फांसी की सजा पाते कैदी से आखिर क्यों पूछतें है आखरी इच्छा
आपने बहुत से लोगों को कहते सुना ही होगा कि “मरते व्यक्ति की आखरी इच्छा को पूरा करना बहुत पुण्य का कार्य होता है।” इस बात को कानून द्वारा एक ऐसे व्यक्ति पर भी लागू किया जाता है जो अपराधी होता है। यही कारण है कि जिस अपराधी को कानून फांसी की सजा सूना देता है। उसको भी आखरी इच्छा को व्यक्त करने का विकल्प देता है। इस बात को आप जानते ही होंगे, पर शायद आप यह नहीं जानते होंगे कि फांसी की सजा पाएं अपराधी को अपनी आखरी इच्छा बताने का जो विकल्प दिया जाता है वह कुछ नियम तथा शर्तों में बंधा होता है। मतलब अपराधी एक सीमित दायरे तक ही अपनी इच्छा को पूरी करवा सकता है। आज हम आपको यहां यही जानकारी देने जा रहे है कि अपराधी आखिर किस सीमा तक अपनी कौन कौन सी इच्छाएं फांसी से पहले पूरी कर सकने की छूट रखता है। आइये जानते हैं इस बारे में।
1 – मृत्यु दंड की सजा पाया अपराधी अपनी सजा को माफ कराने की इच्छा को व्यक्त नही कर सकता। कानून इसका अधिकार उसे नहीं देता।
2 – अपराधी अपनी अंतिम इच्छा के रूप में अपना मनपसंद भोजन या खाना जेल प्रशासन से मांग सकता है। यह अधिकार कैदी को दिया जाता है।
3 – यदि अपराधी की अंतिम इच्छा अपने परिवार से मिलने की है तो जेल प्रशासन उसको उसके सभी परिजनों से मिलवाता है।
4 – यदि मृत्यु दंड पाया अपराधी अपने धर्म की किसी पुस्तक को पढ़ना चाहता है तो जेल प्रशासन उसको वह पुस्तक उपलब्ध कराता है।
5 – यदि इनमें से अन्य कोई और इच्छा को व्यक्त करता है तो भारतीय संविधान में उसकी अन्य किसी इच्छा पर विचार करने का विधान नहीं है। कुल मिलाकर ऊपर लिखी चीजों में से ही किसी एक इच्छा को अंतिम इच्छा के रूप में पूरा किया जाता है।