समय - 04:13 से 06:50
पूजा की अवधि - 2 घंटा 36 मिनट
प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि थे, उनकी पत्नी का नाम दिति था। उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम हरिण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकश्यप था। हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराह रूप धरकर मार दिया था। अपने भाई कि मृत्यु से दुःखी और क्रोधित हिरण्यकश्यप ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प लिया। कई वर्षों तक उसने कठोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त कर उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया।
फिर हुआ भक्त प्रह्लाद का जन्म
अहंकार से युक्त हिरण्यकश्यप प्रजा पर अत्याचार करने लगा। इसी दौरान हिरण्यकश्यप कि पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम 'प्रह्लाद' रखा गया। एक राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी गुण मौजूद नहीं थे और वह भगवान नारायण का भक्त था। वह अपने पिता हिरण्यकश्यप के अत्याचारों का विरोध करता था।
ऐसे हुआ हिरण्यकश्यप का वध
भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकश्यप ने बहुत प्रयास किए। पर प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित नहीं हुआ। तब उसने प्रह्लाद को मारने के लिए षड्यंत्र रचे, पर वो सभी में असफल रहा। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था। जिससे हिरण्यकश्यप क्रोध से भर गया। प्रह्लाद को देख प्रजा भी भगवान विष्णु की पूजा करने लगी थी। तब एक दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा कि बता- "तेरा भगवान कहाँ है?" इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि "प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं।" क्रोधित हिरण्यकश्यप ने कहा कि "क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ में भी है?" प्रह्लाद ने हाँ में उत्तर दिया। यह सुनकर क्रोध से भरे हिरण्यकश्यप ने खंभे पर प्रहार कर दिया। तभी खंभे को चीरकर श्रीनरसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकश्यप को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया। श्रीनरसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। इसलिए इस दिन को "नरसिंह जयंती-उत्सव" के रूप में मनाया जाता है।