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शिव-महापुराण कथा : पशुओं से मनुष्‍य में होता है अधिक बल



भोपाल। भगवान शिव ने श्रष्टि के समस्त जीवों की उत्पत्ति की। लेकिन सबसे अधिक प्रसन्नाता प्रभु को मानव की रचना करने में हुई। क्योंकि सभी जीवों में मानव ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है। पशुओ में मनुष्य से अधिक बल होता है लेकिन फिर भी मनुष्य सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ है।

यह विचार गुरुवार को रवीन्द्र भवन स्थित मुक्ताकाश मंच पर जारी शिव-महापुराण के तीसरे दिन आचार्य मुकेश महाराज ने व्यक्त किए।

जनश्री लोककल्याण समिति के तत्वावधान में जारी सात दिवसीय शिव-महापुराण सुनाते हुए आचार्य श्री ने कहा कि संसार में अलग अलग पशुओंकी अपनी अपनी विशेषताएं हैं, जिनका उदाहरण मनुष्य एक दूसरे की तारीफ के लिए करता है। जैसे हिरनी जैसे आंखे, चीते जैसी फुर्ती आदि। लेकिन इस युग में जिस मनुष्य में धर्म व संस्कार होता है, वह मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है। मनुष्य यदि अपने संस्कार व मानव धर्म से अलग हो तो वह पशु के समान ही है।

महाराज श्री ने शिवलिंग की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि घर मे रखने के लिए चार उंगल का शिवलिंग सर्वश्रेष्ठ है। इससे बड़ा शिवलिंग घर मे नही रखना चाहिए। दो उंगल का शिवलिंग भी श्रेष्ठ है लेकिन उससे कम को ठीक नहीं माना गया है।

शुक्रवार को शिव महापुराण के चौथे दिन कामना अनुसार शिवलिंग के पूजन का वर्णन किया जायेगा।

भक्ती के चार प्रकारों का किया वर्णन
शिव-महापुराण के दौरान आचार्य श्री ने चार प्रकार के भक्तों का वर्णन किया। पहला आर्क भक्त होता है जो परेशानी के समय ही ईश्वर को याद करता है। दूसरा-जिज्ञासु भक्त है जिसे ग्रंथ एवं पुराणों के साथ इतिहास जानने की इच्छा होती है। तीसरा-अर्थार्थी भक्त होता है जो किसी कामना की प्राप्ति के लिय भक्ति करता है। एवं चौथा भक्त ज्ञानी होता है जो सत्य को समझता है। ज्ञानी भक्त को ही सर्वश्रेष्ठ भक्त कहा गया है। क्योकि यह निःस्वार्थ भाव से ईश्वर की भक्ति में लीन होता है।

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