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ध्यान पद्धति द्वारा ही मानसिक तनाव और दुखों से मुक्त हुआ जा सकता है


ध्यान बिखरे हुए मन को एकत्रित कर परम शांति प्रदान करता है

ध्यान साधना द्वारा ही एक शिष्य अपने विचारों को सत्यनिष्ठ, दृढ़ एवं स्थिर बनाने में सक्षम

विचारों में एकाग्रता ही सफल एवं सुखद जीवन का मूलमंत्र

 दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के दिल्ली स्थित दिव्य धाम आश्रम में प्रत्येक माह की भांति इस माह भी मासिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें हज़ारों की संख्या में भक्त श्रद्धालु  सम्मिलित हुए। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य एवं शिष्याओं ने अपने प्रवचनों में बताया कि आज वर्तमान समाज अशांति के गहन अंधकार से गुजर रहा है| मानसिक तनाव और दुःख के चक्रव्यूह से निकलने के लिये वह बड़े-बड़े चिकित्सालयों और ध्यान केन्द्रों के दरवाज़ों पर दस्तक देता है| यहाँ उसे ध्यान की अनेक विधियों से तो ज्ञात करवाया जाता है परन्तु नियम अनुसार इन्हें जीवन में धारण करने पर भी शांति की प्राप्ति नहीं होती| ध्यान की बाहरी विधियों द्वारा इन्द्रियों को तो पलटा जा सकता है परन्तु परम आनंद की अवस्था को प्राप्त नहीं किया जा सकता| तो फिर मन को क्या आधार दिया जाये कि वह परम शांति में लीन हो पाए! सांसारिक विषयों की ओर आकर्षित होना मन का स्वाभाविक गुण है| जब यह बगुला रूपी मन अद्वैतवाद में स्थित होकर ध्यान में स्थिर होने की कोशिश करता है तो मछली रूपी विषय इसके आगे आकर इसकी चोंच को मजबूरन दो भागों में बाँट देते हैं| द्वैतवाद प्रगट हो जाता है और मन विषयों के दलदल में फँस जाता है| इसलिये हमारे महापुरुषों ने समय समय पर हमें यही समझाया कि सिर्फ आँखें बंद करके बैठ जाने से ध्यान नहीं हो सकता| ध्यान को परिभाषित करना उतना ही कठिन है जितना कि सुन्दरता, अच्छाई या ईश्वर की स्तुति करना| इन सबका अनुभव किया जा सकता है परन्तु शब्दबद्ध नहीं किया जा सकता|

मन का स्वभाव बहुत ही चंचल और बिखरा हुआ है| ध्यान बिखरे हुए मन को एकत्रित कर उसे उसकी पुनः स्थिति पर पहुंचाता है| स्थिर और विचार रहित मन ही आत्म स्वरूप परमात्मा को प्रकाश रूप में देख पाता है| मन की उलटी दिशा के कारण ही ध्यान का टिकना कठिन हो जाता है| इतिहास में ऐसे असंख्य उदहारण है जिन्होंने पूर्ण गुरु द्वारा ध्यान पद्धति प्राप्त कर सही मायने में ईश्वर की ध्यान साधना में अपने जीवन को लगाया था! अर्जुन ने अपने मन और बुद्धि को परमात्मा में लगाया तब ही वह अपने कर्म में एकाग्रता को ला पाया एवं युद्ध में विजय को प्राप्त  हुआ| केवल मात्र ध्यान साधना द्वारा ही एक शिष्य अपने विचारों को सत्यनिष्ठ, दृढ़, अटल और स्थिर बना सकता है| विचारों में एकाग्रता ही सफल और सुखद जीवन का मूलमंत्र है|

 

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