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सांड के बाद अब उल्लू की मौत पर श्राद्धकर्म और ब्रह्मभोज



नई दिल्ली। मनुष्य सामाजिक प्राणी है और समाज में ही रहकर अपने सारे काम पूरा करता है। जब परिवार से कोई बुजूर्ग या किसी अन्य सदस्य की मौत हो जाती है तो विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है। उसके बाद श्राद्ध कर्म ब्रह्मभोज और सामूहिक भोज का आयोजिन किया जाता है। लेकिन इन दिनों बिहार के सुपौल जिले से एक अनोखी घटना सामने आ रही है। सदर प्रखंड के एक गांव में एक उल्लू पक्षी का विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार किया गया, इसके बाद श्राद्धकर्म कर ब्रह्मभोज व सामूहिक भोज का भी आयोजन किया गया।

कर्णपुर गांव स्थित प्राचीन राधा-कृष्ण मंदिर परिसर में बुधवार की सुबह एक घायल उल्लू मिला। ग्रामीणों को जब इसका पता चला तो सभी ग्रामीणों ने एकजुटता के साथ उसकी पशु चिकित्सक से इलाज करवाया गया, लेकिन उसे बचाया न जा सका। बुधवार की रात उल्लू की मौत हो गई। ग्रामीणों ने उल्लू के शव को नववस्त्र में लपेटकर विधि-विधान के साथ मंदिर परिसर में ही उसका अंतिम संस्कार किया। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि इस दौरान बड़ी संख्या में गांव के लोग मौजूद रहे।
सुपौल जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर कर्णपुर गांव निवासी एवं जाने-माने पर्यावरणविद् भगवान पाठक ने से कहा, उल्लू देवी लक्ष्मी का वाहक माना जाता है। इस कारण भी उल्लू के अंतिम संस्कार के बाद विधि-विधान के साथ श्राद्धकर्म किया गया और मंदिर परिसर में ही कुंवारी कन्याओं व बटुक भोज के बाद सामूहिक भोज का आयोजन किया गया। उन्होंने कहा कि गांव में ही इसके लिए राशि एकत्रित की गई थी।

आपको बता दें कि इस गांव के लिए यह कोई पहला मौका नहीं है। इससे पहले भी एक सांड की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार कर भोज का आयोजन किया गया था। देखरेख के अभाव में पक्षियों की कई प्रजाति विलुप्त हो गईं। पहले गौरैया घर-घर पाई जाती थी, अब देखने को नहीं मिलती। उल्लू भी लुप्त हो रही पक्षी की प्रजाति में शामिल है।

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